श्री गोरख महापुराण

By: Feb 22nd, 2020 12:17 am

गतांक से आगे…

तब यह सब बातें ध्यान में रखकर जालंधर अपने साथियों के साथ खेलने गए और मित्रों से कहा, मेरे माता-पिता मेरे लिए पत्नी मंगवा रहे हैं। वह किस वास्ते होती है? अगर आप लोगों को पता हो तो मुझे बताओ। उसके मित्रों को जालंधरनाथ के अज्ञान पर बड़ा आश्चर्य हुआ। फिर उन्होंने सारी बातें विस्तार पूर्वक समझाई। तब वह सोचने लगे कि यह संसार कितना गया गजरा है। जो उत्पन्न होने का स्थान है उसी को भोगने के कार्य में मुझे प्रवृत्त नहीं होना चाहिए। इस प्रकार सोचकर वह वन में चले गए। जब गांव के सीमा रक्षकों ने उन्हें देखा कि यह तो राजकुमार हैं, तो उन्होंने डर के कारण उनसे कुछ नहीं कहा और यह सूचना जाकर राजा को दे दी। यह सूचना सुनकर राजा घबरा गया और बेटे को ढूंढने जंगल की ओर चल दिया। बहुत तलाश करने के पश्चात भी जब जालंधरनाथ का कोई पता न चल पाया, तो निराश होकर वापस घर आ गए। पुत्र वियोग में राजा-रानी बहुत बेचैन थे। जालंधरनाथ जब जंगल में जाकर घास पर सोए, तो घास में अग्नि लग जालंधरनाथ के निकट आई और अग्नि ने अपने बेटे को पहचान लिया। उसे सुरक्षित स्थान पर लाकर रख दिया और सोचा यह कैसी स्थिति में यहां आया है? इसी चिंता में अग्नि ने प्रकट होकर अपने बेटे को जगाया और गोदी में बैठाकर पूछा बेटा! यहां आने का कारण बताओ? तब जालंधरनाथ ने कहा, तुम मेरा भेद जानने वाली कौन हो? अग्नि ने कहा, मैं तुम्हारी मां हूं और मुझे अग्नि कहते हैं। जालंधरनाथ ने पूछा तुम मेरी माता कैसे हुई। तब अग्नि ने उन्हें सारी जन्म कथा सुनाई। जालंधरनाथ को सारी कथा सुनाने के बाद अग्नि ने पूछा, अब तेरा क्या इरादा है?

अग्नि की बात सुनकर जालंधरनाथ बोले कि आपको तो सब कुछ पता ही है। मेरे कहने से क्या होगा? फिर भी मैं बताए देता हूं कि मुझे यह दुर्लभ मानव शरीर मिला है। कुछ ऐसा उपाय होना चाहिए जिससे इसका कल्याण हो नहीं, तो यह जन्म धारण करने का कोई लाभ नहीं। मैं चाहता हूं कि मेरा यश त्रिभुवन में फैले और मैं अमर हो जाऊं। आप कुछ ऐसा उपाय करो। अपने बेटे की अपूर्व इच्छा सुनकर अग्नि को अपार आनंद हुआ। उसने जालंधरनाथ की खूब प्रशंसा की। जालंधरनाथ सबसे अधिक प्रबल हो इसलिए अग्नि देव ने उन्हें भगवान दत्तात्रेय जी के पास ले गए। दोनों की भेंट वार्ता सत्कार के संग शुरू हुई। दत्तात्रेय जी ने अग्नि देव से पूछा कि आपका यहां किस इच्छा आगमन हुआ है और साथ में यह बालक कौन है? तब अग्नि देव ने सारी कथा सुनाई मैंने शंकर जी के शरीर से कामदेव को भस्म किया था। उसे मैंने अब तक पेट में रक्षण कर रखा है और बृहश्रवा राजा के यज्ञ कुंड से इस जालंधरनाथ की उत्पत्ति हुई है। अब इसे आपके चरणों में अर्पण करने के लिए लाया हूं। आप इसकी रक्षा करो और उपदेश देकर चिरंजीवी रहने का वरदान दो। इस पर दत्तात्रेय जी ने कहा, आपकी मनोकामना मैं पूर्ण करूंगा। परंतु जालंधरनाथ को बारह वर्ष तक यहां रहना पड़ेगा। जब अग्नि देव जालंधरनाथ को वहां छोड़ने के लिए तैयार हो गए तब दत्तात्रेय जी ने जालंधरनाथ को गोदी में बैठा कर उसके सिर पर हाथ फेर कर अज्ञानता दूर की। तब जालंधरनाथ को ज्ञान की प्राप्ति हुई। दत्तात्रेय जी जालंधरनाथ को अपने संग लेकर नित्य घूमने को भागीरथी तट पर जाते और यहां स्नान ध्यान के पश्चात विश्वनाथ दर्शन और कोल्हापुर में भिक्षा और पांचालेश्वर में भोजन किया करते थे। इस तरह जालंधरनाथ बारह वर्ष तक दत्तात्रेय जी के साथ रहकर शास्त्र विद्या में प्रवीण हो गए। उसी तरह वेद, पुराण, शास्त्र, व्याकरण आदि में भी प्रवीणता पाई।                                                                                                       – क्रमशः


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App