श्री गोरख महापुराण

By: Feb 15th, 2020 12:18 am

रानी मैनाकिनी बोली, इंद्र का यज्ञ हो चाहे न हो परंतु आप मुझे एक बार मछेंद्रनाथ से मिलवाने का वचन दें, जिससे मेरे मन को शांति मिले। तब उपरिक्ष ने मैनाकिनी के सिर पर हाथ रखकर वचन दे दिया। तब रानी मैनाकिनी ने संतोष कर अपनी दासी दुर्भामा को राजभार सौंप उसे गद्दी पर बैठाया और स्वयं विमान में बैठकर स्वर्ग जाने को तैयार हुई। रानी के चले जाने का दुःख नगर की सभी सुंदरियों को था। रानी ने सभी को धीरज बंधाया और समझाया कि दुर्भामा ही आज से तुम्हारी महारानी हुई। यह भी अब तुम्हारी रक्षा करेगी और तुम लोग भी इन्हें पूर्ण सहयोग देना…

गतांक से आगे…

गोरखनाथ मछेंद्रनाथ से आज्ञा लेकर गिरनार पर्वत पर जा पहुंचे। जहां पर योगी दत्तात्रेय जी का स्थान है। इस तरह छःमास बीतने पर उपरिक्ष बसु आकर मैनाकिनी रानी को अपने साथ स्वर्गलोक में लेने को आए और उसे बोध कराया कि  इस संसार में जो दिखाई  देता है। वह सब नाशवान है। इसलिए दुःख करने का कोई फायदा नहीं। तुम जहां से पदच्युत कर निकाली गई थीं, अब उसी स्वर्ग में चलकर सुख भोगो। मैं तुम्हें बारह वर्ष बाद मछेंद्रनाथ से मिलाऊंगा। जिसके साथ मौनीनाथ व गोरखनाथ भी होंगे। तुम सोचती होगी कि सब कैसे होगा? तो तुम्हारी शंका का निवारण करता हूं। स्वर्ग का महाराजा इंद्र संगल द्वीप के पास एक बड़ा भारी यज्ञ करेगा। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, महादेव आदि सर्व श्रेष्ठ देवगण नौ नाथों सहित पधारेंगे। अब पिछले दुःख भूलकर विमान में बैठो और स्वर्गलोक चलो।

रानी मैनाकिनी बोली, इंद्र का यज्ञ हो चाहे न हो परंतु आप मुझे एक बार मछेंद्रनाथ से मिलवाने का वचन दें, जिससे मेरे मन को शांति मिले। तब उपरिक्ष ने मैनाकिनी के सिर पर हाथ रखकर वचन दे दिया। तब रानी मैनाकिनी ने संतोष कर अपनी दासी दुर्भामा को राजभार सौंप उसे गद्दी पर बैठाया और स्वयं विमान में बैठकर स्वर्ग जाने को तैयार हुई। रानी के चले जाने का दुःख नगर की सभी सुंदरियों को था। रानी ने सभी को धीरज बंधाया और समझाया कि दुर्भामा ही आज से तुम्हारी महारानी हुई। यह ही अब तुम्हारी रक्षा करेगी और तुम लोग भी इन्हें पूर्ण सहयोग देना। इतना कहते ही रानी का विमान चल पड़ा और वह श्राप मुक्त हो स्वर्ग सुख भोगने लगी। इधर कुरु वंश में जन्मेजय राज्य के सातवें राजा बृहश्रव ने हस्तिनापुर का राज्य करते समय सोमयज्ञ करना प्रारंभ किया। उसने पहले शिवाजी की प्रलय अग्नि  में मदन को जलवाया फिर अग्नि के पेट में खुद घुस गया। तब अंतरिक्ष नारायण ने  संचार कर अग्नि कुंड में डाला। पूर्णाहुति के पश्चात यज्ञ कुंड की रक्षा हेतु ब्राह्मणों ने हाथ डाला, तभी उनके हाथ वह बच्चा लगा। जब रोने का स्वर सुनाई दिया, तो पुरोहित ने राजा से बच्चे के बारे में कहा। तब बच्चे को देख बृहश्रव राजा को संतोष हुआ। उस बच्चे को अपनी गोदी में उठाकर मुख चूम कर प्यार किया और अपने मन में सोचा कि यह प्रत्यक्ष मदन का ही अवतार है। फिर राजा बालक को लेकर अंतपुर में रानी के पास गए जिसका स्वरूप देवांगना के समान ऐसा सुंदर था जैसे कुरु कुल को तारने के लिए स्वयं रमा ने अवतार लिया हो। रानी ने राजा से पूछा यह किसका बालक है? राजा ने उत्तर दिया यह अग्नि देवता का प्रसाद है। इतना सुन रानी ने बालक को अपना स्तन पान कराया। तभी प्रभु की कृपा से स्तनों में भरपूर दूध आ गया। उसके पश्चात बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया। फिर बारहवें दिन नामकरण संस्कार किया गया और जालंधरनाथ नाम निकला।

उस दिन गांव में बूरा बांटी गई। कुछ दिन पश्चात जनेऊ हुआ। इसी प्रकार सोलह संस्कार हुए और राजा, रानी ने सलाह करके प्रधान और पुरोहित को नाई के साथ भेजा और कहा अच्छे कुल की सुंदर कन्या हमारे पुत्र के समान देखकर सगाई पक्की कर आओ। जालंधरनाथ ने प्रधान जी के जाने के पश्चात अपनी माता से पूछा आजकल प्रधान जी दिखाई नहीं देते? तब रानी ने बताया कि तुम्हारे पिता जी तुम्हारे लिए पत्नी देखने पुरोहित जी, प्रधान और नाई को भेजा है। तब जालंधरनाथ ने पूछा पत्नी क्या होती है? माता ने उत्तर दिया मेरे जैसी छोटी लड़की।       – क्रमशः


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