लेखन का हिमाचली अभिप्राय एवं प्रासंगिकता

By: Mar 29th, 2020 12:04 am

डा. प्रेमलाल गौतम ‘शिक्षार्थी’

मो.-9418828207

संस्कृत साहित्य में एक सूक्ति प्रख्यात है ‘स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते’। इससे स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि क्रांतद्रष्टा सहृदय लेखक देशकाल की सीमाओं से परे है। वह समाज में जो कुछ भी देखता है, अपनी मति-गति के अनुसार उसे तूलिका से चित्रित कर देता है। हिमाचल का इतिहास वेदों, पुराणों तथा लौकिक साहित्य में सहज उपलब्ध होता है। दुर्गासप्तशती में चार बार हिमाचल शब्द आया है। संस्कृत, हिंदी, पहाड़ी, उर्दू, अंग्रेजी, पंजाबी भाषा-भाषी लेखक/कवि ने भौगोलिक प्राचीरों को भेदकर अपने प्रातिभ चक्षुओं से यहां की अलौकिक-प्राकृतिक छवि को निकटस्थता से निहारा है। संस्कृत निष्ठ हिमाचल की बोलियों की भाषा-वैज्ञानिकता को समझने का प्रयास किया, यहां की संस्कृति से प्रभावित होकर तीज-त्योहारों, उत्सवों, पर्वों, मेलों तथा रीति-रिवाजों को जाना-परखा तथा अवसरानुकूल गीत, गंगी, झूरियों, नाटियों की रचना कर हिमाचल की वीरान वादियों, गगनचुंबी शिखरों, गहरी नदियों, सघन जंगलों, लता पादपों, नाना प्रकार के खग समुदाय का अव्यक्त कलरव तथा राशि-राशि प्राकृतिक सुषमा बिखेरती इस हिमाचल भूमि को हृदयस्पृक पहाड़ी गीतों के बोलों से गुंजायमान किया है। अतीत साक्षी है कि यहां के असंख्य निरक्षर कबीरों ने घटित घटनाओं को तत्काल शब्द देकर श्रुति परंपरा से एक ओर जहां समाज को भावबोध का संप्रेषण किया, वहीं जन मनोरंजन का साधन भी प्रदान किया। हमने कभी अपने पूर्वजों की स्थानीय उक्ति-सूक्तियों की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। उनकी एक-एक सूक्ति में वृहद् इतिहास और उपन्यास छुपा है और हम यथार्थता से मुंह मोड़कर ‘घर का जोगी जोगड़ा परदेसी जोगी सिद्ध’ की उक्ति में यहां की लेखन बारीकियों को नहीं पकड़ सके। किसी भी देश विशेष की आंचलिकता में रच-बस कर जब लेखक कुछ लिखता है तो वही रचना प्राणवती तथा कालजयी होती है।

बघाट नरेश राजा दुर्गा सिंह ने लाहौर से महामहोपाध्याय मथुरा प्रसाद दीक्षित को राजकवि के पद पर स्थापित किया तथा आचार्य दीक्षित ने छत्तीस विभिन्न विधाओं में पुस्तकें लिखीं जिन पर परवर्ती विद्वानों ने शोध कार्य किया है। आचार्य प्रियव्रत शर्मा जैसे भारतविश्रुत विद्वान् ने हिमाचल में रहकर ज्योतिष के क्षेत्र में अनेक ग्रंथ लिखे। आचार्य दिवाकर दत्त शर्मा, डा. ‘अभिराज’ राजेंद्र मिश्र, प्रो. केशव शर्मा, शास्त्री दुर्गादत्त शर्मा, डा. मनोहर लाल आर्य प्रभृति विद्वानों ने वर्तमान में भी संस्कृत महाकाव्य लेखन की परंपरा जीवित रखी है। आचार्य केशव शर्मा द्वारा लिखित ‘हिमाचल वैभवम्’ हिमाचल के सांस्कृतिक जीवन को दर्शाने वाली रचना है। कितने ही डा. ओमप्रकाश सारस्वत जैसे विद्वान लेखक हैं जिन्होंने संस्कृत, हिंदी, पहाड़ी तथा अनूदित विपुल साहित्य समाज को दिया है। अनेक विद्वान् लेखकों की रचनाएं विश्वविद्यालय एवं शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रमों में विद्यार्थी पढ़ते आ रहे हैं। संस्कृत के आशुकवि डा. मनोहर लाल आर्य के कई गं्रथ प्रकाशित हैं जिनमें ‘हिमाचल निर्मातृ चरितम्’, ‘हिमाचल दर्शनम्’, ‘हिमाचल संस्कृति गौरवम्’, ‘हिमाचल कोविदाष्टकम्’ आदि में हिमाचल के प्रत्येक जनपद का सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं भौगोलिक वर्णन अतीव सूक्ष्मता से किया गया है। हिमाचल प्रदेश के समीक्षा जगत् में डा. सुशील कुमार फुल्ल तथा डा. हेमराज कौशिक बहुचर्चित समीक्षक हैं।

प्रदेश में प्रकाशित होने वाली पत्र-पत्रिकाओं का भी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान है। हिमाचल के क्रांतदर्शी कवि/लेखक ने यहां की भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक परिस्थितियों को निहारा, उसे कहीं भीतर तक अनुभव किया तथा शाब्दिक कमनीय कलेवर से सरस अभिव्यक्ति प्रदान की है। यहां की विकट परिस्थितियां, जनमानस प्रवृत्तियां, समस्याएं, घटनाएं, दुर्घटनाएं, अन्यायपूर्ण खड़ी विषम दीवारें, व्यर्थ की वर्जनाएं जब सहृदय लेखक देखता है तब उसका लेखकीय प्रजापति ‘यथाऽस्मै रोचते विश्वं तथैदं परिवर्तते’ की परिणति से वर्णन करने में विवश होता है। इस प्रकार हिमाचल के लेखक/कवि यहां की साहित्यिक संपदा को समृद्ध करते हुए प्रदेश को गौरवान्वित कर रहे हैं।

 


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