तिब्बत में छिपा है तंत्र ज्ञान

By: Mar 21st, 2020 12:20 am

मैंने अपना ‘उपाय’ किया। अनायास ही आग की एक तेज लपट शून्य से लपकी और मैं जलते-जलते बच गया। आग का यह ‘भभका’ इतना भयानक था कि मेरा चेहरा झुलसा देता। वह तो मैं बाल-बाल बच गया। आग का यह भभका देखकर मैं खामोश खड़ा देखता रह गया। आगे मैंने कुछ न किया। राजेश का दौरा लगातार चलता रहा और मैं कुछ सोचता हुआ उसे देखता रहा…

-गतांक से आगे…

परेशान राजेश के माता-पिता कई जगह भटके। कई लोगों ने राजेश को देखा। उसे अपने से अधिक शक्तिशाली बताकर सब पीछे हट गए। हर ओर से निराश परेशान थके-हारे राजेश के पिता मेरे पास आए। सारा हाल बताने के बाद वह बोले- ‘आप ही कुछ करके देखिए।’ हालांकि उनके मुंह से अनेक तांत्रिकों के नाम सुनकर मेरी हिम्मत न पड़ रही थी। जब मुझसे बड़े-बड़े लोग हाथ पीछे खींच बैठे तो मैं क्या चीज हूं? फिर मन में एक विचार कौंधा कि कम से कम देख तो लूं कि आखिर है क्या बात जो सबके सब मैदान छोड़कर भाग रहे हैं। ‘मैं कोशिश अवश्य करूंगा। ठीक कर पाऊंगा, यह विश्वास नहीं दिला सकता।’ राजेश के पिता चुप रह गए। मैंने राजेश का निरीक्षण, परीक्षण किया। दौरे का इंतजार करता रहा। लगभग सारा दिन कट गया। अचानक शाम के समय राजेश को दौरा पड़ गया। मैंने अपना ‘उपाय’ किया। अनायास ही आग की एक तेज लपट शून्य से लपकी और मैं जलते-जलते बच गया। आग का यह ‘भभका’ इतना भयानक था कि मेरा चेहरा झुलसा देता। वह तो मैं बाल-बाल बच गया। आग का यह भभका देखकर मैं खामोश खड़ा देखता रह गया। आगे मैंने कुछ न किया। राजेश का दौरा लगातार चलता रहा और मैं कुछ सोचता हुआ उसे देखता रहा। मुझे खामोश खड़ा देखकर राजेश के पिता ने पूछा- ‘कुछ समझे आप?’ मैं सिर झुकाए खड़ा रह गया। कुछ न बोला। ‘तब…?’ वह मेरी ओर देखने लगे। ‘अभी सब चलने दीजिए। शायद कुछ समय बाद मैं बता सकूं।’ मैंने कहा। मैं वापस चला आया। आग के इस ‘भभके’ पर मैं गंभीरता से विचार करने लगा। नाथ संप्रदाय के एक आंकड़ साधु ने मुझे राह दिखलाई। उसने बतलाया कि प्रेतात्मा जब किसी तांत्रिक की अतिरिक्त शक्ति प्राप्त कर लेती है तो इस प्रकार का ‘भभका’ छोड़कर वह तांत्रिक की शक्तियों को नष्ट कर देती है। ऐसी दशा में पीडि़त का उपचार व्यर्थ है। उसे अतिरिक्त शक्ति देने वाले वामाचारी तांत्रिक का मारण कर पीडि़त को मुक्ति दिलाना ही अभीष्ट है। यह सुनकर मैं गहरी सोच में डूब गया। कौन है इसके पीछे?..जब तक इसका पता न चले, तब तक किसी भी प्रकार का तंत्रोक्त प्रयोग व्यर्थ है। मैं रात को काफी देर तक इस विषय पर सोचता रहा। इसका एक ही कारगर उपाय मुझे सूझा कि राजेश से ही उसका पता किया जाए। मैं राजेश के पास दिन में गया। वह ठीक-ठाक था। कमजोर बहुत हो गया था। साथ ही घबराया-सा भी था। राजेश से बातें करते-करते मैं बराबर उसकी आंखों में अपनी आंखें डाले रहा।                    


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