शिवरात्रि मेला… देव संस्कृति को जानने-समझने का अवसर

देव मिलन और पहाड़ी तथा आधुनिक संस्कृति के संगम स्थल मंडी शिवरात्रि मेले में मंडी जिला के सैकड़ों देवी-देवता अपने देवरथों की विशिष्ट शैली में सुसज्जित होकर पधारते हैं, जिससे विभिन्न देव संस्कृतियों के दर्शन और जानकारी एक समय और एक ही स्थान पर सुलभ हो जाती है। आजकल के प्रगतिशील वातावरण में  शायद यही सांस्कृतिक विरासतों से रू-ब-रू होने का सबसे सुलभ और व्यावहारिक मार्ग हो गया है अन्यथा समयाभाव के कारण सुदूर स्थित देव संस्कृतियों और देवरथों और उनकी वाद्य की विशिष्ट शैलियों को जानने समझने का हर किसी के पास न तो समय है न जानकारी। देवरथों की विशिष्ट शैली के साथ-साथ इन देवताओं के वाद्य यंत्रों के वादन की भी क्षेत्र वार विशिष्ट शैली होती है, जहां सिराज, चौहार, उत्तरशाल और बदार आदि इलाकों की अपना देवरथ और वादन शैली है, उसी प्रकार बल्ह क्षेत्र के देवताओं की भी अपनी एक विशिष्ट वादन शैली है, जो विभिन्न अवसरों, समय और स्थान के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं। यही नहीं, इसके लिए बाकायदा नियम तय होते हैं, जैसे सुबह शाम की पूजा-आरती के समय धीमी गति से वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं, जो पुजारी के कार्यकलापों के अनुसार चलते हैं। वहीं, देवता के रथ के साथ चलते हुए भी भौगोलिक स्थिति के अनुसार वादन शैली अलग-अलग होती है, जैसे चढ़ाई चढ़ते और उतरते वाद्य यंत्रों से अलग प्रकार की ध्वनि निकाली जाती है और समतल रास्तों पर अलग। वहीं हर चौराहे पर रुककर श्व्हाराश् दिया जाता है, उसकी भी अपनी विशिष्ट शैली होती है। यहां के वाद्य यंत्रों के साथ एक महत्त्वपूर्ण वाद्य यंत्र श्बांबश् भी होता है जो वृताकार नगारे की शक्ल का होता है और बजाए जाने पर बहुत ही गंभीर आवाज निकालता है। इसे भी श्व्हाराश् दिए जाने पर विशेष रूप से बजाया जाता है। किसी भी देव कार्य में अथवा देव स्थान से गुजरने पर बजंत्री रुक कर एक विशेष वाद्य प्रस्तुति देते हैं,  जिसे बेल बजानाश् कहते हैं। यह विशिष्ट वादन ध्वनियों का सैट होता है, जिसे तयशुदा क्रम में बजाया जाता है। यह श्बेलश् देवरथ के देवगृह से निकलने से पहले और बैठने के बाद अनिवार्य रूप से बजाई जाती है। मेलों और अन्य देव समागमों में सभी उपस्थित देवताओं के बजंत्री सामूहिक रूप से श्बेलश् बजाते हैं, जो एक अलौकिक स्वरूप प्रस्तुत करती है। व्हारा बजाए जाने के समय लगभग सभी वाद्य यंत्र जैसे नगाड़े, ढोल, थाली, बांब करनाल और रणसिंगे एक साथ सामूहिक रूप से बजाए जाते है, जिससे वातावरण गुंजायमान हो जाता है। यहां के सभी देवरथों के आगे देवध्वज चलता है, जो बड़े आकार का बहुरंगी झंडा होता है, जिसे स्थानीय भाषा में फरहरा कहा जाता है।