हिमाचली लेखकों का बाल साहित्य में रुझान और योगदान

By: Feb 23rd, 2020 12:16 am

डा. प्रत्यूष गुलेरी

मो.-9418121253

बाल साहित्य लेखन परंपरा में हिमाचल का योगदान-3

अतिथि संपादक : पवन चौहान

बाल साहित्य की लेखन परंपरा में हिमाचल का योगदान क्या है, इसी प्रश्न का जवाब टटोलने की कोशिश हम प्रतिबिंब की इस नई सीरीज में करेंगे। हिमाचली बाल साहित्य का इतिहास उसकी समीक्षा के साथ पेश करने की कोशिश हमने की है। पेश है इस विषय पर सीरीज की तीसरी किस्त…

विमर्श के बिंदु

* हिमाचली लेखकों का बाल साहित्य में रुझान और योगदान

* स्कूली पाठ्यक्रम में बाल साहित्य

* बाल चरित्र निर्माण में लेखन की अवधारणा

* इंटरनेट-मोबाइल युग में बाल साहित्य

* वीडियो गेम्स या मां की व्यस्तता में कहां गुम हो गई लोरी ?

* प्रकाशन की दिक्कतों तथा मीडिया संदर्भों से जूझता बाल साहित्य

* मूल्यपरक शिक्षा और बाल साहित्य

* बाल साहित्य और बाल साहित्यकार की अनदेखी, जिम्मेदार कौन?

* हिमाचल में बाल पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका

* हिमाचली बाल साहित्य में लोक चेतना

* वर्तमान संदर्भ में बच्चों तक बाल साहित्य की पहुंच

बाल साहित्य से तात्पर्य उस साहित्य से है जिसकी रचना बच्चों को ध्यान में रखकर की गई है। यह साहित्य प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बालकों में नैतिक, चारित्रिक और आदर्श मूलक जीवन मूल्यों को समाहित करने में प्रेरक भूमिका का निर्वाह करता है। बाल साहित्य बालकों के विकास की सुदृढ़ नींव माना गया है। स्वतंत्रता से पूर्व हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखकों में प्रेमचंद, जैनेंद्र, सोहनलाल द्विवेदी, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, माखनलाल चतुर्वेदी, निरंकार देव सेवक, सुभद्रा कुमारी चौहान और विष्णु प्रभाकर ने बाल साहित्य के बीज बोकर पुष्पित-पल्लवित कर दिया था। यही बाल साहित्य का सुदृढ़ आधार है। उस समय की स्वतंत्र बालक, बाल दर्पण, राजा भैया, बालसखा, विद्यार्थी, चंदामामा, बालभारती, पराग, नंदन, लोटपोट, बालहंस, स्नेह बाल पत्रिकाएं हैं। कुछ तो अब भी अपना योगदान प्रदान कर रही हैं। वर्तमान में जब कई बाल पत्रिकाएं दम गिन रही हैं, तब उस समय में डा. भैरूंलाल गर्ग के संपादन में छपने वाली पत्रिका ‘बाल वाटिका’ ने बाल साहित्य के विशेषांक प्रकाशित कर नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। हमारा अभिप्राय यहां हिमाचली लेखकों का बाल साहित्य में रुझान और योगदान से है। हिमाचल में रचित बाल साहित्य पर सर्वप्रथम शोध करने वाली विदुषी डा. अदिति गुलेरी को यह श्रेय जाता है जिसने हिमाचल में रचित ‘बाल साहित्य सर्वेक्षण एवं विश्लेषण’ विषय पर पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से पीएचडी उपाधि हेतु शोध प्रबंध प्रस्तुत किया। डा. अदिति के शोध कार्य से हमें समेकित रूप से अनेक सारे हिमाचली बाल साहित्यकारों से रूबरू होने का अवसर मिला है। सुखद आश्चर्य तब होता है जब यह मालूम होता है कि बाल साहित्य पर सर्वप्रथम शोधकार्य करने वाले हिंदी के कथाकार व उपन्यास लेखक मस्तराम कपूर भी हिमाचल के थे। हिमाचल में बाल साहित्य का सृजन कोई नया प्रयोग नहीं है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी को यदि प्रदेश के बाल साहित्य का जनक कहा जाए तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। गुलेरी जी के ‘कछुआ धर्म’ और ‘न्याय का घंटा’ को अदिति ने बालकों के लिए लिखे आलेख माना है। यही नहीं, ‘झूठी कमान’ को बाल कविता भी। गुलेरी जी के बाद पंडित संतराम वत्स्य हिंदी बाल साहित्य में जाना-पहचाना नाम है। अपने जीवन काल में उन्होंने 140 बाल पुस्तकें बाल साहित्य को दी हैं। बाल कथा सरोवर, खिलौनों का पेड़, सच्चे मित्र और मां की ममता कहानियों की पुस्तकें हैं। वत्स्य जी शिष्टाचार और सदाचार को जीवन का अंग मानते थे। उनका साहित्य राष्ट्रीय चेतना को जगाने और भारतीयता के बारे में जानकारी देने वाला साहित्य है। दूसरा महत्त्वपूर्ण एवं विशिष्ट नाम मस्तराम कपूर ‘उर्मिल’ का है। वे बाल साहित्य के प्रणेता, समालोचक, कथाकार, चिंतक और पत्रकार के रूप में प्रख्यात रहे। उनकी पहली कहानी ‘बहन’ दिसंबर 1957 में मुंबई के नवभारत टाइम्स में छपी थी और फिर इलाहाबाद से छपने वाले ‘मनमोहक’ तथा ‘बालसखा’ में बराबर लिखते रहे।

