बदलती सियासत के मुहावरे

By: Feb 22nd, 2020 12:05 am

देहरा के आंगन में स्वागती तोरणद्वार के फूलों को शिकायत रही या सियासी फूलों को महकना आ गया। जो भी हो कांगड़ा की दहलीज पर फिर कहावतें बदलीं और राजनीति की टेढ़ी अंगुली घी निकालती रही। दरअसल अपने वार्षिक कार्यक्रमों की सर्दी उतारते मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी अपनी अदा से अदब बदलते रहे और यही सरकार की परिपक्वता में चिन्हित इरादों का जश्न भी रहा। यह कोई चरण था या चरणबद्ध तरीके से मुद्दों की बिसात पर आगमन और प्रस्थान था, फिर भी यह माना जाएगा कि यहां स्थानीय नेताओं को सोचने का एक अवसर, पाने का एक उत्सव और अपनाने का एक मकसद खड़ा होता है। यह केंद्रीय विश्वविद्यालय की छत का सवाल हो या कांगड़ा एयरपोर्ट का विस्तार हो, कांगड़ा के सियासी परिदृश्य के नए मटके में जो बिलोया जा रहा है, उसकी कीमत वसूली जाएगी। खैर जहां काफिले होंगे, वहां धूल का गुबार और मंच का शृंगार भी होगा। यह मंच औपचारिक होते हुए भी शिष्टाचार नहीं भूल सकते, लेकिन ढलियारा कालेज का मंच ऐसे नखरे कर गया जो अखर गया। वहां होशियार सिंह बनाम रविंद्र सिंह रवि के मंच थे, इसलिए तालियां बंटी तो शोर हुआ। इस शोर में शरीक बगलामुखी मंदिर की तपस्या कहीं भंग हुई और इसीलिए एक व्यापक दृष्टि में इसके सरकारीकरण की मांग मंच पर चढ़ गई। देहरा का सबसे बड़ा सवाल अब केंद्रीय विश्वविद्यालय न होकर, बगलामुखी मंदिर ट्रस्ट का हिसाब है और जिसमें देहरा के विधायक की रुचि करिश्मा दिखा रही है। आरोपों का ठीकरा एक कमाऊ मंदिर को सरकार की झोली में डाल कर फूटेगा या अब इसी विषय को लेकर जद्दोजहद होगी। दरअसल एशिया विकास बैंक की मुद्राओं से मंदिर को मिली मदद ने देहरा की सियासत को तपाया है। यह इसलिए भी कि जनता हरिपुर-गुलेर की धरोहर विरासत को बगलामुखी के सामने गौण होते देखती है। एडीबी परियोजना के मूल में हरिपुर-गुलेर और पौंग के संदर्भों में जो पर्यटन विकास वांछित था, वह कहीं थम सा गया है। घोषणा तो पौंग विकास बोर्ड की हुई थी, लेकिन विधायक की प्राथमिकताओं की मेहंदी उतर कर कहीं अन्यत्र बहने लगी है। यही मेहंदी अब देहरा के मंचों पर होशियार सिंह को इंगित करती है, तो एशिया विकास बैंक की महंदी को उतारने का उद्घोष सुना गया। आने वाले समय में निजी मंदिर ट्रस्ट की दरी पर बैठी विधायक की प्राथमिकता पर, मुख्यमंत्री की मौजूदगी में जो प्रश्न उठा है, उसका मंतव्य पढ़ा जाएगा। कहीं न कहीं विधायक घिर रहे हैं या उनकी फितरत के सामने आशंकाएं घिर रही हैं। देहरा विधानसभा का सबसे बड़ा प्रश्न अचानक बगलामुखी मंदिर की व्यवस्था पर गुस्सा नहीं दिखा रहा, बल्कि यह दुखती नब्ज टटोल रहा है। यह कुछ सैद्धांतिक प्रश्नों को चुनने का मौका देता है, क्योंकि मंदिर की निजी व्यवस्था की लाभार्थी अगर जनता नहीं है तो एडीबी की तिजोरी से इसे लाभ क्यों पहुंचाया जा रहा है। इसमें दो राय नहीं कि मंदिर की मौजूदा व्यवस्था ने परिसर को बेहतरीन खाके में संवारा है और इस तरह यहां का व्यवसायीकरण एक उदाहरण बनकर दर्ज है। देखना यह होगा कि इसके सरकारीकरण की मांग कितना सियासी असर पैदा करती है और नेताओं का प्रिय परिसर रहा यह धार्मिक स्थल आइंदा किसकी मुरादें पूरी करता है। बहरहाल अब तक का मुख्यमंत्री प्रवास इतना कुछ बटोर चुका है कि चर्चाएं अपनी सार्थकता की परिणति को छूने लगीं। खासतौर पर कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार पर सरकार की निर्लिप्तता ने कांग्रेसी नेताओं की भी जुबान बदल दी है। जाहिर है मुख्यमंत्री कठोर धरातल पर चलने की तहजीब बदल रहे हैं और जिस दृढ़ता से बात कर रहे हैं, उससे शायद राजनीति का लहजा भी बदल जाए। कुल मिला कर कांगड़ा में सरकार की परिपक्वता और विकास की आवश्यकता के बीच कितने फासले कम होते हैं, यह अभी देखना बाकी है। 


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