लॉकडाउन का पूर्वाभ्यास

By: Mar 23rd, 2020 12:05 am

कोरोना वायरस के खिलाफ  ‘जनता कर्फ्यू’ का एक दिन…! चारों तरफ  सन्नाटा पसरा रहा। सड़कें सूनी और खामोश दिखाई दीं। मानवीय हलचल प्रतीकात्मक ही रही। बाजारों पर तालाबंदी के हालात थे। बेशक गिनती भर की आवश्यक सेवाओं वाली दुकानें ही खुली थीं। रविवार का दिन सौभाग्यशाली भी कहा जा सकता है, जब दिल्ली सरीखे महानगर में तोता-मैना और दूसरे पक्षियों का कलरव सुनाई दिया। कुछ जगहों पर रंग-बिरंगे कबूतरों की जमात मस्ती करती हुई दिखाई दी। देश की राजधानी में कनॉट प्लेस, इंडिया गेट, लाल किला, कुतुबमीनार आदि ऐतिहासिक स्मारक भी निर्जन और स्पंदनहीन दिखाई दिए। पार्कों में सुबह की हलचल और चहलकदमी भी नदारद रही। कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो सड़क से समंदर तक सन्नाटे के साथ-साथ खालीपन छाया रहा। यह सन्नाटा, यह राष्ट्रीय खामोशी और सूनापन देशहित में ही माना जा सकता है। ‘जनता कर्फ्यू’ का प्रयोग भी बेहद सफल और राष्ट्रीय साबित हुआ, क्योंकि खुद जनता ने इसे लागू किया था। देशवासियों का बहुत आभार है। इस समय भारत भी ऐसी मानवीय आपदा में घिरा है कि यदि ऐसे प्रयोग नहीं किए जाएंगे, तो कुछ दिनों के बाद टीवी चैनलों पर और स्थानीय परिदृश्य में भगदड़ और मौतों वाले ऐसे हालात दिखाई दे सकते हैं, जो बेशक कल्पनातीत होंगे। एक ही कारण और दलील कई बार दोहरा चुके हैं कि यह देश 137 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाला है। हमारे पास विकसित देशों सरीखा चिकित्सीय और स्वास्थ्य तंत्र उपलब्ध नहीं है। चूंकि कोरोना वायरस की निरंतरता और चेन को तोड़ना है, लिहाजा ‘जनता कर्फ्यू’ एक बेहतर प्रयोग लगता है। इसने सामाजिक और सामूहिक ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर शारीरिक दूरी को भी निश्चित किया है। कई राज्यों में ट्रेन और बसों को इसीलिए रोक दिया गया, ताकि भीड़ का जमावड़ा न हो और कोरोना का विषाणु व्यक्ति-दर-व्यक्ति न फैल सके। रेलवे बोर्ड ने फैसला लिया है कि 31 मार्च तक कोई भी मेल, एक्सप्रेस, पैसेंजर रेलगाड़ी नहीं चलेगी, सिर्फ  मालगाड़ी ही चलती रहेगी। दिल्ली मेट्रो को भी 31 मार्च तक बंद कर दिया गया है। ऐसी राष्ट्रीय बंदी के बावजूद भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 350 को पार कर चुकी है और 7 मौतें भी दर्ज की जा चुकी हैं। शनिवार-रविवार के बीच 24 घंटों के दौरान मरीजों की संख्या 79 बढ़ी है। बेशक यह खतरनाक संकेत है। अभी तो इतने विराट देश में करीब 15 लाख लोगों की ही जांच हुई है। दुनिया में कोरोना संक्रमित लोगों का आंकड़ा 3 लाख पार कर चुका है और 13,000 से ज्यादा को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, एक संक्रमित व्यक्ति 50-60 दिनों के अंतराल में 3500 से अधिक लोगों को संक्रमण की चपेट में ला सकता है। इन तथ्यों के मद्देनजर एक दिन का ‘जनता कर्फ्यू’ नाकाफी लगता है। यह घोर संकट का दौर है। राजस्थान और पंजाब की सरकारों ने फिलहाल 31 मार्च तक ‘लॉकडाउन’ की घोषणा कर दी है। ओडिशा के 15 जिलों और महाराष्ट्र के कुछ जिलों में भी ‘लॉकडाउन’ कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी ‘लॉकडाउन’ के स्पष्ट संकेत दिए हैं। मध्य प्रदेश के भोपाल और ग्वालियर तथा छत्तीसगढ़ में भी ‘लॉकडाउन’ घोषित कर दिया गया है। यानी देश पूरी तरह बंदी की ओर जा रहा है। जिन 75 जिलों में कोरोना के मरीज पाए गए हैं, वहां प्रधानमंत्री कार्यालय ने ‘लॉकडाउन’ घोषित कर दिया है। यह भी स्पष्ट संकेत है। सवाल हो सकता है कि क्या ‘जनता कर्फ्यू’ देश में ‘लॉकडाउन’ का पूर्वाभ्यास है? प्रधानमंत्री ने कहा है कि देश अब भी खौफजदा न हो। भागें नहीं, सतर्क रहें। इसके मायने हो सकते हैं कि सरकार एकदम देश को दहशत और भय की स्थितियों में धकेलना नहीं चाहती। अलबत्ता लगता है कि धीरे-धीरे बंदी के आदेश आते रहेंगे और अंततः देश ‘लॉकडाउन’ में जा सकता है।


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