डा. कपूर के बाल साहित्य में हिमाचली माटी की भीनी-भीनी गंध मौजूद है। इनकी बालोपयोगी कृतियां हैं-‘किशोर जीवन की कहानियां’, ‘दंड का पुरस्कार’, ‘चोर की तलाश’, ‘बेजुबान साथी’ और ‘मुंह मांगा इनाम’। बाल उपन्यासों में ‘नीरू और हीरू’, ‘सपेरे की लड़की’ तथा ‘नाक का डॉक्टर’। नीति और बोधपरक बाल कहानियां लिखने में डा. मनोहर लाल भी अग्रणी रहे, परंतु असामयिक निधन से प्रदेश ने एक होनहार बाल साहित्यकार को खो दिया था। उपर्युक्त तीनों साहित्यकार दिल्ली में रहकर बाल साहित्य का सृजन करते रहे।

हिमाचल में रहकर बाल साहित्य का सृजन करने वाले साहित्यकारों में डा. अदिति गुलेरी ने जिन बाल साहित्यकारों के नाम गिनाए हैं, उनमें डा. सुशील कुमार फुल्ल, डा. प्रत्यूष गुलेरी, गिरिधर योगेश्वर, कृष्णा अवस्थी, पीयूष गुलेरी, गौतम व्यथित, संतोष शैलजा, सैन्नी अशेष, रतन चंद रत्नेश, श्रीनिवास जोशी, आशा शैली, अशोक सरीन, प्रेमसागर कालिया, राम प्रसाद ‘प्रसाद’ प्रमुख हैं। अब आज राष्ट्रीय स्तर की बाल पत्रिकाओं में हिमाचली साहित्यकारों में पवन चौहान, प्रत्यूष गुलेरी, अनंत आलोक, अदिति गुलेरी, प्रतिभा शर्मा, राम प्रसाद ‘प्रसाद’, नलिनी विभा नाजली, राजीव त्रिगर्ती, कंचन शर्मा और आशु फुल्ल के नाम गिनाने योग्य हैं। सुशील कुमार फुल्ल ने बच्चों के लिए बाल उपन्यास और मौलिक कहानियों का सृजन किया है। ‘टकराती लहरें’, ‘लाल मिट्टी की करामात’ और ‘वापसी’ उनके चर्चित बाल उपन्यास हैं। लंबे समय से प्रवृत्त बाल साहित्य लेखन में प्रत्यूष गुलेरी ने बाल कविताएं और कहानियां लिखी हैं जो समय-समय पर राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में छपती आ रही हैं। 2009 में बालगीत पुस्तक नेशनल बुक ट्रस्ट से छपकर चर्चित रही है। ‘मेरी 57 बाल कविताएं’ 2018 में आई है। बाल कहानियों में आधी पूंछ वाला राक्षस, दादी की दिलेरी और लंगड़ी बकरी प्रमुख हैं। राममूर्ति वासुदेव भी कविता-कहानी लेखन में सक्रिय हैं। ‘शीला बोली’ बाल कहानियों की पुस्तक है। गौतम व्यथित ने बच्चों के लिए लोक कथाओं की पुस्तकें सचित्र छापी हैं। ‘हमें बुलाती छुक-छुक रेल’ पीयूष गुलेरी, कृष्णा अवस्थी की ‘झिलमिल तारे’ भी कविता की पुस्तकें हैं। सैन्नी अशेष की ‘अशेष बाल कथाएं’ विशेष चर्चित है। इस आलेख में सामान्य रूप से यहां बाल साहित्य में हिमाचल प्रदेश का क्या योगदान रहा है, इसकी संक्षिप्त जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। कभी फिर मौका मिला तो विस्तृत प्रकाश डाला जा सकता है।


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