नागछतरी का टिश्यू कल्चर तैयार

By: Mar 15th, 2020 12:08 am

पालमपुर में आईएचबीटी के वैज्ञानिकों को मिली बड़ी कामयाबी

हिमाचल के ऊंचाई वाले इलाकों में मिटने की कगार पर पहुंची नागछतरी का टिश्यू कल्चर तैयार हो गया है। पालमपुर में आईएचबीटी के वैज्ञानिकों को इस बारे में बड़ी सफलता मिली है। जादुई बूटी नागछतरी की जड़ों में मौजूद रसायन से दवाइयां बनती हैं, जिनकी अंतरराष्ट्रीय मार्केट में काफी मांग है। इंटरनेशनल मार्केट में इसके दाम 15 से 20 हजार रुपए प्रति किलोग्राम है। यही कारण है कि मौजूदा समय में इस पौधे की बिक्री पर कड़ी नजर रखी जाती है। आईएचबीटी के वैज्ञानिकों के अनुसार भविष्य में नागछतरी की कई किस्मों से अच्छे गुण लेकर बेहतरीन पौधे तैयार किए जाएंगे। इससे जहां मौजूदा समय में कहीं भी, नागछतरी की खेती नहीं होती है। खैर, आईएचबीटी का प्रयास रहेगा कि नागछतरी की नई पौध को वनों में रोपा जाए। आईएचबीटी में चल रही रिसर्च को लेकर वरिष्ठ पत्रकार जयदीप रिहान ने संस्थान के निदेशक डाक्टर संजय कुमार से बात की।

क्या है नागछतरी

नागछतरी को ट्राइलियम गोवानियन या सतुआ के नाम से जाना जाता है। इसका पौधा 2700 से चार हजार मीटर की ऊंचाई पर मिलता है। स्थानीय बाजार में नागछतरी की कीमत दो से तीन हजार रुपए प्रति किलो ग्राम मिलती है जबकि विदेशों में निर्यात किए जाने पर इसके दाम 15 से 20 हजार रुपए प्रति किलो ग्राम तक मिल जाते हैं। चीन इसका बड़ा आयात करने वाला देश माना जाता है। नागछतरी की जड़ों में मौजूद रसायन दवाइयां बनाने के काम आता है। इसका प्रयोग हर्बल टानिक, रक्तप्रवाह बेहतर करने और यौवन शक्ति बढ़ाने वाली दवाइयों में किया जाता है।

रिपोर्ट : जयदीप रिहान, पालमपुर

कहलूर में काहे की नलवाड़ी

जिला बिलासपुर का सुप्रसिद्ध राज्य स्तरीय नलवाड़ी मेला बैलों की प्रदर्शनी के लिए मशहूर है और हर वर्ष मेले में परंपरा अनुसार प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि व प्रशासन द्वारा बैलों की पूजा कर इस मेले का शुभारंभ किया जाता है, लेकिन वर्तमान में इस मेले में सरकार द्वारा बैलों की पूजा करना व प्रदर्शनी लगाना सिर्फ  एक आडंबर ही है। सड़कों पर बुरी तरह घायल पड़े होते हैं पशु जिन्हें सरकार एवं प्रशासन अनदेखा कर देता है। बिलासपुर में खोले गए ट्रॉमा सेंटर भी सरकार की एक खाना पूर्ति है। घायल पशुओं के लिए ट्रॉमा सेंटर में कोई चारा पानी तक की व्यवस्था नहीं होती है। यह बात प्रगति समाज सेवा समिति के अध्यक्ष सुनील कुमार ने कही। उन्होंने कहा कि जिला में खाली पड़ी गोशालाएं जिनके निर्माण में करोड़ों रुपए सरकार खर्च कर चुकी है। वर्ष 2019 में बेसहारा पशुओं के लिए प्रदेश सरकार द्वारा संगठित गा सेवा आयोग न प्रदेश भर में करोड़ों रुपए की राशि से गोअभ्यारण्य क्षेत्रों और बड़े गो सदनों की स्थापना की बात कही है। इसमें ज्यादातर नस्ल वाली गाय रखी जाएगी, लेकिन बेसहारा बैलों का जिक्र नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार करोड़ों रुपए पहले ही प्रदेश में बनाई गई, गोशालाओं पर खर्च कर चुकी है, जो कि आज तक खाली पड़ी है। जबकि सरकार इसी राशि से इन्ही खाली पड़ी गोशालाओं में भी बेसहारा पशुओं के लिए रहने की उचित व्यवस्था व संचालन कर सकती है। प्रदेश सरकार द्वारा 47.50 करोड़ रुपए की लागत से एक सेक्स सॉर्टिड सीमन फेसेलिटी केंद्र स्थापित किया जा रहा है व इस केंद्र में देशी नस्ल की गाय के लिए ऐसे इंजेक्शन तैयार किए जाएंगे। इससे केवल मादा बछड़ी ही पैदा होंगी। इस सेक्स सॉर्टिड सीमन फेसिलिटी केंद्र की स्थापना के लिए कुटलैहड़ विधानसभा क्षेत्र के लमलैहड़ी में 740 कनाल भूमि का चयन करने की भी बात कही गई है, लेकिन आज के दौर में देशी नस्ल की गाय तो बहुत कम पाली जाती है। सरकार यदि बछड़ी पैदा करने वाले इंजेक्शन प्रदेश में जितनी भी पंचायतें हैं वहां पर किसानों द्वारा पाली गई प्रत्येक नस्ल की गाय को उपलब्ध करवा दे, तो बेसहारा पशुओं की तादाद स्वयं खत्म हो जाएगी है।

