अधूरा आर्थिक पैकेज

By: Mar 27th, 2020 12:05 am

कोरोना वायरस से उपजे महासंकट के मद्देनजर और देश की अर्थव्यवस्था को कुछ उबारने के लिए आर्थिक पैकेज बहुत जरूरी था। घोषणा हुई,लेकिन पैकेज अधूरा या सीमित करार दिया जा सकता है। फिलहाल उत्पादन और खनन आदि की गतिविधियां ठप्प हैं। बाज़ार में रोजगार और आम आदमी की मांग खत्म हो रही है। बाजार और उद्योग ही बंद हैं। सबसे ज्यादा मार असंगठित क्षेत्र के कामगारों पर पड़नी तय है। सूक्ष्म और लघु उद्योगों के पास कर्ज की अदायगी और उत्पादन को सुचारू रखने को पूंजी का संकट गहराता जा रहा है। गरीब और मजदूर छोटे बच्चों के साथ सड़कछाप होने और 300-400 किलोमीटर पैदल चलकर अपने घरों को लौटने को विवश हैं। रोजगार के अवसर वहां भी नहीं होंगे, लिहाजा कोरोना के विस्फोट से देश को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। प्रख्यात चिकित्सक कोरोना महामारी का कहर विश्व-युद्ध और परमाणु हमले से भी ज्यादा विध्वंसक और विनाशकारी मान रहे हैं। इस विभीषिका का निष्कर्ष क्या होगा, हम तभी आकलन और विश्लेषण कर पाएंगे, जब हम उस दिन के लिए जीवित बचेंगे। बहरहाल आर्थिक पैकेज कुछ राहत दे सकता है। कोरोना वायरस से नागर विमानन, पर्यटन, होटल समेत कई और क्षेत्र अत्यंत प्रभावित हुए हैं। चूंकि देश भर में लॉकडाउन लागू है। सिर्फ  जरूरी सेवाओं को छोड़ कर सब कुछ बंद है, लिहाजा आर्थिक चक्र की कल्पना की जा सकती है। ऐसे में मोदी सरकार का आर्थिक पैकेज कुछ दिलासा दे सकता है, क्योंकि 1.70 लाख करोड़ रुपए का पैकेज कम नहीं होता, लेकिन सरकार गरीब कल्याण तक ही सीमित रही है। कोरोना के इस दौर में स्वास्थ्य कर्मियों के लिए 50 लाख रुपए प्रति का बीमा, बेशक, ऐतिहासिक निर्णय है,क्योंकि वे ही कोरोना के मोर्चे पर लड़ने वाले ‘प्रथम योद्धा’ हैं। करीब 20 लाख हैल्थ वर्कर की जिंदगी सुरक्षित हो सकेगी। यह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का दावा है। इसके अलावा, करीब 80 करोड़ गरीब और सिर्फ  गरीबों को पांच  किलोग्राम  गेहूं या चावल और एक किलो दाल अगले तीन महीनों तक अतिरिक्त सहायता के तौर पर मुहैया कराए जाएंगे। भूख की बात केंद्र सरकार ने की है और कई मुख्यमंत्री भी कर चुके हैं। बेशक यह एक मानवीय सरोकार है। इसके अलावा, करीब 8.70 करोड़ किसानों को 2000 रुपए की किस्ेत अप्रैल के पहले सप्ताह में ही मिल जाएगी, मनरेगा में दिहाड़ी भी 182 रुपए से बढ़ाकर 202 रुपए करने की घोषणा की गई है, जन-धन खाते वाली 20 करोड़ महिलाओं को 500 रुपए प्रति माह आगामी तीन महीनों तक दिए जाएंगे। इस तरह  आर्थिक पैकेज का फोकस गरीब कल्याण,अन्नदाता और उज्ज्वला वाली औरतों पर ही केंद्रित रहा है, लिहाजा पैकेज ‘अधूरा’ है। कारण यह पैकेज राज्य सरकारों के जरिए ही लागू किया जाना है और राज्य सरकारें अपने गरीबों, मजदूरों, वंचितों और अप्रवासियों के लिए विभिन्न पैकेज घोषित कर चुकी हैं। सवाल है कि वे पैकेज भी मौजूद रहेंगे या सिर्फ  केंद्र का पैकेज ही दिया जाएगा? ये घोषणाएं नए सिरे से लागू की जाएंगी अथवा जारी योजनाओं का ही हिस्सा होंगी? यह साफ नहीं है। सवाल यह भी है कि केंद्र सरकार इतना पैसा कहां से जुटाएगी-बाजार से या रिजर्व बैंक से उधार लिया जाएगा?  इतने बड़े आर्थिक पैकेज में औद्योगिक मदद नदारद है। वित्त मंत्री का जवाब था कि उसके लिए ‘अध्ययन’ कर रहे हैं। प्रख्यात चिकित्सक डा. अशोक सेठ का विश्लेषण है कि यदि भारत में कोरोना तीसरे चरण तक फैल गया, तो कमोबेश 1.5-2 लाख वेंटिलेटर की जरूरत होगी,जबकि हमारे पूरे स्वास्थ्य  क्षेत्र के पास 30-40 हजार वेंटिलेटर ही हैं। संभावना यह है कि 25-30 लाख मरीज सामने आ सकते हैं। उनके आइसोलेशन की व्यवस्था कैसे होगी? अमरीका और इटली सरीखे विकसित देशों में यह जरूरत पूरी नहीं की जा पा रही है। लोग सड़कों पर मरने को विवश हैं। ऐसे परिदृश्य की कल्पना करते हुए कोई भी पैकेज अधूरा है, क्योंकि यह वाकई अधूरा है। यह दीगर है कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इस आर्थिक पहल की तारीफ  की है,क्योंकि  इसमें कांग्रेस की ही मांगों का समावेश किया गया है। बहरहाल हम अभी औद्योगिक पैकेज का इंतजार भी करेंगे।


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