हिमाचल को भूगोल के अध्ययन से जोड़े

By: Feb 11th, 2020 12:05 am

डा. सीमा चौधरी

लेखिका, शिमला से हैं

कृषि, औद्योगिकीकरण, व्यवसायीकरण तथा विज्ञान का हर पहलू भूगोल के साथ जुड़ा है। परंतु आज के संदर्भ में भूगोल जैसे विषय का विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में बहुत कम स्तर तक पढ़ाया जाना चिंता का विषय है। भौगोलिक ज्ञान के अभाव में हम विकास तो कर रहे हैं परंतु उसे सतत बनाने की समझ ग्रहण नहीं कर रहे हैं…

एक पौधा वृदा का रूप तब धारण करता है जब उसकी जडे़ धरती के साथ जुड़ी रहती हैं। इसमें कोई दोराय नहीं है कि पौधे को अन्य तत्त्वों की आवश्यकता भी होती है, परंतु वह सब कारण तभी सुखद फल देते हैं जब वह पौधा अपने धरातल को पकड़े रहता है। आज के संदर्भ में मनुष्य चांद और मंगल जैसे ग्रहों पर पहुंचने के बाद, अंतरिक्ष में अपने आप को स्थापित करने का निरंतर प्रयास कर रहा है। यह सब प्रयास निस्संदेह प्रशंसनीय है, परंतु यदि हम इन प्रयासों को पृथ्वी के संदर्भ में देखें, तो यह प्रयास निराश भी करता है। पृथ्वी जैसे खूबसूरत ग्रह को मानव ने आज एक चिंतनीय स्थिति पर ला कर खड़ा कर दिया है। नए ग्रहों की खोज से यह समझ आता है कि मनुष्य एक नए स्तह की तलाश में है जहां जीवन शुरू किया जा सके। धरती की यह स्थिति मनुष्य ने अपने लालच में आकर की है। उसने पृथ्वी से जितना हो सके धन संपदा को लूट कर उसे एक विषैले ग्रह में तबदील करने का काम किया है। मनुष्य जैसे समझदार जीव को तो पहले से ही सतत विकास के बारे में सोच कर चलना चाहिए था, जो कि अब सोचा जा रहा है। मनुष्य की इस पिछड़ी हुई विचारधारा का एक मुख्य कारण उसकी भूगोल विषय के प्रति अज्ञानता भी कही जा सकती है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मनुष्य के दिमाग का विकास, भूगोल के जान के अधिग्रहण के साथ-साथ कहां हुआ। उसने सबसे पहले अपने आस-पास के वातावरण को पहचाना और उसमें अपने आप को ढालने की कला को सीखा।

मानव विकास का शायद ही कोई पहलू होगा जो भूगोल के साथ न जुड़ा हो। कृषि, औद्योगिकीकरण, व्यवसायीकरण तथा विज्ञान का हर पहलू भूगोल के साथ जुड़ा है। परंतु आज के संदर्भ में भूगोल जैसे विषय का विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में बहुत कम स्तर तक पढ़ाया जाना चिंता का विषय है। भौगोलिक ज्ञान के आभाव में हम विकास तो कर रहे हैं परंतु उसे सतत बनाने की समझ ग्रहण नहीं कर रहे हैं। भारत में ज्यादातर भूगोल को केवल एक विषय के रूप में देखा जाता है और उत्तर भारत में तो इसकी स्थिति अत्यंत दयनीय है। यदि गहराई से सोचा जाए तो भूगोल ही हम सब का आधार है तथा इसकी जानकारी और समझ के आभाव में मनुष्य किसी भी क्षेत्र में सतत विकास की कल्पना भी नहीं कर सकता। उत्तर भारत में भी केवल हिमाचल प्रदेश की बात करें तो यहां पर भूगोल जैसा विषय अपनी अंतिम सासें लेता हुआ सा प्रतीत होता है। विडंबना तो यह है कि यह राज्य अपनी आय का अधिकतर हिस्सा इसी भौगोलिक विशेषता की वजह से अर्जित करता है, परंतु इस विषय को प्राथमिकता एवं उच्च स्तर की शिक्षा प्रणाली में पूर्ण रूप से ग्रहण करने में संकोच करता रहा है। यदि 2017 के आंकड़ों पर नजर जाए जो समझ में आता है कि हिमाचल प्रदेश में चल रहे 1841 राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में से केवल 238 (12.92 प्रतिशत ) पाठशालाओं में ही भूगोल विषय पढ़ाया जाता है। इसी प्रकार प्रदेश के 134 महाविद्यालाओं में से केवल 55 (41.04 प्रतिशत) महाविद्यालाओं में ही भूगोल विषय को पढ़ाया जाता है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि बिना आधारभूत (भूगोल विषय) जानकारी के अभाव में ही छात्र अन्य विषयों से जुड़े हैं तथा उन्हें अपने जीवन में रोजगार तथा अन्य रूपों में स्वीकार करते हैं।