रिपोर्ट :

रिटायर्ड फोरेस्ट गार्ड ने तैयार की जीरो बजट हल्दी

हल्दी के ढेर की यह तस्वीर कांगड़ा जिला के आलमपुर से है। यह हल्दी बिना केमिकल और उत्तम किस्म के बीज से तैयार की गई है। हल्दी तैयार करने वाले  किसान का नाम है ललित डढवाल। ललित रिटायर्ड फोरेस्ट गार्ड हैं। उन्होंने बताया कि सिर्फ गोबर से यह शानदार पैदावार हुई है। दूर- दूर से लोग हल्दी उगाने का यह फार्मूला पाने, ललित के पास पहुंच रहे हैं। अपनी माटी ललित जैसे होनहार किसानों को सलाम करता है।

 रिपोर्ट : मनमोहन शर्मा,आलमपुर

इस सीजन में क्या आपने अभी नहीं चखी  बुरांस की चटनी

आनी हिमाचल की घाटियां इन दिनों सुनहरे लाल व गुलाबी रंग के बुरांस के फूलों से गुलजार हो उठी है। बुरांस के फूल चार से सात हजार फुट की ऊंचाई के वनों में फरवरी से अप्रैल मई तक खिलते हैं। जंगलों में हालांकि मौसम के अनुकूल अन्य कई प्रकार के फूल भी खिलते रहते हैं। मगर बुरांस एक ऐसा वन पुष्प है, जो अपनी लाल, गुलाबी सुंदरता से हर दार्शनिक को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है और कई इसकी सुंदरता को अपने कैमरे में कैद कर लेते हैं। इस फूल को स्थानीय भाषा में बराह और हिंदी में बुरांस कहा जाता है, जबकि इसका वैज्ञानिक नाम (रोडोडैनरोन) है। यह पुष्प बराह के पेड़ों पर लंबी नुकीली पत्तियों के मध्य गुलाब के फूल की भांति बड़े आकार में खिलता है। वनों  में सुंदरता बिखेरने वाला यह फूल लोगों की धार्मिक आस्था से भी जुड़ा है। मान्यता है कि यह पुष्प देवी-देवताओं को भी प्रिय है और ऐसे में ग्रामीण लोग इसे साजा बैसाख के दिन अपने ईष्ट देवता को चढ़ाते हैं। जबकि घरेलू महिलाएं इस दिन घर के आंगन में रंगोली सजाकर इस पुष्प को घर के मुख्य द्वार के शीर्ष पर लगाती हैं। ग्रामीणों की मान्यता है कि बुरांस के फूल को चढ़ाने से जहां देवता प्रसन्न होते हैं, वहीं द्वार पर लगाने से घर बुरी नजर से भी बचा रहता है। यही नहीं यह पुष्प सुंदरता और धार्मिक महत्ता के अलावा औषधि के लिहाज से भी अति गुणकारी है। आयुर्वेद के चिकित्सकों का कहना है कि बुरांस के फूलों का शरवत दिल के मरीजों के लिए रामबाण औषधि है और यह खून के दबाव को कम करने में भी सहायक है। इसके अलावा बुरांस के फूलों से बनी चटनी का नियमित सेवन करने से लू नहीं लगती है और महिलाओं में मासिक धर्म की गड़बड़ी में भी बुरांस के फूलों की चटनी और शरबत लाभप्रद है। इतना ही नहीं सिरदर्द, सुस्ती व जी मचलने में भी यह बेहद फायदेमंद है।

