सुकेत क्षेत्र में खोजे गए थे आदि मानव पत्थरों के उपकरण

By: Feb 12th, 2020 12:19 am

हिमाचल का इतिहास भाग-8

1974 में भारतीय भू वैज्ञानिक विभाग के पीसी खन्ना और दक्षिण कालेज के प्रो. रावी जोशी, डा. एनएस राजगुरु आदि ने सिरमौर जिला में मार्कंड नदी घाटी के सुकेती क्षेत्र में खोज करके आदि मानव के पत्थरों के उपकरण प्राप्त किए हैं। ये उपकरण ऐसे ही हैं जैसे कि सिरसा सतलुज नदी घाटियों में पाए गए थे…

गतांक से आगे

इसी प्रकार श्री कृष्णास्वामी तथा अमलेंदु गुहर को भी सतलुज के बिलासपुर क्षेत्र में खोज करते समय ऐसे ही उपकरण प्राप्त हुए। इसमें कच्चे गंडासे और भारी प्रकार की तेज धार वाली पत्थर की पपडि़यां थीं। 1974 में भारतीय भू वैज्ञानिक विभाग के पीसी खन्ना और दक्षिण कालेज के प्रो. रावी जोशी, डा. एनएस राजगुरु आदि ने सिरमौर जिला में मार्कंड नदी घाटी के सुकेती क्षेत्र में खोज करके आदि मानव के पत्थरों के उपकरण प्राप्त किए हैं। ये उपकरण ऐसे ही हैं जैसे कि सिरसा सतलुज नदी घाटियों में पाए गए थे। अभी थोड़े समय पूर्व भारतीय पुरातत्त्व विभाग ने जम्मू प्रांत में कठुआ के पास रावी नदी घाटी में कुरां, पिनवानी, तारा, माह और जगतपुर में उत्तर पाषाण कालीन सांस्कृतिक स्थलों का पता लगाया है। वहां पर उन्हें पत्थर की गुटियों से बनाए हुए उपकरण मिले, जिन्हें वे लोग जानवरों की खाल निकालने, उनका मांस काटने और हड्डियों आदि को तोड़ने के लिए प्रयोग में लाते रहे होंगे। इस भूभाग के आदि मानव ने 6,00,000 वर्ष से 6000 वर्ष पूर्व तक किस प्रकार अपना जीवन यापन तथा भौतिक विकास किया, इन अवशेषों से यह भी पता चलता है।  पाषाण युग के बाद उत्तर भारत में ताम्रयुग का आविर्भाव हुआ। इस युग में आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व सिंधु नदी से लेकर हिमाचल की तराई तक अभूतपूर्व उन्नति हुई। जिसके सबसे अधिक अवशेष मोहनजोदड़ों, हड़प्पा और शिमला की पहाडि़यों के आंचल में बसे रोपड़ के पास मिलते हैं। रोपड़ में ताम्रयुग से भी प्राचीनतम अर्थात् नवपाषण युग की सभ्यता के प्रमाण पाए जाते हैं। अनेक चट्टानों के स्तर से ऐसा प्रतीत होता है कि कुल छह सांस्कृतिक काल हुए। इनमें से पहले दो उपाध्य ऐतिहासिक काल में हुए। प्रथम काल हड़प्पा तथा उससे व्युत्पन्न संस्कृत काल था। इसे दो भागों में बांटा गया है। नीचे के स्तरों में परिपक्कव हड़प्पा संस्कृति के अंतिम काल के  अवशेष पाए जाते हैं और ऊपर के स्तरों में मृच्छिल्प पंरपरा के प्रमाण मिलते हैं। कोटला-निहंग के अवशेषों से ऐसा प्रतीत होता है कि यहां हड़प्पा संस्कृति के लोग रोपड़ की अपेक्षा पहले आकर बसे थे। यहीं से वे लोग शिवालिक पहाडि़यों के आंचल से होते हुए सरस्वती-यमुना नदियों की ओर बढ़े, जिसका पता इस भाग में मिले भूरे रंग के मिट्टी के चित्र बरतनों से लगता है। अतः इसका विस्तार प्रायः सारे उत्तरी भारत तथा हिमालय की निचली पहाडि़यों में पाया जाता है। दूसरे वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार जिन्हें वनस्पति विकास शास्त्री कहते हैं, गेहूं सबसे पहले हिमाचल और हिंदुकुशकी तलहटी में पंजाब के किसी स्थान पर उगा या उगाया गया था। इस प्रकार सभ्यता का श्रीगणेश उस स्थान पर हुआ और वहीं से पश्चिम की ओर फैल गया जहां सबसे पहले अन्न उपजने लगा और पशु पाले जाने लगे।                                                                       क्रमशः


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