पर्याप्त रचनाओं से परिपूर्ण है हिमाचल का साहित्यिक परिदृश्य

By: Mar 29th, 2020 12:06 am

डा. हेमराज कौशिक

मो.-9418010646

साहित्य के कितना करीब हिमाचल-2

अतिथि संपादक : डा. हेमराज कौशिक

हिमाचल साहित्य के कितना करीब है, इस विषय की पड़ताल हमने अपनी इस नई साहित्यिक सीरीज में की है। साहित्य से हिमाचल की नजदीकियां इस सीरीज में देखी जा सकती हैं। पेश है इस विषय पर सीरीज की

दूसरी किस्त…

विमर्श के बिंदु

* हिमाचल के भाषायी सरोकार और जनता के बीच लेखक समुदाय

* हिमाचल का साहित्यिक माहौल और उत्प्रेरणा, साहित्यिक संस्थाएं, संगठन और आयोजन

* साहित्यिक अवलोकन से मूल्यांकन तक, मुख्यधारा में हिमाचली साहित्यकारों की उपस्थिति

* हिमाचल में पुस्तक मेलों से लिट फेस्ट तक भाषा विभाग या निजी प्रयास के बीच रिक्तता

* क्या हिमाचल में साहित्य का उद्देश्य सिकुड़ रहा है?

* हिमाचल में हिंदी, अंग्रेजी और लोक साहित्य में अध्ययन से अध्यापन तक की विरक्तता

* हिमाचल के बौद्धिक विकास से साहित्यिक दूरियां

* साहित्यिक समाज की हिमाचल में घटती प्रासंगिकता तथा मौलिक चिंतन का अभाव

* साहित्य से किनारा करते हिमाचली युवा, कारण-समाधान

* लेखन का हिमाचली अभिप्राय व प्रासंगिकता, पाठ्यक्रम में साहित्य की मात्रा अनुचित/उचित

* साहित्यिक आयोजनों में बदलाव की गुंजाइश, सरकारी प्रकाशनों में हिमाचली साहित्य

-गतांक से आगे…

हिमाचल प्रदेश में आधुनिक हिंदी कविता की शुरुआत पांचवें दशक से होती है। प्रारंभिक दौर के कवियों में परमानंद शर्मा, रामकृष्ण कौशल, ओमप्रकाश सारस्वत, सुंदर लोहिया, चतुरसिंह, अनिल राकेशी, श्रीनिवास श्रीकांत, अमिताभ, रामदयाल नीरज, जि़यासिद्दीक आदि हैं। इन कवियों ने रागात्मक संबंधों से अपनी संवेदना से आगे जीवन के जटिल यथार्थ को काव्य का विषय बनाया। अनिल राकेशी द्वारा संपादित श्यामला में प्रारंभिक दौर के प्रमुख कवियों का संपादन किया गया है। सातवें दशक के बाद हिंदी कविता में एक साथ नए कवि उभरकर सामने आए और कविता की समकालीनता उनकी कविताओं में मुखरित हुई। इन कवियों में चतुरसिंह, कुमार कृष्ण, तुलसी रमण, दीनू कश्यप, अरविंद रंजन, केशव, रेखा, संजय, सतीश धर, अवतारसिंह, एनगिल, कुलराजीव पंत आदि उल्लेखनीय हैं। सन् 1976 में प्रकाशित श्यामला से पूर्व दो-तीन कवियों के स्वतंत्र संग्रह मौजूद थे। आठवें दशक में कथ्य और संवेदना की दृष्टि से हिमाचल की हिंदी कविता में बदलाव आया। समकालीन जीवन के जटिल और वैविध्यपूर्ण अनुभव काव्य के प्रतिपाद्य बने। नौवें दशक से लेकर अब तक हिमाचल की हिंदी कविता अनेक मोड़ों से गुजरकर संवेदना और शिल्प की दृष्टि से उत्तरोत्तर परिपक्व हुई है। अब तक दो सौ से अधिक काव्य संग्रह प्रकाश में आ चुके हैं।

हिंदी कविता को समृद्ध करने वाले कवियों में श्रीनिवास श्रीकांत, कुमार कृष्ण, ओमप्रकाश सारस्वत, शांता कुमार, संतोष शैलजा, तेज राम शर्मा, जगदीश शर्मा, गौतम व्यथित, पीयूष गुलेरी, सुरेश सेन निशांत, पीसीके प्रेम, प्रत्यूष गुलेरी, कृष्णचंद्र महादेविया, दिनेश धर्मपाल, भगवान देव चैतन्य, सरोज परमार, चंद्ररेखा डढवाल, कंचन शर्मा, रत्नचंद निर्झर, श्यामसिंह घुना, सीआरबी ललित, मोहन साहिल, राममूर्ति वासुदेव प्रशांत, कर्मसिंह, प्रेमलाल गौतम, शंकर वासिष्ठ, सुदर्शन वशिष्ठ, रीता सिंह, केआर भारती, गणेश गनी, ब्रह्मानंद देवरानी, यादव किशोर गौतम, शंकरलाल शर्मा, द्विजेंद्र द्विज, दीप्ति सारस्वत, कल्पना गांगटा, गुरमीत बेदी, अजेय, आत्मा रंजन, अदिति गुलेरी, सत्यनारायण स्नेही, यादवेंद्र शर्मा, अशोक दर्द, राजीव त्रिगर्ती, ओम भारद्वाज, अजय पाराशर, हंसराज भारती, मधुकर भारती, विक्रम गथानिया, ईशिता आर गिरीश, आरडी शर्मा, कुंवर दिनेश, शरत, मनोज चौहान, हिमेंद्र बाली ‘हिम’, गोपाल शर्मा, पोरस और पंकज तन्हा आदि हैं जिनमें अधिकतर कवियों के अनेक काव्य संग्रह प्रकाशित हैं। इन कवियों में से अनेक कवि राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होते रहते हैं और चर्चित हैं। शोधार्थियों की दृष्टि भी इन रचनाकारों के रचना कर्म पर केंद्रित रही है। हिंदी गज़ल को समृद्ध करने में यहां के रचनाकारों का योगदान रहा है। प्रारंभ में लालचंद प्रार्थी, मनोहर सागर पालमपुरी, सुदर्शन कौशल, शबाब ललित, सुरेशचंद्र शौक, काहन सिंह ज़माल की गज़लें चर्चित रहीं और राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं।