रिपोर्ट : महेंद्र बदरेल, आनी

बारिश के बाद बागों में डटे बागबान टमाटर के लिए सजने लगे खेत

पिछले 15 दिन से बीच बीच में हो रही बारिश के बाद बागीचों में रौनक बढ़ गई है। शिमला, रोहड़ू, रामपुर, सिरमौर, सोलन के अलावा चंबा और कुल्लू में बागबान व्यस्त हो गए हैं। अपनी माटी के दर्शक जो वीडियो देख रहे हैं, वह कुल्लू  घाटी के दियार इलाके का है। दियार में  प्लम, खुमानी में फ्लावरिंग चरम  पर है तो नए और ग्राफ्ट से तैयार किए पौधों को भी रस मिलना आरंभ हो गया है। बागबान घनश्याम का कहना है कि अब बागों में काम तेजी से चल रहा है। दूसरी ओर बारिश के बाद किसान टमाटर के लिए खेतों को तैयार करने  में भी जुट गए हैं। वहीं मटर और गेहूं सहित अन्य फसलों निराई-गुड़ाई के साथ बीमारी की रोकथाम के लिए छिड़काव भी जारी है। अपनी माटी टीम ने किसान-बागबान भाइयों की मदद के लिए कृषि विकास अधिकारी कुल्लू त्रिलोक चंद शर्मा से बात की। उन्होंने कहा कि बागबानों को निराई गुड़ाई जैसे काम निपटा लेने चाहिएं।

चाय-कॉफी भी जीरो बजट के दायरे में

प्रदेश में आने वाले समय में चाय और कॉफी की खेती भी जीरो बजट के दायरे में आने वाली है। यह संकल्प कृषि विभाग ने लिया है। यही नहीं, महकमे ने वर्ष 2020-21 में 50 हजार किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने का नया टारगेट भी तय किया है। इस बारे में महकमे ने प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना की चौथी राज्य स्तरीय समीक्षा बैठक भी कर ली है। सचिवालय में प्रधान सचिव कृषि ओंकार शर्मा की अध्यक्षता में मीटिंग के दौरान  प्रदेश में 20 हजार हेक्टेयर भूमि को प्राकृतिक खेती से जोड़ने का फैसला भी हुआ है। इसके अलावा एक लाख किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के बारे में जागरूक करने का संकल्प लिया गया। कृषि विभाग के फार्मों में प्राकृतिक खेती के बीज भी तैयार किए जाएंगे, तो किसान भाइयों ये रहे विभाग के इस साल के संकल्प,जिनमें कितने पूरे होते हैं, यह आने वाले समय में ही पता चलेगा।                           

रिपोर्ट : प्रतिमा चौहान, शिमला

फल और पौधों में न डाली हो खाद तो , देर न करें

कृषि हेल्पलाइन

  डा. मोहन जांगड़ा  वैज्ञानिक पर्यावरण विभाग

 नौणी विश्वविद्यालय

बागबानों को सलाह दी जाती है कि फूलों की अवस्था में पेड़ों पर कोई छिड़काव न करें, जो परागण क्रिया तथा मधुमखियों के काम को प्रभावित कर सकता है।

फसलों संबंधित कार्य :

सभी फल पौधों में अगर अभी तक गली सड़ी गोबर की खाद व उर्वरक सुपर फास्फेट व पोटाश दिसंबर व जनवरी मेें न डाली हो तो नमी को ध्यान में रखते हुए अब तुरंत डाल दें।

पुष्प उत्पादन संबंधित कार्य :

