यागंती उमा महेश्वर मंदिर

By: Mar 28th, 2020 12:22 am

आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में स्थित यागंती उमा महेश्वर मंदिर हमारे देश के ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है। यह मंदिर जितना अद्भुत है अपने आप में उतने ही रहस्यों को समेटे हुए है। इस मंदिर में मौजूद नंदी महाराज की प्रतिमा लगातार रहस्यमय तरीके से विशालकाय होती जा रही है, जिसकी वजह से यह यागंती उमा महेश्वर मंदिर काफी सुर्खियों में है। क्या सच में जीवित हो जाएंगे नंदी – नंदी को लेकर ऐसी मान्यता है कि एक दिन ऐसा आएगा जब नंदी महाराज जीवित हो उठेंगे, उनके जीवित होते ही इस संसार में महाप्रलय आएगा और इस कलियुग का अंत हो जाएगा।

20 साल में 1 इंच बढ़ती है मूर्ति– इस यागंती उमा महेश्वर मंदिर में स्थापित नंदी की मूर्ति का आकार हर 20 साल में करीब एक इंच बढ़ जाता है। इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए पुरातत्व विभाग की और से शोध भी किया गया था। इस शोध के मुताबिक कहा जा रहा था कि इस मूर्ति को बनाने में जिस पत्थर का इस्तेमाल किया गया था, उस पत्थर की प्रकृति बढ़ने वाली है। इसी वजह से मूर्ति का आकार बढ़ रहा है।

भक्त नहीं कर पाते हैं परिक्रमा- कहा जाता है कि इस यागंती उमा महेश्वर मंदिर में आने वाले भक्त पहले नंदी की परिक्रमा आसानी से कर लेते थे, लेकिन लगातार बढ़ते आकार के चलते अब यहां परिक्रमा करना संभव नहीं है। विशाल होते नंदी को देखते हुए मंदिर प्रशासन ने वहां से एक पिलर को भी हटा दिया है।

मंदिर का इतिहास- इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में किया गया था। संगमा राजवंश के राजा हरिहर बुक्का ने इस मंदिर को बनवाया था। कहा जाता है ऋषि अगस्त्य इस स्थान पर भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर बनाना चाहते थे, पर मंदिर में मूर्ति की स्थापना के समय मूर्ति के पैर के अंगूठे का नाखून टूट गया। इस घटना की वजह जानने के लिए अगस्त्य ने भगवान शिव की तपस्या की। उसके बाद भगवान शिव के आशीर्वाद से अगस्त्य ऋषि ने उमा महेश्वर और नंदी की स्थापना की थी।

पुष्करिणी का रहस्य –  इस यागंती उमा महेश्वर मंदिर परिसर में एक छोटा सा तालाब है, जिसे पुष्करिणी कहा जाता है। इस पुष्करिणी में लगातार नंदी के मुख से जल गिरता रहता है। लाख कोशिशों के बाद भी आज तक कोई पता नहीं लगा सका कि पुष्करिणी में पानी कैसे आता है। ऐसी मान्यता है कि ऋषि अगस्त्य ने पुष्करिणी में नहाकर ही भगवान शिव की आराधना की थी।

मंदिर से दूर भागते हैं कौवे- मंदिर परिसर में कभी भी कौवे नहीं आते हैं। ऐसी मान्यता है कि तपस्या के समय विघ्न डालने की वजह से ऋषि अगस्त्य ने कौवों को यह श्राप दिया था कि अब कभी भी कौवे मंदिर प्रांगण में नहीं आ सकेंगे।


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