आसमां पर बेटी

By: Mar 8th, 2020 12:10 am

महिला दिवस पर विशेष

चूल्हे-चौके की दुनिया से निकलकर आज हिमाचली बेटियां कामयाबी के फलक को छू रही हैं। बस से लेकर हवाई जहाज तक सफर करवाने में हिमाचली बेटियां भी किसी से कम नहीं हैं। कोई साइंटिस्ट बनकर विज्ञान की दुनिया में छाई है, तो कोई पायलट है। कोई डाक्टर है, तो कोई सेना में देवभूमि की शान बढ़ा रही है। आखिर क्यों हटकर हैं पहाड़ की बेटियां, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रस्तुत है दखल के बहाने कामयाबी की यह इनसाइड स्टोरी…

हर जगह लेडी बॉस

प्रदेश में लगभग अस्सी हजार महिलाएं सरकारी क्षेत्र में कार्यरत हैं। इसमें दस हजार महिलाएं बड़े ओहदे पर प्रदेश में सेवारत हैं। कुल मिलाकर देखा जा रहा है कि बड़े ओहदे पर पांच सौ महिलाएं हैं, जो सरकारी क्षेत्रों में अपने विभाग की बॉस हैं। इसमें सौ कर्मचारी शिक्षा विभाग में अपने क्षेत्र में बॉस हैं, जिसमें तृतीय श्रेणी में ये महिलाएं काम कर रही हैं। वहीं, स्वास्थ्य विभाग में पच्चास महिलाएं बड़े ओहदे पर काम कर रही हैं। बाकी अन्य विभागों में लगभग दो सौ महिलाएं बडे़ ओहदे पर शामिल हैं। इसमें पशुपालन, कृषि, आईपीएच विभाग शामिल हैं, जहां अपने विभिन्न प्रोजेक्ट की बॉस हैं। फिलहाल हिमाचल के लिए यह भी गौरव की बात है कि हिमाचल में पहली महिला ड्राइवर भी सेवाएं दे रही हैं। यह भी बताया जा रहा है कि प्रदेश में बैंक सर्विसेज में भी प्रदेश से लगभग चालीस महिलाएं बॉस हैं। बताया जा रहा है कि प्रदेश में निजी सेवाआें में लगभग पांच हजार महिला अपने विभाग में बॉस हैं, जिनके अंतर्गत कई लोग काम कर रहे हैं।

शिक्षा विभाग में महिलाएं…

प्रदेश में सबसे ज्यादा शिक्षा विभाग में सरकारी क्षेत्र में महिलाएं कार्यरत हैं। इसमें लगभग तीस हजार महिलाएं शिक्षा विभाग में विभिन्न ओहदों पर काम कर रही हैं, जिसमें शिक्षा विभाग में ज्वाइंट डायरेक्टर डा. सोनिया तैनात हैं। वहीं, प्रदेश के एकमात्र कन्या महाविद्यालय की पिं्रसीपल नवेंदू कार्यरत हैं। बताया जा रहा है कि इसमें शिक्षक के साथ ही क्लर्क के पद पर भी महिलाएं शिक्षा विभाग में सबसे ज्यादा काम कर रही हैं।

स्वास्थ्य विभाग में महिलाएं संभाल रहीं बडे़-बड़े ओहदे

दूसरा विभाग स्वास्थ्य है, जहां सबसे ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं। स्वास्थ्य विभाग में बड़े ओहदे पर दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं। इसमें एक पिड्रयाट्रिक्स की स्पेशलिस्ट डा. श्रुति हैं। वहीं, विभिन्न अस्पतालों में अपने विभाग की लगभग 50 महिलाएं बॉस हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में इनके दिशा-निर्देश में कई लोग काम कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग में लगभग पांच हजार महिलाएं हैं, जो स्वास्थ्य विभाग में सरकारी क्षेत्रों में काम कर रही है।

धर्मशाला की लेफ्टिनेंट क्षितिजा गौतम

धर्मशाला के चड़ी डढंब की बेटी क्षितिजा गौतम ने गौरवमय उपलब्धि हासिल की है। वह सेना में कमीशन पास कर लेफ्टिनेंट बनी हैं। डीएवी गोहजू और धर्मशाला में पढ़ने के बाद क्षितिजा ने बीएससी नर्सिंग की डिग्री हासिल कर अस्पताल प्रबंधन में एमबीए भी की। इसके बाद मोहाली में प्रतिष्ठित अस्पतालों में प्रशिक्षक व शिक्षका के रूप में भी सेवाएं दीं। इसी दौरान उन्होंने चंडीगढ़ में आयोजित भारतीय सौंदर्य प्रतियोगिता में भी फाइनल तक पहुंचकर लोहा मनवाया। क्षितिजा के पिता सतेंद्र गौतम बीएसएनएल से सेवानिवृत्त हुए हैं, जबकि माता अध्यापिका हैं। भाई स्वपनिल वाणिज्य में स्नातकोतर की पढ़ाई कर रहा है।

दिहिः बेटी को इस फील्ड में तैयार करने के लिए क्या रहा पैमाना, क्या रहीं कुर्बानियां?

