हिमाचल के दो निजी विश्वविद्यालयों ने बेच डालीं लाखों फर्जी डिग्रियां

By: Feb 21st, 2020 12:07 am

यूजीसी की रिपोर्ट में खुलासा, सरकार को पत्र लिख तुरंत कार्रवाई को कहा

शिमला  – हिमाचल प्रदेश की निजी शिक्षा व्यवस्था एक बार फिर से सवालों के घेरे में आ गई है। यूजीसी यानी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने देश भर के ऐसे फर्जी शिक्षण संस्थानों की लिस्ट जारी की है, जो छात्रों को फर्जी डिग्रियां देते है। हैरत की बात यह है कि ऐसे शिक्षण संस्थानों में हिमाचल के दो बहुचर्चित निजी विश्वविद्यालयों के नाम भी शामिल हैं, जिन्होंने लाखों की संख्या में फर्जी डिग्रियां बेची हैं। यूजीसी ने इस मामले पर राज्य सरकार को पत्र लिखकर तुरंत कार्रवाई करने को कहा है। गौर हो कि निजी शिक्षण संस्थानों में लगातार शिक्षा के नाम पर इस तरह का व्यापार हो रहा है। लाखों रुपए लेकर फर्जी डिग्रियां देने का यह धंधा शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा खतरा है। बता दें कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने राज्य सरकार को जो चिठ्ठी लिखी है, उसमें यूजीसी ने देश की 13 यूनिवर्सिटियों के नाम लिखे हैं। इस लिस्ट में यूजीसी ने हिमाचल के दो बहुचर्चित विश्वविद्यालयों को शामिल किया है। विभागीय जानकारी के अनुसार यूजीसी ने प्रदेश सरकार को इस बाबत पांच से छह माह पहले लैटर भेज दिया था। यही वजह है कि जयराम सरकार ने कार्रवाई के लिए इसका जिम्मा निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग को सौंपा है। अब शिक्षा नियामक आयोग ने इस पर जांच करना शुरू कर दिया है। बताया जा रहा है कि दोनों शिक्षण संस्थानों को प्रदेश सरकार बड़ा जुर्माना लगा सकती है, वहीं इन विश्वविद्यालयों के प्रशासन से जवाब भी तलब किया जाएगा। फिलहाल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सरकार को जो पत्र लिखा है, उसमें निजी शिक्षण संस्थानों के खिलाफ तल्ख शब्दों का प्रयोग किया है। यूजीसी की मानें तो निजी शिक्षण संस्थान एक-एक डिग्री के लिए मोटी रकम लेते हैं। फर्जी डिग्री बनाने और बेचने के लिए फुलप्रूफ सिस्टम बनाया गया है। बाकायदा देश के अलग-अलग हिस्सों में एजेंट बिठाए गए हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने फटकार लगाते हुए कहा है कि डिग्रियां बेचने का यह व्यापार ऐसे ही चलता रहा, तो एक दिन हर भारतीय अकादमिक अनपढ़ बन जाएगा। पत्र में आगे लिखा है कि हमें खुशी हो रही है कि डिग्रियां बेचने वाली उन यूनिवर्सिटियों के नाम बता रहे हैं, जिन्होंने पिछले 12 सालों में हजारों डिग्रियां बेची हैं। हिमाचल के एक निजी शिक्षण संस्थान पर टिप्पणी करते हुए यूजीसी ने कहा है कि इसने दो से तीन साल में तो कोई फर्जी डिग्री नहीं दी है, लेकिन अब तक यह सस्ंथान 15 हजार से ज्यादा डिग्रियां बेच चुका है। यूजीसी के अनुसार उक्त निजी विश्वविद्यालय में जितने भी कोर्स करवाए जाते हैं, उनमें सीटें सीमित होने की बजाय भी इतनी संख्या में डिग्रियां बेची जा चुकी हैं। आगे लिखा है कि निजी शिक्षण संस्थान ने वे डिग्रियां भी बेची हैं, जिनपर एआईसीटीई, एनसीटीई और बीसीआई जैसी वैधानिक संस्थाओं ने रोक लगा रखी है। राज्य का दूसरा निजी संस्थान ऐसा भी है, जिसने बीते सात सालों में चार से पांच लाख डिग्रियां बेची हैं। डिग्रियां बेचने के लिए पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यूपी, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत में एजेंट रखे गए हैं। यूजीसी ने पत्र में बताया है कि एक संस्थान ने तो विदेशी संस्थान की डिग्री तक खुद प्रिंट करके बेच डाली है। श्रीलंका की जयसूर्या ओपन यूनिवर्सिटी फॉर कंपलिमेंटरी मेडिसिन की डिग्री यहां प्रिंट की गई है। यूजीसी ने पत्र में लिखा है कि फर्जी डिग्री के इस खेल में शिक्षण संस्थानों ने भारी भरकम फीस वसूली है। फिलहाल इस पूरे मामले पर नियामक आयोग का कहना है कि संस्थानों के खिलाफ आगामी कार्रवाई करना शुरू कर दिया है। फर्जी डिग्रियों की जांच के लिए डीजीपी को पत्र लिखा गया है।

सात माह पहले मिल गया था यूजीसी का पत्र

निजी शिक्षण संस्थानों में इतने सालों से चल रहा फर्जी डिग्रियों का खेल प्रदेश सरकार पर भी कई सवाल उठाता है। हैरानी इस बात की है कि यूजीसी द्वारा यह लैटर 30 अगस्त, 2019 को लिखा गया है। यानी सात महीने पहले यह पत्र हिमाचल सरकार को भेज दिया गया था, बावजूद इसके अभी तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। एक बात स्पष्ट है कि फर्जी डिग्री के लिए जिनती दोषी निजी शिक्षण संस्थान हैं, उतने ही दोषी वे लोग हैं, जिन्होंने डिग्री खरीदी और उतना ही दोषी वह सरकारी तंत्र है, जिसकी नाक के नीचे यह खेल चलता रहा। फिलहाल इस मामले पर अब क्या कार्रवाई होती है, यह देखना अहम होगा।


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