गुलामों की दुनिया

By: Mar 28th, 2020 12:15 am

ओशो

जापान में चार-पांच सौ साल पुराने पेड़ होते हैं मगर केवल छह इंच ऊंचे। इस प्रकार के पेड़ तैयार करना भी एक तरह की कला मानी गई है। पर मेरे लिए सीधे तौर पर यह एक हत्या है। माली की कई पीढि़यां उन पेड़ो को इस अवस्था में रखती आ रही है। अब भले ही यह पेड़ पांच सौ साल पुराना है मगर आप उनकी टहनियों को देख सकते हैं भले ही वह छोटा है। यह एक प्रकार का छोटा बूढ़ा आदमी है, जिसके ऊपर पत्तियां लगी है, जिसकी टहनियां है और शाखाएं है। इसमें जो प्रक्रिया इस्तेमाल हुई है उसके अनुसार वो बिना पेंदी के मिट्टी के बरतन में पेड़ लगाते हैं और उसके बाद वो उसके जड़ को लगातार काटते रहते हैं। जब भी जड़ बाहर निकलती है और जमीन की ओर बढ़ने की कोशिश करती है, वे उसे काट देते हैं। वो पेड़ों के साथ कुछ भी नहीं करेंगे, बस उनकी ज़ड़ों को काटते रहेंगे। अब पांच सौ सालों तक एक परिवार इसकी जड़ों को काटता रहेगा। यह पेड़ हजारों साल तक जिंदा रह सकता है पर इस पर कभी फूल या फल नहीं लगेंगे। यही सब पूरी दुनिया में सभी लोगों के साथ हो रहा है। हर चीज के लिए उनकी जड़ शुरुआत में ही काट दी जाती है। जैसे हर बच्चे को आज्ञाकारी होना चाहिए। यह तय कर आप उसकी जड़ को काट रहे हैं। आप उसे सोचने का एक मौका नहीं दे रहे हैं कि वह आपको हां कहे या ना कहे। आप उसे सोचने की इजाजत नहीं दे रहे। आप उसे खुद के बारे में फैसला लेने की इजाजत नहीं दे रहे। आप उसे जिम्मेदारी नहीं दे रहे, बल्कि खुबसूरत शब्द ‘आज्ञाकारिता’ का प्रयोग कर उससे जिम्मेदारी छीन रहे हैं। आप एक सरल रणनीति के तहत यह जोर डालकर कि वह बच्चा है और कुछ नहीं जानता, उसकी स्वतंत्रता, उसका व्यक्तित्व उससे दूर कर रहे हैं। माता-पिता यह तय कर लेते हैं कि बच्चे को पूरी तरह आज्ञाकारी बनना है। उनके अनुसार आज्ञाकारी बच्चा ही सम्मान पाता है। लेकिन इतना निहित है कि आप उसे पूरी तरह से नष्ट कर रहे हैं। उसकी उम्र बढ़ती जाएगी मगर उसका विकास नहीं होगा। वह बड़ा होगा पर उसमें फूल नहीं लगेंगे, फल नहीं होगा। वह जीवित रहेगा लेकिन उसके जीवन में थिरकना नहीं होगा, गीत नहीं होगा, हर्सौल्लास नहीं होगा। आपने वो सभी आधारभूत संभावनाएं नष्ट कर दी हैं जो एक आदमी को व्यक्तिगत, सच्चा, ईमानदार बनाता है और उसे एक निश्चित पूर्णता देता है और यही सब वह है जो एक आज्ञाकारी व्यक्ति करता है।

यह अपंगता है कि आप ना नहीं कह सकते और आपको सिर्फ  हां कहना है। पर एक आदमी जब ना कहने में असमर्थ हो जाता है तो उसका हां कहना अर्थहीन हो जाता है। वह एक मशीन की तरह काम कर रहा है। आपने एक इंसान को रोबोट में बदल दिया है। इस दुनिया में आजाद रहना, खुद के बारे में सोचना, अपनी चेतना से निर्णय लेना, अपने विवेक से काम करना इन सब को लगभग असंभव बना दिया गया है। चर्च, मंदिर, मस्जिद, स्कूल, विश्वविद्यालय, हर जगह आपसे आज्ञाकारी होने की उम्मीद की जाती है। अब तक अपना, नियम नें लोगों को इस तरह से बर्बाद किया है कि वह पूरा जीवन हर तरह के अधिकार की गुलामी कर दासों जैसा रहता है। उसके जड़ों को काट दिया गया है ताकि उसके पास लड़ने के लिए प्रर्याप्त ऊर्जा ना हो और वह आजादी, व्यक्तित्व या किसी भी प्रकार का अधिकार पा ना सके। तब उसके पास जीवन का एक छोटा हिस्सा होगा जो कि उसे तब तक जीवित रखेगा जब तक मौत उसे इस दासता से मुक्त नहीं कर देती जिसे उसने जीवन समझ कर अपनाया था।

 


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