इस दिशा में कृष्ण कुमार तूर का ‘रफ्ता राज’, श्रीनिवास श्रीकांत का ‘हर तरफ समंदर है’, नलिनी विभा नाज़ली का ‘वरक दर वरक’, विनोद कुमार गुप्ता का ‘आओ नई सहर का नया शम्स रोक लें’, मुनीश तन्हा का ‘सिसकियां’ और द्विजेंद्र द्विज, नवनीत शर्मा, सतीश रत्न और अमरनाथ धीमान इस क्रम में कुछ अन्य उल्लेखनीय गज़लकार हैं। हिंदी गजल के अतिरिक्त कई रचनाकारों ने ‘दोहा’ सृजन कर हिंदी कविता को समृद्ध किया है। उनमें अजय पाराशर का ‘कस्तूरी’, श्यामलाल शर्मा का ‘दोहा ग्रंथ-परमार्थ समसई’, कुंवर दिनेश का ‘दोहा बल्लरी’ आदि प्रमुख हैं। हिमाचल प्रदेश की लोक संस्कृति बहुमुखी और समृद्ध रही है। लोक संस्कृति और लोक साहित्य पर अनेक ग्रंथों की रचना हुई है। उनमें एमआर ठाकुर, अमर सिंह रणपतिया, गौतम व्यथित, पीयूष गुलेरी, प्रेम पखरोलवी, डा. बंशीराम शर्मा, कांशीराम आत्रेय, हरिराम जस्टा, सुदर्शन वशिष्ठ, शम्मी शर्मा, डा. तुलसी रमण, डा. ओम प्रकाश शर्मा, अमरदेव आंगिरस आदि कुछ प्रमुख लेखक हैं। हिंदी आलोचना में सुशील कुमार फुल्ल, डा. कुमार कृष्ण, डा. ओम प्रकाश सारस्वत, डा. अनिल राकेशी, श्रीनिवास श्रीकांत, डा. इंद्र सिंह ठाकुर, डा. जोगेश कौर, डा. विजय विशाल, डा. निरंजन देव शर्मा तथा प्रस्तुत पंक्तियों के लेखक की अनेक आलोचनात्मक कृतियां प्रकाशित हैं। इधर व्यंग्य विधा में भी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। अनेक रचनाकार अन्य विधाओं में सृजन के साथ व्यंग्य लेखन में भी सक्रिय हैं। रत्न सिंह हिमेश, ओमप्रकाश सारस्वत, गुरमीत बेदी, अजय पाराशर, अशोक गौतम आदि व्यंग्य विधा को समृद्ध कर रहे हैं। अशोक गौतम यहां के व्यंग्य रचनाकारों में सर्वाधिक सक्रिय हैं और ‘लट्ठमेव जयते’  से लेकर ‘हम नंगन के’ तक उनके छब्बीस व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हो गए हैं। राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में उनकी उपस्थिति प्रायः रहती है। हिमाचल में नाट्य विधा एकांकी के साथ रेडियो नाटक और रूपक लिखे गए हैं। इस विधा में श्रीनिवास जोशी, नरेंद्र अरुण, रतन चंद निर्झर, हरिराम जस्टा, आरसी शर्मा, सुदर्शन वशिष्ठ, ओम प्रकाश व अशोक हंस आदि उल्लेखनीय हैं। सुदर्शन वशिष्ठ का ‘नदी का रेत’ व श्रीनिवास जोशी का ‘डगयाली की रात’ राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहे हैं। संस्मरण और यात्रा वृत्तांत में राजेंद्र राजन के ‘पंद्रह बीश के जंगलों से’ व ‘विमलराय पथ’, रमेशचंद्र मस्ताना का ‘पांगीघाटी की पगडंडियां’ और ‘परछाइयां’ तथा प्रभात शर्मा की पुस्तक मनमोहक देवधरा पांगी आदि उल्लेखनीय हैं। यहां हिमाचल प्रदेश में सृजनरत रचनाकारों का संक्षिप्त परिदृश्य है। बहुत से अन्य रचनाकार साहित्य की विविध विधाओं में सृजनरत हैं और निरंतर प्रदेश और देश की पत्रिकाओं में अपनी रचनाओं से साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं जिनका उल्लेख इस सीमित परिदृश्य में नहीं हो सका। उनका अवदान भी उक्त रचनाकारों की भांति महत्त्वपूर्ण है। इस परिदृश्य से स्वतः ही अनुमान लगाया जा सकता है कि हिमाचल प्रदेश साहित्य के पर्याप्त करीब है और साहित्य समृद्धि में योगदान दे रहा है।

— समाप्त


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