वित्तायोग का वसंत

By: Feb 11th, 2020 12:05 am

पंद्रहवें वित्त आयोग की वसंत में बढ़ती ग्रांट, आर्थिक बीहड़ों में एक नए संचार की तरह हिमाचल को पोषित कर रही है। वित्तायोग की सिफारिश का अधिकार पाकर हिमाचल अपने राजस्व घाटे की आपूर्ति कर पाएगा और इस लिहाज से ग्यारह हजार करोड़ के मायने प्रदेश के विकास मानचित्र को नए रंगों से भर सकते हैं। एक लंबी जद्दोजहद और बुनियादी अंतर को मिटाने की कोशिश में हिमाचल हमेशा केंद्र को ताकता रहा है, लेकिन अतीत के घाटे में सियासी दरारें गहरी होती गईं। यह जयराम सरकार पर आर्थिक मेहरबानियों की बानगी में देखा जाएगा और इस तरह उनके आर्थिक कौशल पर केंद्र की ओर से मिली एक सौगात की तरह जाना जाएगा। हिमाचल जैसे पर्वतीय राज्य के लिए वित्तायोग की सिफारिशें संजीवनी की तरह रही हैं और अब तक के विकास चक्र में इनकी अहम भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन इस दौरान वित्तीय अनुशासन के प्रति हिमाचल कुछ अगंभीर भी रहा। राजस्व घाटे के पर्वतीय कारणों का ताल्लुक ऐसी तमाम भौगोलिक परिस्थितियों से है जो प्रत्यक्ष व परोक्ष में हिमाचल की आर्थिक नाकाबंदी करती हैं। प्रदेश के पास एक सीमित क्षेत्र तथा ऐसी पर्यावरणीय स्थिति है, जिसे महज आर्थिक गतिविधियों के लिए असंतुलित नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर प्रदेश का चौसठ फीसदी हिस्सा अगर वन क्षेत्र रहेगा, तो पर्यावरण के ऐसे योगदान की भरपाई कैसे होगी। कुछ इसी तरह के विषयों की वकालत में ऐसे संदर्भ उठते रहे हैं और साथ ही पानी को कच्चा माल समझ कर इसकी रायल्टी तथा जल विद्युत उत्पादन की स्थिति में प्रति यूनिट जनरेशन कर की उगाही का मांगपत्र सदा केंद्र के हस्ताक्षरों के इंतजार में रहा है। बेशक विशेष राज्य का दर्जा अभी तक पर्वतीय वर्जनाओं के फासले घटाता रहा, लेकिन धीरे-धीरे इसके संकल्प छीने जा रहे हैं। उदाहरण के लिए स्मार्ट सिटी जैसी परियोजनाओं का वित्त पोषण अगर 50-50 की अनुपात दर से होगा, तो विकसित होने की संभावनाएं ही गौण हो जाती हैं। इस दर्द को अटल बिहारी सरकार ने भी दिल से कबूल किया था और अब तक के क्रांतिकारी कदमों में हिमाचल सहित अन्य पहाड़ी राज्यों को मिला औद्योगिक पैकेज, उनके आर्थिक सान्निध्य को याद करता है। कुछ इसी तरह की प्रतीक्षा कनेक्टिविटी को लेकर रही है। खास तौर पर सड़क व रेल विस्तार परियोजनाओं की खामोशी में केंद्र से अरदास के सिवा हिमाचल और कर भी क्या सकता। फिजिबिलिटी के नाम पर पर्वतीय राज्यों को विशेष रियायत मिलनी चाहिए ताकि विकास की किरणें हर जगह पहुंच जाएं। विडंबना यह भी है कि देश के आर्थिक संसाधनों का आबंटन आबादी के घनत्व में बड़े राज्यों की सियासत को पूजता रहा है। पर्वतीय विकास के अलग से मानदंड व प्राथमिकताएं नहीं बनी हैं और इस तरह राष्ट्रीय खाके वांछित संसाधनों की आपूर्ति नहीं कर पाते। बहरहाल पंद्रहवें वित्तायोग ने पंचायती राज संस्थाओं से शहरी निकायों तक को भी अपने दायित्व निर्वहन की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने का आश्वासन दिया है। आपदा राहत के लिए राष्ट्रीय नीति के समर्थन में जिस तरह वित्तीय व्यवस्था हो रही है, उसे देखते हुए भविष्य में ऐसे नुकसान की भी काफी हद तक भरपाई हो पाएगी। कुल मिलाकर 15वें वित्तायोग ने हिमाचल की आर्थिक विवशताओं को समझते हुए राजस्व घाटे का एक बड़ा अंश चुकता करने के लिए हाथ बढ़ाया है। भले ही इसे वर्तमान सरकार के पक्ष में वित्तीय राहत के रूप में देखा जाएगा, लेकिन इसके साथ शर्त यही है कि आइंदा खर्च अपनी चादर देखकर ही किया जाए। प्रदेश मौजूदा समय में सबसे अधिक व्यय वेतन, पेंशन भत्तों तथा ऋण बोझ की तरह-तरह की अदायगी में कर रहा है। इस तरह के खर्चों के सामने राजस्व घाटे को बढ़ते अनुदान से केवल एक सीमा तक ही घटाया जा सकता है, जबकि आत्मनिर्भर बनने की दिशा में सबसे पहले फिजूल खर्चों पर रोक और अनावश्यक रूप से बढ़ते सरकारी आकार को भी कम करना होगा, जबकि राज्य को अपने आर्थिक संसाधन खोजने व जोड़ने भी पड़ेंगे।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App