मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई थी त्रिमुखी जानवरों की मुहरें
हिमाचल का इतिहास भाग-9
मोहनजोदड़ो से त्रिमुखी जानवरों की मुहरें भी प्राप्त हुई हैं जिनके सींग हिमालय में पाए जाने वाले जंगली बकरे की प्रकार के हैं। इस सभ्यता के भग्नावशेषों में देवदार के शहतीरों के स्तंभ भी मिले हैं। देवदार का वृक्ष ऊंचे पहाड़ों में होता है…
गतांक से आगे
यह आदिमानव कौन थे, इसका पता उन अस्थिपंजरों से लगता है, जो मोहनजोदड़ो, रोपड़, स्यालकोट, चंडीगढ़ आदि स्थानों में खुदाई करने पर प्राप्त हुए हैं। यह पंजर आदिम आग्नेयकुलया निषादवंशी, मंगोल-किरात, भूमध्यसागरीय कुल और पर्वत प्रदेशीय नामक चार नस्लों के थे। इस सभ्यता के निर्माताओं को द्रविड़, ब्राहुई, सुमैरीयन, पार्ण, असुर, ब्रात्य, दास, नाग अथवा किन्नर-किरात आदि होने की कल्पनाएं की गई हैं। सिंधु तथा हड़प्पा सभ्यतापूर्व में सरस्वती नदी के ऊपरी भाग और उत्तर में सतलुज-ब्यास नदियों के भीतरी भाग तक फैली हुई थी। सतलुज तथा सरस्वती नदी की घाटियों से सिंधु तथा हड़प्पा सभ्यता के नगरों को पक्की ईंटें बनाने के लिए बहुत लकड़ी जाया करती थी। सतलुज नदी के किनारे रोपड़ के पास ‘कोटला निहंग खान’ में इस सभ्यता के जो अवशेष प्राप्त हुए उनमें एक मुहर और कुछ कुल्हाडि़यां भी थीं संभवतः ये मुहरें व्यापार आदि के काम में लाई जाती होंगी। मोहनजोदड़ो से त्रिमुखी जानवरों की मुहरें भी प्राप्त हुई हैं जिनके सींग हिमालय में पाए जाने वाले जंगली बकरे की प्रकार के हैं। इस सभ्यता के भग्नावशेषों में देवदार के शहतीरों के स्तंभ भी मिले हैं। देवदार का वृक्ष ऊंचे पहाड़ों में होता है। हिमाचल से इतनी दूरी में स्थित सिंधु तथा हड़प्पा सभ्यता के नगरों में देवदार की लकड़ी का पाया जाना इस बात का संकेत करता है। कि इन नगरों का पर्वतीय प्रदेशों के साथ व्यापारिक संबंध था। हिमाचल से हिम शिलाजीत तथा बारहसिंगे के सींग आदि औषधियों के लिए लाए जाते हैं। रोपड़ के आर्वचीन उत्खननों से साफ पता चलता है कि यह सभ्यता देश के बहुत भीतरी भागों में फैल गई थी और संभव है कि तब इसका केंद्र सरस्वती नदी घाटी में रहा होगा। सन् 1964 में शिमला जिला की तहसील रोहडू में रोहडू नामक नगर के पास पब्बर नदी के किनारे चिड़गांव के लिए मोटर सड़क बनाते हुए जब एक खेत को आठ नौ फुट नीचे काटा गया तो उसकी तह में आठ गुणा आठ गुणा तीन इंच के आकार की ईंटों का बना फर्श मिला जो बहुत ही सुंदर ढंग से बनाया हुआ था। वहीं पर वर्षा होने के बाद कुछ मिट्टी के खिलौने भी प्राप्त हुए। इन खिलौनों में दो मिट्टी के बने हुए बैल और दो बैल-गाड़ी के पहिए हैं। बैलों के कुहान आदि वैसे ही है जैसे कि हड़प्पा आदि स्थानों से प्राप्त हुए हैं। पहियों में से एक पहिए पर बेलबूटे का काम किया हुआ है। यहां पर मिट्टी के नीचे बरतनों के टुकड़े भी बहुत पाए जाते हैं। हिमाचल की इन भीतरी घाटियों में मिट्टी की इन आकृतियों का पाया जाना यह सिद्ध करता है कि प्रागौतिहासिक कल में यहां के लोगों का सिंधु तथा सरस्वती सभ्यता के लोगों के साथ आदान-प्रदान था। क्रमशः
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