लॉकडाउन में राहत का परिदृश्य

By: Mar 30th, 2020 12:05 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

रिजर्व बैंक के नए फैसलों से चलन में नकदी की मात्रा बढ़ेगी। यह अनुमान है कि करीब 3 लाख करोड़ रुपए की नकदी चलन में आएगी। इससे उद्योग कारोबार के साथ-साथ सभी लोगों को राहत मिलेगी। निःसंदेह देश में लॉकडाउन के कारण व्यावसायिक और वित्तीय गतिविधियों से चमकने वाले केंद्रों में निराशा का सन्नाटा दिखाई दे रहा है…

यकीनन 26 मार्च को कोरोना महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा गरीब किसान, महिला एवं अन्य प्रभावित वर्गों के 100 करोड़ से अधिक लोगों को राहत पहुंचाने का जो एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए का बहुआयामी पैकेज घोषित किया गया है, वह सराहनीय है। ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ‘डब्ल्यूएचओ’ सहित कई आर्थिक एवं औद्योगिक संगठनों ने कोरोना से जंग में भारत के प्रयासों की सराहना की है। इसी तरह 27 मार्च को रिजर्व बैंक ऑफ  इंडिया ने उद्योग कारोबार और लोगों को वित्तीय और बैंकिंग संबंधी राहत देने के लिए कई महत्त्वपूर्ण ऐलान किए हैं। खासतौर से रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट घटाकर बड़ी राहत दी गई है। ब्याज दर में कमी का महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया है। 3 माह तक ईएमआई नहीं दिए जाने संबंधी राहत भी दी गई है। एनपीए के नियमों में बड़ा बदलाव किया गया है। रिजर्व बैंक के नए फैसलों से चलन में नकदी की मात्रा बढ़ेगी। यह अनुमान है कि करीब 3 लाख करोड़ रुपए की नकदी चलन में आएगी। इससे उद्योग कारोबार के साथ-साथ सभी लोगों को राहत मिलेगी। निःसंदेह देश में लॉकडाउन के कारण व्यावसायिक और वित्तीय गतिविधियों से चमकने वाले केंद्रों में निराशा का सन्नाटा दिखाई दे रहा है। ऐसे में दुनिया की प्रसिद्ध ब्रिटिश ब्रोकरेज फर्म बार्कलेज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना प्रकोप से इस वर्ष 2020 में भारत की अर्थव्यवस्था को करीब नौ लाख करोड़ रुपए नुकसान होगा। ऐसे में निश्चित रूप से जो आर्थिक पैकेज घोषित किया है उससे प्रभावित लोगों के लिए अनाज और धन दोनों की उपयुक्त व्यवस्था सुनिश्चित हो सकेगी। साथ ही अर्थव्यवस्था को मुश्किलों के दौर में कुछ राहत जरूर मिल सकेगी। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि लॉकडाउन ने देश के उद्योग-कारोबार को सबसे अधिक प्रभावित किया है। देश में सबसे अधिक रोजगार सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्योगों ‘एमएसएमई’ के द्वारा दिया जाता है, देश के करीब साढ़े सात करोड़ ऐसे छोटे उद्योगों में करीब 18 करोड़ लोगों को नौकरी मिली हुई है।

