पूर्ण आत्मनिर्भरता

By: Mar 28th, 2020 12:18 am

श्रीश्री रवि शंकर

यह महत्त्वपूर्ण है कि आप की आत्मनिर्भरता आप का अभिमान न बने। मैं कभी भी किसी की मदद नहीं लेता, सब कुछ स्वयं करता हूं, यह अभिमान है। आप एक जिम्मेदार नागरिक हो, आप के ऊपर आपके परिवार की जिम्मेदारी है। परंतु आप की जिम्मेदारी वही है, जो आप कर सकते हो…

पूर्ण आत्मनिर्भरता संभव नहीं है। एक दूसरे के ऊपर निर्भरता रहती है। तुम्हें एक दर्जी पर कपड़ों के लिए निर्भर होना पड़ता है। एक किसान फसल उगाने के लिए उत्तरदायी है तो इस तरह आप उस पर निर्भर करते हो। यदि तुम बीमार हो जाते हो, तो डाक्टर के पास जाते हो, इस तरह एक डाक्टर पर निर्भर होना पड़ता है। शिक्षा के लिए शिक्षक पर निर्भर होना पड़ता है। हर कोई किसी न किसी तरह एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं। एक प्रकार का चक्र है, जिसे हम जीवन के हरेक क्षेत्र में अनुभव कर सकते हैं। यह चक्र आदि काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक यों ही अनवरत चलता रहेगा। यह एक प्रकार से प्रकृति का सैद्धांतिक नियम है। परंतु हमे भी कदम बढ़ाना है। बैचैनी और उदासी तब तक बनी रहती है, जब तक हम किसी के लिए उपयोगी न बने। मन से सवालों का मंथन चलता रहता है। निर्भरता क्या है? एक उदाहरण से इसे समझने का प्रयास करते हैं। एक दिन आप की बाई नहीं आती और आप अपने घर की सफाई न करें तो यह निर्भरता है। आप जो भी कर सकते हो करते रहो।

यह महत्त्वपूर्ण है कि आप की आत्मनिर्भरता आप का अभिमान न बने। मैं कभी भी किसी की मदद नहीं लेता, सब कुछ स्वयं करता हूं, यह अभिमान है। आप एक जिम्मेदार नागरिक हो, आप के ऊपर आपके परिवार की जिम्मेदारी है। परंतु आप की जिम्मेदारी वही है, जो आप कर सकते हो। जो आप नहीं कर सकते वह आपकी जिम्मेदारी नहीं है। यदि आप एक डाक्टर नहीं हो तो आपकी जिम्मेदारी डाक्टर को बुलाने की है न कि इलाज करने की। जो कुछ भी हम आसानी से कर सकते हैं, वही हमारी जिम्मेदारी है। जब मन और बुद्धि का विस्तार होता है तो आप बड़ी जिम्मेदारी उठाते हो और जब आप और अधिक जिम्मेदारी उठाते हो तो, आपको अधिक शक्ति मिली है। क्या आपने प्रभुपाद की कहानी सुनी है। 75 की आयु में उनके गुरु  ने उनसे कहा कि वह कृष्ण भगवान का नाम प्रसिद्ध करें। इस आयु में भी वह अमरीका चले गए। एक महीने तक जहाज पर रहे। वह बहुत कठिन हालत में रहे, बहुत ठंडी जगहों पर रहे, किसी के तहखाने में रहे। परंतु उनकी आस्था इतनी पक्की थी कि 1000 लोग सत्संग करने लगे और ईश्वर का नाम जपने लगे। जब किसी का संकल्प और इरादा पक्का होता है तो आयु का भी कोई फर्कनहीं पड़ता। मैं किसी भी स्थिति और परिस्थिति से ऊपर उठूंगा, ऐसा इरादा रखना चाहिए। जिनके मन में लक्ष्य को पाने की भावना पक्की हो उनके रास्ते में कितनी भी रुकावटे क्यों न आएं, वे कभी डगमगाते नहीं। आगे बढ़ना ही एकमात्र पथ है अपनी मंजिल पर पहुंचने का। सबसे पहने अपने अंदर आत्मविश्वास को जाग्रत करो, उसके बाद ही किसी विषय के बारे में निर्णय ले सकते हो। 


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