भगवान राम की स्मृति को समर्पित रामनवमी

By: Mar 28th, 2020 12:23 am

रामनवमी एक ऐसा पर्व है, जिस पर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रतिवर्ष नए विक्रमी संवत्सर का प्रारंभ होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को एक पर्व राम जन्मोत्सव का, जिसे रामनवमी के नाम से जाना जाता है, समस्त देश में मनाया जाता है। इस देश की राम और कृष्ण दो ऐसी महिमाशाली विभूतियां रही हैं, जिनका अमिट प्रभाव समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से अनवरत चला आ रहा है। रामनवमी भगवान राम की स्मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं और इन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्मदिन की स्मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं…

मर्यादा पुरुषोत्तम

भगवान विष्णु ने राम रूप में असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मोत्सव तो धूमधाम से मनाया जाता है, पर उनके आदर्शों को जीवन में नहीं उतारा जाता। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी भगवान राम अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग 14 वर्ष के लिए वन चले गए और आज देखें तो वैभव की लालसा में ही पुत्र अपने माता-पिता का काल बन रहा है।

राम का जन्म

पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में कौशल्या की कोख से हुआ था। यह दिन भारतीय जीवन में पुण्य पर्व माना जाता है। इस दिन सरयू नदी में स्नान करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं।

रामनवमी की पूजा

हिंदू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री रोली, ऐपन, चावल, जल, फूल, एक घंटी और एक शंख हैं। पूजा के बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्य परिवार के सभी सदस्यों को टीका लगाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद आरती की जाती है और आरती के बाद गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है।

रामनवमी व्रत

रामनवमी के दिन जो व्यक्ति पूरे दिन उपवास रखकर भगवान श्रीराम की पूजा करता है तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य करता है, वह अनेक जन्मों के पापों को भस्म करने में समर्थ होता है।

विधि

रामनवमी का व्रत महिलाओं के द्वारा किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिला को प्रातः सुबह उठना चाहिए। घर की साफ.-सफाई कर घर में गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर लेना चाहिए। इसके पश्चात् स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद एक लकड़ी के चौकोर टुकड़े पर सतिया बनाकर जल से भरा एक गिलास रखना चाहिए और अपनी अंगुली से चांदी का छल्ला निकाल कर रखना चाहिए। इसे प्रतीक रूप से गणेशजी माना जाता है। व्रत कथा सुनते समय हाथ में गेहूं-बाजरा आदि के दाने लेकर कहानी सुनने का भी महत्त्व कहा गया है। रामनवमी के व्रत के दिन मंदिर में अथवा मकान पर ध्वजा, पताका, तोरण और बंदनवार आदि से सजाने का विशेष विधि-विधान है। व्रत के दिन कलश स्थापना और राम जी के परिवार की पूजा करनी चाहिए और भगवान श्री राम का दिनभर भजन, स्मरण, स्तोत्रपाठ, दान, पुण्य, हवन, पितृश्राद्ध और उत्सव किया जाना चाहिए।

रामनवमी व्रत कथा

राम, सीता और लक्ष्मण वन में जा रहे थे। सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोड़ा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढि़या के घर गए। बुढि़या सूत कात रही थी। बुढि़या ने उनकी आवभगत की और बैठाया, स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करवाया। राम जी ने कहा, ‘बुढि़या माई, पहले मेरा हंस मोती चुगाओ, तो मैं भी करूं।’ बुढि़या बेचारी के पास मोती कहां से आवें, सूत कात कर गरीब गुजारा करती थी। अतिथि को न कहना भी वह ठीक नहीं समझती थी। दुविधा में पड़ गई। अतः दिल को मजबूत कर राजा के पास पहुंच गई और अंजली मोती देने के लिए विनती करने लगी। राजा अचंभे में पड़ा कि इसके पास खाने को दाने नहीं हैं और मोती उधार मांग रही है। इस स्थिति में बुढि़या से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता। आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर बुढि़या को मोती दिला दिए। बुढि़या मोती लेकर घर आई, हंस को मोती चुगाए और मेहमानों की आवभगत की। रात को आराम कर सवेरे राम जी, सीता जी और लक्ष्मण जी जाने लगे। राम जी ने जाते हुए उसके पानी रखने की जगह पर मोतियों का एक पेड़ लगा दिया। दिन बीतते गए और पेड़ बड़ा हुआ, पेड़ बढ़ने लगा, पर बुढि़या को कुछ पता नहीं चला। मोती के पेड़ से पास-पड़ोस के लोग चुग-चुगकर मोती ले जाने लगे। एक दिन जब बुढि़या उसके नीचे बैठी सूत कात रही थी, तो उसकी गोद में एक मोती आकर गिरा। बुढि़या को तब ज्ञात हुआ। उसने जल्दी से मोती बांधे और अपने कपड़े में बांधकर वह किले की ओर ले चली। उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी। इतने सारे मोती देख राजा अचंभे में पड़ गया। उसके पूछने पर बुढि़या ने राजा को सारी बात बता दी। राजा के मन में लालच आ गया। वह बुढि़या से मोती का पेड़ मांगने लगा। बुढि़या ने कहा कि आस-पास के सभी लोग ले जाते हैं। आप भी चाहें तो ले लें। मुझे क्या करना है। राजा ने तुरंत पेड़ मंगवाया और अपने दरबार में लगवा दिया। पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गए और आते-आते लोगों के कपड़े उन कांटों से खराब होने लगे। एक दिन रानी की ऐड़ी में एक कांटा चुभ गया और पीड़ा करने लगा। राजा ने पेड़ उठवाकर बुढि़या के घर वापस भिजवा दिया। पेड़ पर पहले की तरह से मोती लगने लगे। बुढि़या आराम से रहती और खूब मोती बांटती।

व्रत का फल

श्री रामनवमी का व्रत करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है। उसकी धैर्य शक्ति का विस्तार होता है। इसके अतिरिक्त उपवासक को विचार शक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता की भी वृद्धि होती है। इस व्रत के विषय में कहा जाता है कि जब इस व्रत को निष्काम भाव से किया जाता है और आजीवन किया जाता है, तो इस व्रत के फल सर्वाधिक प्राप्त होते हैं।


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