उत्तर- शायद हम दोनों का देश प्रेम और सेना के प्रति आदर ही इस तैयारी की अदृश्य नींव बनी। कुछ सीखने की ललक ने उसे इस बात का एहसास करवा दिया था कि कुछ पाने के लिए आत्मशक्ति ही परम संबल है। पारिवारिक और सामाजिक परिवेश के सेना के प्रति सम्मान ने ही इस क्षेत्र में जाने को प्रोत्साहित किया। बेटी ने चंडीगढ़ में प्रतिष्ठित निजी चिकित्सा संस्थानों में शिक्षण और प्रशिक्षण कार्य किया, इससे उसे स्वयं भी सहायता मिली। संतान के सेना में किसी भी अंग में पर्दापण करते ही अभिभावकों को समझ लेना चाहिए कि अब व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन मे कुछ बलिदान अवश्य करने होंगे। अतः व्यक्तिगत कुर्बानियां गौण हैं।

न्याय की कुर्सी पर जज रशिम चंदेल

तीन बार सांसद रह चुके सुरेश चंदेल की 28 साल की होनहार बेटी रशिम चंदेल अब न्यायालय में न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठकर न्याय करेंगी। रशिम झारखंड काडर में न्यायाधीश बनी हैं। ट्रेनिंग पूरी होने पर वह जज की कुर्सी पर बैठेंगी। सुरेश चंदेल और अनिता चंदेल की इकलौती बेटी रशिम चंदेल ने बड़ा मुकाम हासिल किया है। रशिम ने स्कूली पढ़ाई सरस्वती विद्या मंदिर बिलासपुर और आर्मी पब्लिक स्कूल डगशाई से करने के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से कानून की पढ़ाई पूरी की। एक साल से वह लोकसभा के विधि विभाग में सबसे कम आयु की रिसर्च स्कॉलर के रूप में अध्ययन करने के साथ ही न्यायिक परीक्षा की तैयारी भी कर रही थी।

दिहि: बेटी को कैसे किया तैयार। कैसे हासिल की ऐसी ऊंचाई। क्यों चुनी फील्ड?

उत्तर: हमेशा न्याय की पक्षधर रही रशिम बचपन से ही न्यायिक सेवा क्षेत्र में मुकाम हासिल करना चाहती थी। माता-पिता का पूरा सपोर्ट रहा। हर एग्जाम के लिए खुद साथ जाते रहे। राजस्थान काडर के लिए दी गई परीक्षा में रश्मि ने रिटन क्लीयर कर लिया था, लेकिन पर्सनल में रह गई, जिस पर रशिम थोड़ा परेशान जरूर हुई, लेकिन झारखंड काडर क्लीयर कर लिया। रशिम के सामने दो विकल्प थे, या वह प्रैक्टिस करे या फिर न्यायिक सेवा में जाए। मां अनिता चंदेल की इच्छा पर रशिम ने न्यायिक सेवाओं में जाने का संकल्प ले लिया। कोचिंग पर फोकस किया, सोशल मीडिया, रिश्तेदारों से पूरी तरह कट रहीं। कवि एवं साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन की कविताएं सुन प्रोत्साहन मिला।

