लोगों की नहीं, अपने मन की सुनें

By: Feb 19th, 2020 12:21 am

मेरा भविष्य मेरे साथ 26

क‌रियर काउंसिंलिंग कर्नल (रि.) मनीष धीमान

एक बार रेगिस्तान में रैकी के दौरान हमारी जीप खराब हो गई। पता करने पर मालूम हुआ की नजदीक में एक फार्म हाउस है, जहां हर चीज का बंदोबस्त है। वहां पहुंच जीप को ठीक करवाते हमने देखा कि वहां हर सुख-सुविधा की व्यवस्था है। पूछने पर एक आदमी बोला कि मालिक ने भावनाओं में बहकर गलती कर दी है, जो मां-बाप के लिए अच्छी-भली विदेशी नौकरी छोड़ यहां रेत में पड़ा है। इतने में मालिक आ गया, तो बात करने पर उसने बताया कि वह अमरीका में नौकरी करते हुए अच्छी सुख-सुविधा के साथ जिंदगी जी रहा था। एक दिन फोन पर मां से बात करने से पता चला कि पापा की तबीयत ठीक नहीं है, उनका इलाज करवाना बहुत जरूरी है। मैं भारत आकर मम्मी-पापा को अपने साथ अमरीका ले गया और अच्छे हॉस्पिटल में उनका इलाज करवाया। मैंने मां-बाप के लिए कोई कमी नहीं रखी थी, पर मां-बाप को वहां रहना पसंद नहीं आ रहा था।  बेगाने व अनजाने शहर में लाख सुख-सुविधा के बावजूद उनका दम घुट रहा था। शाम को डाइनिंग टेबल पर पापा से बात हुई, तो उन्होंने बताया कि गांव वालों ने धीरे-धीरे हमारे खेतों में एनक्रोचमैंट करते हुए बाड़ आगे कर दी है। इस पर मैंने उनसे कहा कि आप उनको क्यों नहीं रोकते, उनको कहा कि वे बाड़ अपनी जमीन तक ही रखें, तो पापा ने तपाक से जवाब दिया, बेटा मैं किसके लिए उनकी बाड़ ठीक करवाऊं। तू तो यहां पर सात समंदर पार अपने बच्चों और पत्नी साथ अच्छी जिंदगी जी रहा है। सब कहते हैं कि तू अब वापस गांव में नहीं आएगा। वैसे भी पिछले 20 साल, जब से तू यहां आया है, तेरा रहन-सहन और व्यवहार बदल गया है, उससे मुझे भी लगता है कि तू वापस नहीं आएगा, तो अगर मैं गांव वालों से लड़ाई करूं, तो किसके लिए। मुझे तो शक है कि हमारे अंतिम संस्कार में भी तू समय से पहुंच पाएगा या नहीं और अगर हम उनसे लड़ते रहेंगे, तो हमारा अंतिम संस्कार भी कोई नहीं करेगा। रही बात जमीन की, तो वह आज नहीं तो कल, तूने बेचनी ही है। उन्होंने रूआंसे होकर कहा कि मैंने तुझे पढ़ाते वक्त सोचा था कि तू पढ़-लिख कर बड़ा आदमी बनेगा, हमारे परिवार के साथ अपनी पढ़ाई से पूरे गांव को भी फायदा करेगा और आने वाली पीढ़ी को संभालेगा, पर गांव तो दूर, आज तुझे अपने पुरखों की धरोहर संभालना मुश्किल हो रहा है। उनकी बात ने मुझे अंदर तक झकझोर गई और मैंने उनसे कहा कि आप ऐसा क्यों सोच रहे हैं। मैं क्यों नहीं आऊंगा। वहां मेरा बचपन बीता है, बाप-दादा की जमीन जायदाद है, मैं दूसरों को क्यों दूंगा, तो पापा ने मुस्कराते हुए कहा, बेटा हमने दुनिया देखी है, कोई भी बड़ा अधिकारी, जो शहर में अच्छी जिंदगी जी रहा हो, मां-बाप और बुजुर्गों की जमीन के लिए ऐशो-आराम छोड़ गांव में नहीं आता। उसके बाद जब मैं सोने के लिए अपने कमरे में पहुंचा, तो मेरी पत्नी बच्चों को कुछ समझा रही थी। पूछने पर उसने बताया कि आपके बेटे आज अपने दोस्तों को कह रहे थे कि ज्यादा शोर मत मचाना, हमारे घर मेहमान आए हैं। तब मैं इनको बता रही हूं कि वह मेहमान नहीं, आपके दादा-दादी हैं और हमारे परिवार का हिस्सा हैं। इस पर मेरा बेटा बोला, चाहे वह कोई भी हों, अगर वह हमारे साथ नहीं रहते और कुछ दिन के लिए हमारे पास आए हैं, तो वह हमारे मेहमान ही हैं। जब भी हम कभी एकाध बार उनके घर गए हैं, तो आपने हमेशा कहा है कि हम दादी घर जा रहे हैं। ऐसा कभी नहीं कहा, कि हम अपने घर जा रहे हैं। इन दो वाक्यों ने मुझे अंदर से बदल दिया और मैं सब छोड़ वापस आ गया, मां-बाप के साथ रहता हूं। पुरखों की धरोहर संभाल रहा हूं और मिट्टी का कर्ज उतारने के लिए गांव के बच्चों का करियर चुनने में मार्गदर्शन करता हूं। लोग मेरे फैसले को गलत कहते हैं, पर मैं वह करता हूं, जो मेरा मन कहता है। मैं उसकी बातों से बहुत प्रभावित हुआ। कुछ साल पहले मेरे साथ बिलकुल ऐसा ही वाकया हुआ, जब मेरे बेटे ने मेरे मां-बाप को मेहमान कहा और पापा ने डाइनिंग टेबल पर वही सब बातें कहीं। तब मेरी नौकरी बीस साल की और मेरी पोस्टिंग श्रीनगर में थी, मैंने तीन साल श्रीनगर में का टेन्योर समाप्त किया, अब मेरी सीनियांरिटी, सर्विस एवं रैंक के मुताबिक मेरे लिए फौज का मुश्किल समय समाप्त हो गया था और अभी सर्विस आराम से ऐशो आराम से गुजरनी थी, पर मां बाप की बात का ध्यान रखते हुए, मैं प्रिमैच्योर रिटायरमेंट ले घर आ गया और अब मां-बाप के साथ रहता हूं। पुरखों की धरोहर संभाल रहा हूं और मिट्टी का कर्ज उतारने के लिए एक संस्था ‘निनाद नई इच्छा, नई आशा, एक दिशा’ के जरिए गांव के बच्चों का करियर चुनने में मार्गदर्शन करता हूं। लोग यह कहकर कि अगर मैं नौकरी करता, तो जनरल बनता, इस फैसले को मेरी गलती, भूल या न जाने क्या क्या कहते हैं, पर मैं वह करता हूं, जो मेरा मन कहता है।


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