लॉकडाउन के कारण उद्योग-कारोबार के ठप्प होने के कारण देश के कोने-कोने में दैनिक मजदूरी करने वालों को काम की मुश्किलें बढ़ गई हैं। देश के कुल कार्यबल में गैर संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी 90 फीसदी है। साथ ही देश के कुल कार्यबल में 20 फीसदी लोग रोजाना मजदूरी प्राप्त करने वाले हैं। इन सबके कारण देश में चारों ओर रोजगार संबंधी चिंताएं और अधिक उभरकर दिखाई दे रही हैं। यदि हम लॉकडाउन के बीच अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर कोरोना वायरस के बढ़ते हुए प्रभावों को देखें तो पाते हैं कि चूंकि इस समय चीन भारत का दूसरा बड़ा व्यापारिक साझेदार है और ऐसे में चीन के साथ सबसे अधिक कारोबार प्रभावित हुआ है। निःसंदेह देश के विमानन क्षेत्र पर कोरोना वायरस का सबसे ज्यादा असर हुआ है। इंडिगो सहित कई विमानन कंपनियों के वेतन में कटौती की गई है। पर्यटन उद्योग के तहत कोरोना के चलते देश के लोग विदेश नहीं जा पा रहे और विदेशी पर्यटक देश में नहीं आ पा रहे हैं। निश्चित रूप से लॉकडाउन के बीच अधिक मार देश की फूड इंडस्ट्री पर पड़ रही है। बड़ा नुकसान मुर्गी पालन उद्योग को भी हो रहा है। देश का कपड़ा उद्योग भी कोरोना की चपेट में आ गया है। इसी तरह देशभर में होटल कारोबार भी कोरोना वायरस की वजह से तेजी से घटा है। कंज्यूमर ड्यूरेबल को भी कोरोना प्रकोप के कारण नुकसान झेलना पड़ रहा है। देशभर के राज्यों में लॉकडाउन के कारण सिनेमा और मॉल कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए बंद कर दिए गए हैं। इससे सिनेमा जगत और मॉल को बड़ा नुकसान हो रहा है। इसी तरह देश में लॉकडाउन और कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ने की खबरों से निवेशकों में घबराहट बढ़ गई है। कोरोना का संकट और गहराने से भारतीय कंपनियों के सामने नकदी का दबाव बढ़ गया है। भारत के शेयर बाजार में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज हुई है। यद्यपि लॉकडाउन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्योग-कारोबार जगत से कर्मचारियों का वेतन न काटे जाने की बात कही है, लेकिन कई उद्योग-कारोबार बुरी तरह प्रभावित होने के कारण अपने यहां कार्यरत कई कमर्चारियों को कम वेतन देते हुए या बिना वेतन अवकाश भी देते हुए दिखाई दे रहे हैं।

सरकार को यह निगरानी रखनी होगी कि उद्योग-कारोबार अपने कर्मचारियों को बिना वेतन अवकाश पर न भेजें। देश को बढ़ती हुई रोजगार चुनौती से राहत दिलाने के लिए जरूरी है कि आगामी एक अप्रैल से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष 2020-21 का आम बजट प्रस्तुत करते हुए एक फरवरी को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने रोजगार बढ़ाने के लिए जो घोषणाएं की हैं, उनके क्रियान्यवन पर शुरू से ही ध्यान दिया जाए। कहा गया है कि राष्ट्रीय लॉजिस्टिक पॉलिसी जल्द जारी होगी। इसमें रोजगार पैदा करने, कौशल विकसित करने और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों ‘एमएसएमई’ को ज्यादा सक्षम बनाने पर जोर रहेगा। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ‘मनरेगा’ के लिए अतिरिक्त धन आबंटित किया है। मछली पालन में अधिक रोजगार के लिए भारी प्रोत्साहन दिए गए हैं। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि नए बजट के तहत देश में स्वरोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए वित्तमंत्री प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ‘पीएमएमवाई’ को तेजी से आगे बढ़ाते हुए दिखाई दी हैं। बजट के ऐसे नए प्रावधानों के उपयुक्त क्रियान्वयन से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। हम आशा करें कि सरकार नए राहत पैकेज के तहत की गई घोषणाओं के प्रभावी क्रियान्वयन की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी और आपूर्ति व्यवस्था सुनिश्चित करने के काम को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए दिखाई देगी।

हम आशा करें कि सरकार देश में सर्वाधिक रोजगार देने वाले छोटे उद्योग कारोबार को मुश्किलों से बचाने के लिए उपयुक्त नए आर्थिक पैकेज का ऐलान शीघ्र ही करेगी। हम आशा करें कि सरकार राजकोषीय प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए राजकोषीय घाटे का स्तर जीडीपी के 5 फीसदी तक विस्तारित करने की डगर पर आगे बढ़ेगी। हम आशा करें कि सरकार ने जिस तरह अब तक कोरोना से जंग के पहले चरण में बचाव के लिए जनता कर्फ्यू, देशव्यापी लॉकडाउन और राहत पैकेज जैसे सफल कदम उठाए हैं, अब सरकार अगले चरण में ऐसे रणनीतिक कदम आगे बढ़ाएगी, जिससे देश के उद्योग क्षेत्र के करोड़ों लोगों को भी कोरोना के खौफ  से बहुत कुछ आर्थिक-सामाजिक राहत दिलाई जा सकेगी।


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