दुनिया को हवा की सैर करवा रहीं ‘मिस हिमाचल‘ वैशाली नेगी

‘दिव्य हिमाचल’ के मेगा इवेंट ‘मिस हिमाचल’ प्रतियोगिता का खिताब वर्ष 2012 में अपने नाम कर चुकीं किन्नौर जिला की वैशाली नेगी वर्तमान में मलेशिया की एयर एशिया कंपनी में बतौर पायलट सेवाएं दे रही हैं। वैशाली की इस बड़ी उपलब्धि के पीछे उनके माता-पिता का सपोर्ट व उनकी अपनी कड़ी मेहनत लग्न व आत्मविश्वास रहा है। वैशाली के माता-पिता का कहना है कि बेटी को हमेशा यही सिखाया गया है कि जो काम शुरू करो, उसे बिना शॉर्टकट पूरा करो। हार्डवर्क करो और रास्ता खुद बन जाएगा। वैशाली हमेशा से ही कॉन्फिडेंट रही हैं, जिससे उनका भी कॉन्फिडेंस डबल हो गया। उसने कभी भी यह नहीं कहा कि वह कोई काम नहीं कर सकती। हमेशा कहा करती हैं कि जब लड़के प्लेन उड़ा सकते हैं, तो लड़किया क्यों नहीं। वैशाली की स्कूल फ्रेंड सृष्टि के पापा एयरफोर्स में थे, उन्हीं से प्रेरणा लेती थी और गाइडेंस भी लेट कमांडर राज पटनायक ने दी। वैशाली की यह उपलब्धि इतनी आसान नहीं थी, लेकिन वैशाली का हार्ड वर्क देख के हमने उसे हमेशा सपोर्ट किया। वैशाली पायलट एग्जाम्स और फ्लाइंग के दिनों में बेहद हार्ड वर्क करती रही हैं। हमने अपने बच्चों में कोई फर्क नहीं किया। वैशाली का भाई नवनीत स्कूल, कालेज और एमबीबीएस में रैंक होल्डर रहा है। उसी को देख के वैशाली कहती थीं कि भाई जैसे सक्सेसफुल बनना है। हमें अपने बच्चों पर गर्व है।

कुल्लू की बेटी, पालमपुर की बहू ने 254 दिन समंदर में रहकर नापी दुनिया

भारतीय नौ सेना में लेफ्टिनेंट कमांडर जिला कुल्लू के मौहल की बेटी और पालमपुर की बहू प्रतिभा जम्वाल नौ सेना के उस नाविका सागर परिक्रमा का हिस्सा रही हैं, जो दुनिया की पहली ऐसी सागर परिक्रमा थी, जिसमें महिला अधिकारियों को ही शामिल किया गया था। दस सितंबर, 2017 से 21 मई, 2018 की यात्रा के दौरान इस टीम ने लगातार 254 दिनों तक समंदर में ही रहने का रिकार्ड अपने नाम दर्ज किया और पूरी दुनिया नापी। प्रतिभा जम्वाल इस टीम की सह-प्रभारी के तौर पर चुनी गई थीं और वह हिमाचल की पहली ऐसी नौ-सेना अधिकारी भी बनीं, जिसने इस प्रकार के अभियान में भाग लिया और हिमाचल का गौरव बढ़ाया। सागर परिक्रमा मिशन के दौरान समंदर के एवरेस्ट कहे जाने वाले खतरनाक केपहार्न अंतरीप को पार करने वाली पहली हिमाचली महिला होने का गौरव भी प्रतिभा के नाम हुआ।

हिमाचल की पहली लोको पायलट किरण

पहाड़ की बेटियों के लिए कभी साइकिल चलाना भी दूर की बात थी, तो अब छोटे से गांव की बेटी रेलगाड़ी चलाकर युवतियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनने जा रही है। पिता सरकारी नौकरी में थे और सरकारी वाहन चलाते थे, जिसे देख पालमपुर के छोटे से गांव मसैरना की किरण बड़ी हुईं। किरण का जन्म 21 फरवरी, 1996 को राजेंद्र कुमार और चंचला देवी के घर हुआ था। पिता को जीप चलाते देख कब बेटी ने रेलगाड़ी चलाने का सपने देख लिया, यह पता ही नहीं चला। किरण इन दिनों कानपुर में रेलगाड़ी चलाने का प्रशिक्षण ले रही हैं। 25 मार्च को प्रशिक्षण की अवधि समाप्त होने के बाद किरण रेलगाड़ी चलाने वाली हिमाचल की पहली युवती होंगी। वह असिस्टेंट लोको पायलट के रूप में रेलवे विभाग में सेवाएं देंगी। ग्राम पंचायत पुन्नर के मसैरना गांव के राजेंद्र काफी बरसों तक एसडीएम पालमपुर के चालक के रूप में सेवाएं देने के बाद सेवानिवृत्त हुए हैं। किरण राजेंद्र कुमार के तीन बच्चों में से दूसरे नंबर पर हैं। बड़ी बेटी रशिम की शादी हो चुकी है, तो छोटा बेटा अमनदीप कुमार कालेज में शिक्षा ग्रहण कर रहा है।