किसानों को सलाह दी जाती है कि मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लडियोलस व गेंदे की फसल के  उत्पादन के लिए क्यारियों को तैयार करें। क्यारियों में लगभग पांच किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से गोबर की खाद मिलाएं।

बागबानी संबंधित कार्य :

जो बागबान किसी कारण से पौधे न लगा पाए हों उनको सलाह दी जाती है कि वे पौधे लगाने का काम जल्दी खत्म कर लें। जमीन में अच्छी नमी बनी हुई है इसलिए बागबान अपने बागीचों में फल पौधों के तौलिए बनाने का कार्य करते रहें तथा रसायानिक खाद जैसे कि पोटाश आदि व गोबर की खाद डालने व अन्य उर्वरक अनुमोदित मात्रा में डालें।

पशु धन संबंधित कार्य :

इस समय में बाह्य परजीवियों की अधिकता पाई जाती है। इनसे बचाव हेतु पशुओं के शरीर पर साइपरमेथ्रिन घोल एक लीटर पानी में 2-2.5 मिलीलीटर साइपरमेथ्रिन का स्प्रे करें।

मोहिनी सूद-नौणी (सोलन)

औषधीय पौधों की खेती को एनएएम दे रहा बढ़ावा

अजय परशर

लेखक, धर्मशाला से हैं

भारत सरकार के तत्वावधान में देश भर में चलाया जा रहा ‘राष्ट्रीय आयुष मिशन’ अर्थात् ‘नेशनल आयुष मिशन’ (एनएएम) किसानों को जड़ी-बूटियों और औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रोत्साहन के अलावा वित्तीय अनुदान भी प्रदान कर रहा है। देश भर में 140 औषधीय पौधों की प्रजातियों की खेती हेतु किसानों को आवश्यक मार्गदर्शन दिया जा रहा है। हिमाचल में यह योजना राज्य आयुर्वेद विभाग के राज्य औषधीय पादप बोर्ड द्वारा संचालित की जा रही है। इस योजना का लाभ लेने के लिए किसानों के पास सामूहिक रूप से कम से कम दो हेक्टेयर जमीन होना लाजिमी है। किसी समूह में सदस्य किसान 15 किलोमीटर इलाके में तीन नजदीकी गांवों से भी हो सकते हैं। किसानों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सरकार ने रेहन या गिरवी भूमि पर भी खेती की सुविधा प्रदान की है। प्रदेश में जिन मुख्य औषधीय पौधों की खेती के लिए किसानों को सुविधा एवं प्रोत्साहन दिया जा रहा है, उनमें अतीस, कुटकी, कुठ, सुगंधबाला, अश्वगंधा, सर्पगंधा और तुलसी शामिल हैं। इसके लिए किसानों को अपने जिला आयुर्वेद अधिकारी के पास औषधीय पौधों की खेती के लिए आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करने जरूरी हैं। वित्तीय सहायता के लिए आवेदन प्रस्तुत करते समय किसानों को विभिन्न औषधीय पौधों की प्रजातियों और काश्त की जाने वाली जमीन के कुल रकबे की जानकारी के अलावा, क्लस्टर में शामिल प्रत्येक किसान की संबंधित पटवारी से सत्यापित भूमि की खसरा नंबर सहित स्थिति, खेती के लिए प्रस्तावित खाली जमीन के राजस्व पत्र, साथी किसानों के स्थायी पते और संपर्क सहित संयुक्त हलफनामा, केंद्र या राज्य सरकार के किसी विभाग, निगम या बोर्ड से कोई वित्तीय मदद न लिए जाने का हलफनामा, स्वीकृत क्षेत्रफल में ही अनुमोदित औषधीय पौधों की खेती करने और निरीक्षण में कोई कमी पाए जाने पर पूर्ण या आंशिक रूप से प्राप्त वित्तीय सहायता को वापस लौटाने का वचन और संबंधित ग्राम पंचायत की सिफारिश या अनापत्ति प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना होगा। जिला आयुर्वेद अधिकारी उचित सत्यापन के बाद इन दस्तावेजों को राज्य पादप औषधीय बोर्ड को अग्रिम कार्यवाही के लिए प्रस्तुत करते हैं।

क्रमशः

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