जीवन में अनुशासन

By: Mar 28th, 2020 12:20 am

सभी के जीवन में अनुशासन अत्यंत आवश्यक है। अनुशासन, जीवन को संयमित व नियंत्रित करता है। अनुशासन के माध्यम से जीवन संतुलित बनता है और विकास करता है। अनुशासन है, नीति नियमों का पालन। जीवन के हर क्षेत्र का अनुशासन अलग-अलग है। जैसे भोजन का अनुशासन अलग है, रहन-सहन का अनुशासन अलग है। जीवन जीने के तौर-तरीकों का अनुशासन अलग है। अनुशासन केवल हमारे जीवन के लिए ही आवश्यक नहीं है, बल्कि प्रकृति ने भी स्वयं को अनुशासनबद्ध करके रखा है। बिना अनुशासन सभी पर एक समान लागू होता है, लेकिन मानव जीवन का अनुशासन देश काल परिस्थितियों के अनुसार बदलता है। अनुशासन है निर्धारित नीति-नियमों का पालन करना। अनुशासनों का निर्धारण मनुष्य स्वयं करता है। इनमें आवश्यकतानुसार फेर-बदल भी करता है, लेकिन अनुशासन का निर्माण बहुत सोच-समझकर किया जाता है। अनुशासन होता ही इसलिए है, ताकि जीवन को सही दिशा दी जा सके। इसके माध्यम से जीवन की ऊर्जा का अनावश्यक व्यय नहीं होता, बल्कि इसका सुनियोजन होता है। इसलिए महर्षि पतंजलि ने भी योग दर्शन के आरंभिक सूत्र में सबसे पहले योग अनुशासन की बात कही है। अनुशासन है हमें सचेत करने के लिए। इस बात पर ध्यानाकर्षित करने के लिए कि अब हम विशेष पथ पर चल रहे हैं। विशेष नियमों का पालन करना अब हमें जरूरी है, अन्यथा हम भटक सकते हैं, दिग्भ्रमित हो सकते हैं। अनुशासन नदी के दो किनारों की तरह हमें बहकने व भटकने नहीं देता। अनुशासन हमारे जीवन में वह सीमा रेखा खींच देता है, जो हमारे लिए अत्यंत जरूरी है।  जिसे पार करने में हमारे नुकसान की संभावना है। इसलिए विशेष कार्यों में अनुशासन का पालन करना अत्यंत जरूरी हो जाता है। अनुशासन के अभाव में सारी व्यवस्थाएं गड़बड़ा जाती हैं। अनुशासनहीनता होने पर नुकसान होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसलिए किसी भी बड़े कार्य को प्रारंभ करने से पूर्व अनुशासन के नीति नियम निर्धारित कर लिए जाते हैं और उसी के अनुसार कार्यक्रम संपन्न किए जाते हैं। जरा भी अनुशासन की अवहेलना होने वाले कार्यक्रम की सफलता में बाधा डालती है। हमारी प्रकृति का भी अनुशासन अतिप्रिय है। प्रकृति की इस अनुशासनप्रियता के कारण ही ऋतुएं समय पर आती और चली जाती हैं। मौसम में समयानुसार ही परिवर्तन होता है और हम यह निश्चित कर पाते हैं कि अमुक महीने में वर्षा, ठंड या गर्मी होगी। यदि प्रकृति का अनुशासन हमें पता नहीं होता, तो इस बात का निर्धारण करना अत्यंत कठिन हो जाता है कि आने वाला समय क्या लेकर आने वाला है। आज प्रकृति और मानव जीवन दोनों का ही अनुशासन गड़बड़ाया है। मनुष्य के अवांछनीय कार्यों के कारण प्रकृति में प्रदूषण बढ़ा है व इसका जलवायु पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ा है। फलतः प्रकृति के अनुशासन में गड़बडि़यां उत्पन्न होने लगी हैं। इसका  खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, मनुष्य व अन्य सभी जीवधारियों व वनस्पतियों को।


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