ठीक नहीं थी घर की कंडीशन, पर…

कुछ अलग करने की जिद रखने वाली किरण ने कांगड़ा में तीन वर्ष का डिप्लोमा करने के बाद आगे पढ़ने की इच्छा जताई। घर की ऐसी स्थिति नहीं थी कि बेटी को आगे पढ़ाते, पर उसकी ललक और दृढ़इच्छा को देखते हुए राजेंद्र ने उसे बीटेक करने के लिए पंजाब के लोंगोवाल भेजा। बीटेक के बाद किरण ने रेलवे में नौकरी के लिए आवेदन किया और लिखित परीक्षा पास की। इसके बाद उसे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया और चयन हो गया। चयन के बाद किरण का प्रशिक्षण आरंभ हो गया। राजेंद्र कुमार बताते हैं कि बेटी 25 मार्च को प्रशिक्षण पूरा कर लेंगी और फिर बतौर रेलगाड़ी चालक अब सेवाएं प्रदान करेंगी।

गृहरक्षक से आज प्लाटून कमांडर बन गईं उर्मिला…

मन में अगर कुछ करने का जज़्बा हो, तो कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, इनसान उसे पार कर ही लेता है। जी हां, ऐसा ही कुछ जज्बा यहां होमगार्ड कार्यालय में कार्यरत प्लाटून कमांडर उर्मिला के पास है, जिन्होंने कई बड़ी मुश्किलों का सामना कर आज यह मुकाम हासिल किया। जिस तक पहुंच पाना शायद एक महिला के लिए बेहद कठिन होता। पति के जाने के बाद किस तरह छोटे-छोटे बच्चों के साथ एक गृहिणी से लेकर सरकारी नौकरी पाने के लिए संघर्ष तय किया। उर्मिला की मानें तो पति के जाने के बाद कोई काम न होने पर उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया। इसी बीच होमगार्ड की लिए जब भर्ती निकली, तो उन्होंने यहां अपनी किस्मत आजमा डाली, जहां भर्ती तो हो गई, लेकिन सरकारी नौकरी तब पक्की नहीं थी, लेकिन वह अपना काम करती रहीं। विभिन्न जगह पर नौकरी की। अपने विभाग में बतौर गृह रक्षक भर्ती होने के बाद उन्हें जो काम दिया गया, उसे बखूबी निभाया। इसी बीच उनके काम को देखते हुए आज वह प्लाटून कमांडर के पद तक पहुंच चुकी हैं।

राष्ट्रपति पदक से नवाजी जाएंगी

स्लम एरिया के करीब 40 से अधिक बच्चों को पढ़ाना, महिला शोषण को लेकर महिलाओं को जागरूक करना, यौन उत्पीड़न जैसे कई महिलाओं से जुड़े मामालों को लेकर हमेशा महिलाओं व युवतियों को जागरूक करने में उर्मिला ने अहम भूमिका निभाई है। यह वजह है कि उन्हें अब राष्ट्रपति पदक से जल्द ही उनके बेहतर कार्यों के लिए सराहा जाएगा।

कबड्डी स्टार भावना

गोहर के बैला की किसान की बेटी भावना ठाकुर खेल के क्षेत्र में वर्तमान में बुलंदियों पर हैं। कबड्डी के प्रति भावना ठाकुर की बढ़ती लग्न देखते हुए जिला प्रशासन ने उसकी मदद करने के लिए हाथ बढ़ा दिए हैं। सुंदरनगर में सिरडा स्पोर्ट्स अकादमी में कोच डीआर चौधरी ने कबड्डी में साइंटिफिक ट्रेनिंग दी।

भावना की उपलब्धियां….

सीनियर महिला कबड्डी चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल, अखिल भारतीय अंतर विवि कबड्डी में गोल्ड, कबड्डी फेडरेशन नेशनल कप में गोल्ड, जूनियर नेशनल कबड्डी चैंपियनशिप से भी गोल्ड जीतकर हिमाचल प्रदेश का मान समूचे देश में बढ़ाया और प्रदेश की झोली में मेडल देकर प्रदेश को सम्मान दिलाया।

हिमाचल की पहली महिला ड्राइवर सीमा

शिमला की रहने वाली सीमा ठाकुर प्रदेश क ी पहली महिला ड्राइवर हैं, जिन्होंने हिमाचल ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर तक एक मिसाल कायम की है। अभी तक प्रदेश से किसी भी बेटी ने हिम्मत नहीं दिखाई है, जो प्रदेश में सरकारी बसों में महिला ड्राइवर बन सके। सीमा की झोली में कई पुरस्कार हैं, लेकिन अभी हाल ही में सीमा को एचआरटीसी से बेस्ट ड्राइवर का अवार्ड भी मिला है। पिता बलि राम की मौत के बाद में सीमा की माता रेवती ने बेटी का बस चलाने का सपना सच करने के प्रयास किए। सीमा के पिता बलि राम भी सरकारी बस ड्राइवर थे।

