हमारे ऋषि-मुनि, भागः 28 :ऋषि जरत्कारु

By: Feb 22nd, 2020 12:16 am

एक दिन ऋषि अपनी पत्नी की गोद में सिर रखकर सो रहे थे। सूर्यास्त होने का समय हो गया। पत्नी ने उन्हें जगाकर अपने धर्म का पालन करने को कहा। वह चीख उठे नागकन्या तूने मेरे आराम में खलल डाला है। यूं जगाकर मेरा अपमान किया है। मैं नियमित सूर्य भगवान को अर्घ्य देता हूं। तूझे जान लेना चाहिए था कि मेरा अर्घ्य ग्रहण किए बिना सूर्यास्त नहीं हो सकता। तूने मुझे जगाकर प्रतिज्ञा तोड़ दी, अब मैं तुम्हारे पास नहीं रहूंगा। मैं अपनी शर्त पर अटल हूं…

पूर्वकाल में यायावर नाम का ऋषिवर्ग हुआ करता था। उस वंश में अब एक ही पुत्र हुआ नाम था जरत्कारु। मां-बाप तो रहे नहीं,अतः वह जंगलों में रहकर भांति-भांति के तप किया करते, हजारों वर्ष तप किया। फल, फूल, पत्ते खाकर निर्वाह किया करते। शरीर बहुत ही क्षीण हो गया। 

जब अपने पितरों से मिले जरत्कारु

वन में घूम रहे थे कि उन्हें एक सूखे हुए कुएं से दुःखीजनों की आवाजें सुनाई दीं। वह ठिठके उधर गए। कुछ व्यक्ति कुएं में सूखी हुई घास को पकड़कर उल्टे लटके हुए थे। एक चूहा घास को भी काटने का प्रयास कर रहा था। जरत्कारु ने पूछ लिया, आप कौन हैं? उन्होंने बताया हम यायावर ऋषि वर्ग से हैं। हम पितर लोक तो गए मगर हमारे वंश में कोई न होने से हम नीचे आ गिरे। केवल एक संतान है,जिसका नाम जरत्कारु है। वह भी विवाह नहीं कर रहा। अपना वंश आगे नहीं बढ़ रहा,इसलिए हमारी यह गति हो रही है।  दिया परिचय ऋषि जरत्कारु ने अपना परिचय देते हुए कहा, मैं ही आपका वंशज हूं। मेरे कारण आपकी दुर्गति हो रही है,इसका मुझे दुःख है। मैं आपका यायावर ऋषि वंश तो चला लूं,मगर मेरे योग्य कोई ब्राह्मण कन्या तो मिले जो मेरे ही नाम वाली हो। इतना सुनते ही पितर बहुत प्रसन्न हुए और पुनःपुनः आशीर्वाद देने लगे। जरत्कारु तभी चल पड़े अपने नाम वाली कन्या की तलाश में। विवाह करना और वंश चलाना उनका ध्येय ही हो गया। तपश्चर्या छूट गई। जब काम नहीं बना, तो वह जोर-जोर से रोने लगे। अपने पितरों का उद्धार करें, तो कैसे? उन्हें यूं रोता-चिल्लाता तथा दुःखी देखकर नागों के राजा वासुकि वहां आए।

कन्या मिली अपने नाम की

राजा वासुकि अपनी वहन को लेकर जरत्कारु के सामने आए और बोले, मैं आपकी अवस्था को समझता हूं इसलिए अपनी वहन को साथ लाया हूं। आप इससे विवाह करें, यह तैयार है।  ऋषि ने उसका नाम पूछा? इसे सुनते ही वासुकि ने कहा, कन्या का नाम जरत्कारु। तब ऋषि जरत्कारु ने कहा, नागराज मैं भी तैयार हूं। मैं विवाह करने के पश्चात तब तक इस कन्या के साथ रहूंगा,जब तक इसका आचरण पूरी तरह मेरे अनुरूप न हो जाए,वरना मैं इसे त्याग कर चला जाऊंगा।

विधिपूर्वक हुआ विवाह

नागराज वासुकि ने शर्त स्वीकार कर ली। दोनों का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हो गया। दोनों नागलोक में आनंदपूर्वक रहने लगे। नागकन्या ने कुछ ही समय में गर्भधारण कर लिया। एक दिन ऋषि अपनी पत्नी की गोद में सिर रखकर सो रहे थे। सूर्यास्त होने का समय हो गया। पत्नी ने उन्हें जगाकर अपने धर्म का पालन करने को कहा। वह चीख उठे नागकन्या तूने मेरे आराम में खलल डाला है। यूं जगाकर मेरा अपमान किया है। मैं नियमित सूर्य भगवान को अर्घ्य देता हूं। तूझे जान लेना चाहिए था कि मेरा अर्घ्य ग्रहण किए बिना सर्यास्त नहीं हो सकता। तूने मुझे जगाकर प्रतिज्ञा तोड़ दी, अब   तुम्हारे पास नहीं रहूंगा। मैं अपनी शर्त पर अटल हूं। वन को चले गए ऋषि जरत्कारु ने विवाह की शर्त भंग होने के कारण अपनी पत्नी नागकन्या का परित्याग कर दिया। स्वयं तप के लिए वन में चले गए। कुछ  समय बाद नागकन्या ने जरत्कारु के पुत्र आस्तिक को जन्म दिया। उन्होंने ही जनमेजय के नागयज्ञ में समस्त नागों को भस्म होने से बचा लिया था।                                            – सुदर्शन भाटिया 


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