भौगोलिक जानकारी के अभाव वह अपने विषय की परिधि तक ही सीमित रहते हैं तथा अपने उस विषय का समाज कल्याण में पूर्ण रूप से प्रयोग करना नहीं सीख पाते। भूगोल विषय का जमीनी स्तर पर कम पढ़ाया जाने के कारण अन्य कई गंभीर मुद्दे सामने आते हैं। पहला मुद्दा यह है कि जब हमें आसपास के वातावरण की समझ ही नहीं होगी तो विकास के लिए किए गए फैसले सही नहीं हो सकते। दूसरा मुद्दा यह है कि जो व्यक्ति इस बात को समझता है कि भौगोलिक ज्ञान सतत विकास के लिए आवश्यक है,वह आज बेरोजगारी से ज्ञात है तथा उसे अपनी बुद्धि कौशल का उपयोग करने का अवसर प्राप्त नहीं हो रहा है। इस समय प्रदेश में चार संस्थान भूगोल में स्नातकोत्तर की डिग्री छात्रों को प्रदान कर रहे हैं। इन संस्थानों से हर वर्ष  लगभग 80-90 छात्र-छात्राएं इस विषय का गहन अध्ययन करके घर बैठेने को मजबूर हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण इस विषय को केवल ऐच्छिक  विषय का दर्जा दिया जाना तथा इसकी गंभीरता के सरकार द्वारा सिरे से नकार दिया जाना है। पर्यावरण को बचाने तथा उससे संबंधित ज्ञान प्राप्त करने के लिए पर्यावरण विषय को अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रमों में स्थापित किया गया है। यहां पर विडंबना यह है कि जिस धरती के बिना पर्यावरण का अतिरिक्त संभव नहीं है,उसके व्यावहारकि ज्ञान को उपेक्षित किया जा रहा है। भूगोल विषय से जुड़ा तीसरा सबसे अहम मुद्दा इसे पढ़ने वाले छात्रों के इस विषय के प्रति सकारात्मक सोच के दिन प्रतिदिन नकारात्मकता में बदलती जा रही है। यदि इसे समय रहते हुए न रोका गया तो आने वाला समय सभी के लिए शुभ संकेत नहीं लेकर आने वाला। हम अपनी इस धरा को बचाने के लिए बात,बहस, चर्चा इत्यादि  केवल कुछ चुने हुए दिनों तक ही सीमित रखते हैं। हालांकि होना यह चाहिए कि जब हम रोज इस धरा का  उपभोग करते हैं तो रोज इसे पुनर्जीवित करने का प्रयत्न भी होना चाहिए। धरती के सतत विकसा के लिए भूगोल विषय का आम जीवन में समझा जाना बहुत लाभदायक सिद्ध हो सकता है। धरती को बचाने के लिए दो-तीन दिन काफी नहीं हो सकते, अपितु हमें निरंतर इस विषय के बारे में बात करते रहना होगा। यह तभी संभव हो सकता है जब हम इसे आवश्यक समझने हुए पाठन की गतिविधियों में शामिल करेंगे।

 


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