दिहिः बेटी को कैसे किया तैयार…कैसे चुनी यह फील्ड, क्या कुछ दी कुर्बानियां…

सीमा की माता रेवती कहती हैं कि सीमा को बचपन से ही बस चलाने का शौक था। सीमा हमारी इकलौती बेटी है। बेटी की परवरिश बेटे की तरह की और हुआ भी यही। हर तरह की आजादी सीमा को दी गई। पति की मौत के बाद बेटी का सपना टूटने नहीं दिया। 

सबसे कम उम्र की लेखक निकिता गुप्ता

सोलन शहर से लेखन के लिए क्षेत्र में निकिता गुप्ता एक उभरता हुआ चेहरा है। उन्हें हिमाचल का सबसे कम उम्र का लेखक शीर्षक के लिए नामांकित किया गया है। एक उत्साही पाठक होने के नाते वह नौवीं कक्षा में होने के बाद से लेखन की ओर आकर्षित हो गई थीं। युवा लेखक ने अपने विचार व्यक्त करने के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म ‘वॉटपैड’ चुना, जिसे 2.5 लाख पाठकों के रूप में दुनिया भर से सराहना मिली और उनकी शैली में टॉप-10 में उपन्यास मिला। उनका उपन्यास ‘वी आर इम्पैक्टली परफेक्ट’ एक प्रेम-कथा है। उन्होंने अपनी दूसरी पुस्तक, ‘फाइंडिंग माई वे बैक टू मिस्टर कपूर’ के लिए देश भर से बहुत प्रशंसा हासिल की है। बाद में पुस्तक का नाम बदलकर प्लीज़ बी माइन फॉरेवर कर दिया गया। उन्होंने सैलेड डेज ए साउंटर वर्ल्ड  ऑर्गेनाइजेशन के कविताओं की दुनिया में एक मील का पत्थर स्थापित किया। उनकी प्रकाशित कविता शीर्ष 160 अंतरराष्ट्रीय पुस्तकालयों और 12 भारतीय पुस्तकालयों में एंथोलॉजी के लिए शीर्ष 25 प्रविष्टियों में शामिल है।

उपलब्धियां और पुरस्कार

कई नामी हस्तियों से सराहना ले चुकी नीकिता  का दिल्ली की प्रमुख फैशन पत्रिका ने ‘दि बॉलीवुड फेसेस’ के रूप में उल्लेख किया और रेडियो नोएडा द्वारा एक छात्र से एक लेखक तक की उनकी यात्रा को रेडियो पर प्रसारित किया। इनसोल सेंट्रल मैगज़ीन (यूके) में फीचर्ड हो चुकी हैं और उन्हें कई प्लेटफॉर्म जैसे कि विजिलेंट्स रेडियो (यूएसए), वर्ल्ड न्यूज डॉट कॉम और कई और ऑफर भी मिले हैं। निकिता नई दिल्ली और नोएडा, मानवता पुरस्कार, समता पुरस्कार और साहित्य उत्सव, मारवाह स्टूडियो में कई पुरस्कार कार्यों में पुरस्कार विजेता रही हैं। हाल ही में उन्हें सुपर अचीवर अवार्ड से सम्मानित किया गया है। उनके नाम और भी कई अवार्ड रह चुके हैं।

