बूंद भी सागर ही है

By: Mar 28th, 2020 12:20 am

बाबा हरदेव

गतांक से आगे…

समुद्र हो कि नदी हो, सरोवर हो कि कुंआ,इससे अंतर नहीं पड़ता क्योंकि सबके भीतर जल एक ही है। इसी प्रकार लहर हो अथवा बूंद हो, इससे भी कुछ अंतर नहीं पड़ता क्योंकि इनमें भी जल एक ही है। अब विडंबना यह है कि हम आकारों में उलझ जाते हैं, हम सोचते हैं कि सागर का आकार बड़ा है,भला गांव की एक छोटी सी तलैइया, जिसका आकार बहुत ही छोटा सा है, कैसे मान लें कि यह दोनों सागर और तलैइया एक से हो सकते हैं। मानो हम बाहरी आकार को ही देख रहे हैं, कहां सागर और कहां गांव की तलैइया, हम आकार को देखकर उलझ जाते हैं। अब वास्तविकता तो यह है कि दोनों आकारों में जो जल मौजूद है, यह एक ही  है, अलग-अलग नहीं है,बूंद में जो है, बड़ी लहर में जो है,यह जल एक ही है। अब इसी प्रकार यदि हम किसी सोने की खान में जाकर देखें तो पाएंगे कि सोना तो एक ही है, लेकिन इस एक सोने से कितने-कितने आकार एवं रूप के गहने बनाए जाते हैं। संपूर्ण अवतार बाणी इस वास्तविकता को दर्शा रही है। इसी प्रकार हम प्राण रूपी खान में झांक कर देखें तो हम पाएंगे कि चेतना एक ही है और इसी चेतना में कितने रूप धारण कर रखे हैं। कोई पुरुष है, कोई स्त्री है, कोई गोरा है तो कोई काला है, कोई पशु है तो कोई पत्थर है। बिलकुल उसी प्रकार जैसे सोने की खान के भीतर झांक कर हमने देखा कि सोना एक है और इस सोने से बहुत से गहने बनाए जाते हैं। अब जो मनुष्य गहनों को देखने में ही सीमित है वह सोेने को देखने से वंचित रह जाता है और जो सोने को सही अर्थों में देख लेता है,उसकी गहनों के आकार एवं रूप आदि से आसक्ति छूट जाती है। ऐसे ही यदि हम कुम्हार को मिट्टी के बरतन बनाते हुए देखें,तो हम पाएंगे कि कुम्हार अनेकों प्रकार के आकारों के मिट्टी के मटके, सुराहियां, प्यालियां आदि बरतन बना रहा होता है और उनमें कितने रंग भर रहा होता है। अब इन्हीं बरतनों में किसी में गंगाजल भरा जाएगा और किसी में मदिरा भरी जाएगी। अतः यदि पृथ्वी से पूछा जाए तो यह तो केवल मिट्टी को ही जानती है। अब वास्तविकता तो यह है कि न गंगाजल से भरी सुराही से मिट्टी में कोई अंतर पड़ता है और न ही शराब से मिट्टी में कोई फर्क पड़ता है,क्योंकि यह दोनों मिट्टी से बनते हैं और दोनों मिट्टी में ही लीन हो जाएंगे। ऐसे ही यह चेतना तत्व (परमात्मा) है। परमात्मा बहुरंगों में प्रकट होता है और यह बात शुभ है कि परमात्मा बहुरंगों में प्रट होता है। इससे रौनक है, इससे जिंदगी रंगीन है,इससे जिंदगी में तरह-तरह के फूल हैं,यदि परमात्मा बहुरंगों में प्रकट न होता तो यह जगत बेरौनक होता तथा यहां उदासी होती। वास्तविकता तो यह है कि परमात्मा हर पल नई-नई रचना करता है, उनकी पुनरावृत्ति नहीं करता। इसलिए जगत इतना समृद्ध है,इसकी इतनी महिमा है।

 


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