साधना में प्रवेश के लिए गुरु कृपा जरूरी

By: Feb 15th, 2020 12:20 am

किस भी प्रकार की साधना से पहले गुरु-उपासना का विधान है। तंत्रादि शास्त्रों में गुरु-उपासना का उल्लेख भली-भांति किया गया है। समस्त तांत्रिक वांग्मय में उपासना का मंगल प्रस्थान श्री गुरु की उपासना से ही आरंभ होता है। ‘गुरु बिना ज्ञान अधूरा’ वाली उक्ति वस्तुतः सत्य ही है। वास्तव में गुरु द्वारा ही ज्ञान प्राप्त होता है- यह बात तंत्र में अधिक महत्त्व रखती है क्योंकि इस क्षेत्र में अनेक रहस्यों को गुप्त करने के लिए शास्त्रकारों ने आदेश दिए हैं। इसके अलावा तंत्र साधना में ज्ञान के साथ-साथ कर्म को उतना ही महत्त्व दिया गया है। यहां इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि ज्ञान तो शास्त्रों, पुस्तकों आदि से भी मिल जाता है, किंतु कर्म-क्रिया की पद्धति केवल गुरु द्वारा ही प्राप्त होती है…

-गतांक से आगे…

साधना के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए साधक को गुरु की कृपा और मार्ग-निर्देशन प्राप्त करना अनिवार्य है। यहां गुरु से आशय है- कोई सिद्ध पुरुष जिसने कठिन साधना करके सिद्धियां प्राप्त की हों। हालांकि आज के युग में ऐसी विभूतियां कम ही मिलती हैं, लेकिन उनका नितांत अभाव भी नहीं है। यदि श्रेष्ठ गुरु मिल जाए तो व्यक्ति बिना साधना के ही बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है। गुरु के संरक्षण में की गई साधना निश्चित रूप से फलवती होती है। गुरु ही शिष्य को यह बताता है कि किस मास, पक्ष, वार, तिथि, नक्षत्र और लग्न में साधना शुरू करनी चाहिए। किस भी प्रकार की साधना से पहले गुरु-उपासना का विधान है। तंत्रादि शास्त्रों में गुरु-उपासना का उल्लेख भली-भांति किया गया है। समस्त तांत्रिक वांग्मय में उपासना का मंगल प्रस्थान श्री गुरु की उपासना से ही आरंभ होता है। ‘गुरु बिना ज्ञान अधूरा’ वाली उक्ति वस्तुतः सत्य ही है। वास्तव में गुरु द्वारा ही ज्ञान प्राप्त होता है- यह बात तंत्र में अधिक महत्त्व रखती है क्योंकि इस क्षेत्र में अनेक रहस्यों को गुप्त करने के लिए शास्त्रकारों ने आदेश दिए हैं। इसके अलावा तंत्र साधना में ज्ञान के साथ-साथ कर्म को उतना ही महत्त्व दिया गया है। यहां इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि ज्ञान तो शास्त्रों, पुस्तकों आदि से भी मिल जाता है, किंतु कर्म-क्रिया की पद्धति केवल गुरु द्वारा ही प्राप्त होती है। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गुरु द्वारा प्राप्त मार्गदर्शन से एक निश्चित संरक्षण भी मिल जाता है। उसमें संदेह करने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती। समस्त मंत्रों का मूल गुरु है और गुरु ही परम तप है। गुरु की प्रसन्नता मात्र से शिष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है। गुरु की कृपा से शक्ति प्रसन्न होती है और शक्ति की प्रसन्नता से मोक्ष प्राप्त होता है। इसलिए गुरु की आज्ञा का उल्लंघन कभी नहीं करना चाहिए तथा एक सेवक की भांति उसकी आज्ञा का पालन करना चाहिए। इतना ही नहीं, गुरु की पादुका, आसन, वस्त्र, शैया और भूषणादि देखकर उन्हें भी हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए। उपासना मार्ग के साधक के लिए गुरु-स्मरण का बड़ा महत्त्व है। प्रातःकाल निद्रा का त्याग करते ही हाथ-पैर और मुख आदि का ठीक से प्रक्षालन करके सहस्रार में गुरु, परमगुरु तथा परमेष्ठी गुरु का गुरु के उपदेशानुसार गुरु-पादुका मंत्र का जप करके स्मरण करना चाहिए। गुरुमंत्र इस प्रकार है ‘ओउम ऐं (गुरु का नाम बोलें) आनंदनाथाय गुरवे नमः ओउम’। इस प्रकार गुरु मंत्र अथवा गुरु पादुका मंत्र जो उपदेश से प्राप्त हुआ हो, उसका जप करें।  


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