सेना के जवानों का ख्याल रख रहीं गगरेट की कैप्टन प्रतिभा सिंह कंवर…

पुरुष प्रधान समाज में अब तक यही अवधारणा थी कि बेटे ही खानदान का नाम रोशन करते हैं। शायद यही वजह होगी कि जिला ऊना ने वह बुरा दौर भी देखा, जब बेटियों की संख्या बेटों के मुकाबले बेहद नाजुक दौर में पहुंच गई, लेकिन आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो समाज के लिए नजीर पेश करते हैं। गगरेट के नंगल जरियालां गांव के ऐसे ही एक परिवार ने अपनी बेटियों की ऐसे परवरिश की कि एक बेटी आर्मी डेंटल कार्प में कैप्टन बनीं, तो दूसरी सॉफ्टवेयर इंजीनियर। नंगल जरियालां गांव की बेटी प्रतिभा दंत चिकित्सक बनकर भारतीय सेना के आर्मी डेंटल कार्प में बतौर कैप्टन कमीशन हासिल कर ऊना को रीप्रेज़ेंट कर रही हैं। एमडीएस करने के बाद प्रतिभा सिंह कंवर का चयन उत्तराखंड में बतौर डेंटल आफिसर भी हुआ और इसी दौरान उनका चयन आर्मी डेंटल कार्प में भी हो गया, लेकिन उन्होंने भारतीय सेना में सेवाएं देने को प्राथमिकता दी। जब अपनी बेटी को सेना की गौरवशाली यूनीफार्म में माता-पिता रणजोध सिंह देखते हैं, तो उनका सीना चौड़ा हो जाता है। प्रतिभा की बहन अमृता सिंह सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं।

कैसा रहा सफर…माता-पिता से एक मुलाकात..?

कृषि सहकारी सभा में बतौर सचिव सेवाएं देने के बाद सेवानिवृत्त हुए रणजोध सिंह और शिक्षा विभाग में बतौर प्रवक्ता तैनात सुनीता देवी कहते हैं कि हमारी दो बेटियां हैं और हमने दोनों को अपना रास्ता चुनने की आजादी दी। बेटियों को बस यही सिखाया कि सपने देखोगे, तो साकार होंगे ही।

एलआईसी की सबसे पहली एजेंट लाजवंती, 82 साल की उम्र में अब भी कर रहीं बीमा

देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी कही जाने वाली भारतीय जीवन बीमा निगम कंपनी (एलआईसी) आज जिस मुकाम पर खड़ी है, उसमें सब पुराने कर्मचारियों और बीमा एजेंट्स का योगदान रहा है। जिला हमीरपुर के सुजानपुर उपमंडल के वार्ड-2 की 82 वर्षीय लाजवंती देवी भी उन्हीं में से एक हैं। प्रदेश की पहली एलआईसी महिला एजेंट लाजवंती ने वर्ष 1960 में उस वक्त एलआईसी के साथ अपना सफर शुरू किया, जब महिलाओं को घर की दहलीज के भीतर भी घुंघट में खुद को छिपाने की मजबूरी थी। लाजवंती के पति स्व. सत्यपाल गुप्ता पेशे से शिक्षक थे, इसलिए उनके ख्यालात कुछ हटकर थे। ऐसे में उन्होंने न केवल लाजवंती को प्रोत्साहित किया, बल्कि जीवनसाथी होने के नाते उनका हर कदम पर साथ भी दिया। सांस की बीमारी से ग्रसित लाजवंती अब ऑक्सीजन पर हैं। पुराने दिनों को याद करते हुए वह बताती हैं कि वह उस जमाने में पांचवीं कक्षा तक पढ़ीं थीं, इसलिए बातचीत करने का हुनर था। शुरू से ही अपनी बात दूसरे तक पहुंचाने की कला उनमें थी। वह कहती हैं पहली बार उन्होंने शायद दस रुपए का बीमा किया था। उस जमाने में 25 पैसे से लेकर एक और दो रुपए तक कमीशन मिलता था। 100 रुपए का बीमा करना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। उन्होंने उस जमाने में 100-100 रुपए के भी कई बीमे किए थे। उस वक्त एलआईसी का एक दफ्तर जालंधर में हुआ करता था। एक बार उनके काम से खुश होकर कंपनी ने उन्हें उपहार स्वरूप एक स्कूटर भी दिया था, लेकिन क्योंकि उन्हें स्कूटर चलाना नहीं आता था, इसलिए उन्होंने इसे नहीं लिया। लाजवंती बताती हैं कि वह भारत के लगभग हिस्से में घूमी हैं। आज भी लोग उनसे बीमे करवाते हैं। हर माह उन्हें इसका कमीशन मिलता है। यही नहीं वह ग्रेच्युटी की भी हकदार हो चुकी हैं। उनके पास पुराना रिकार्ड नहीं है, क्योंकि तक कम्प्यूटर नहीं था। यही वजह है कि उनकी ग्रेच्युटी की बड़ी रकम अभी तक लटकी है।

सूत्रधार

शालिनी राय भारद्वाज, पवन शर्मा, मोहिंद्र नेगी, नीलकांत भारद्वाज, दीपिका शर्मा, अश्वनी पंडित, मुकेश कुमार, जयदीप रिहान, अजय ठाकुर, जसवीर सिंह

 

 


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