साहित्यिक जगत का जाना-माना नाम डा. कौशिक

By: Mar 5th, 2020 12:07 am

बातल के हेमराज को 1991 में महामहिम राष्ट्रपति के हाथों मिल चुका है सम्मान, 15 पुस्तकें भी प्रकाशित

परिचय…

नाम        डा. हेमराज

आयु       70 वर्ष

शिक्षा      बीएड, पीएचडी

पिता    जयानंद कौशिक

स्थान      बातल गांव सोलन   

‘दिव्य हिमाचल मीडिया ग्रुप’ हिमाचल, हिमाचली और हिमाचलियत की सेवा में सदैव तत्पर रहा है। यही कारण है कि किसी भी रूप में कुछ हटकर करने वालों का सम्मान हमारी प्राथमिकता में शामिल है।

‘दिव्य हिमाचल एक्सिलेंस अवार्ड’ ऐसी ही कर्मठ विभूतियों, संगठनों व संस्थाओं के प्रयासों को प्रणाम करने का संकल्प है। ‘दिव्य हिमाचल एक्सिलेंस अवार्ड’ की ‘सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार’ श्रेणी में शुमार हैं सोलन के डा. हेमराज कौशिक

सोलन – घर के ऐसे हालात, जब दसवीं के बाद पढ़ाई की उम्मीद तक नहीं थी, लेकिन उच्च शिक्षा की लालसा ने पीएचडी तक करवा दी। 37 साल तक बच्चों का हिंदी को ज्ञान दिया, तो प्रधानाचार्य भी बन गए और आज किसी परिचय के मोहताज नहीं। सोलन जिले के छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध बातल गांव के शिक्षाविद् डा. हेमराज कौशिक साहित्यिक जगत में एक चिरपरिचित शख्सियत है। वर्ष 1991 में महामहिम राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा पुरस्कार से अलंकृत डा. हेमराज कौशिक की आज तक 15 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। डा. हेम राज कौशिक का जन्म नौ दिसंबर, 1949 को बातल में हुआ। इनके पिता जयानंद कौशिक ने अपने जीवन के प्रारंभ वर्षों में अध्यापन किया। फिर मां की अकांक्षा के अनुरूप कर्मकांड व ज्योतिष को अपनी जीविका का आधार बनाया। डा. हेमराज की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय बातल में ही हुई। उन्होंने वर्ष 1966 में अर्की विद्यालय से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन घर की आर्थिक कठिनाइयों के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। सन 1967 में लोक निर्माण विभाग शिमला में चार माह तक दैनिक भोगी लिपिक के रूप में कार्य किया, परंतु उच्च शिक्षा प्राप्त करने की उत्कंठा के चलते वह घर लौट आए। इसके बाद किसी हितैषी के परामर्श पर पंजाब विश्वविद्यालय से प्रभाकर व इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण कर एक प्राइवेट मिडल स्कूल में मुख्याध्यापक के पद से अध्यापन की शुरुआत की। 1973 में नाहन के एक सरकारी मिडल स्कूल में अप्रशिक्षित भाषा अध्यापक के रूप में अध्यापन आरंभ किया और इसके साथ ही पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि अर्जित कर भाषा अध्यापक का प्रशिक्षण और बीएड का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्ष 1984 में हिंदी के प्रख्यात कथाकार और आलोचक डा. विजय मोहन सिंह के निर्देशन में पीएचडी उपाधि अर्जित की। वह 37 साल तक हिंदी प्रध्यापक का कार्य करते हुए वर्ष 2009 में प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुए।

यहां से आया जुनून

डा. बच्चन सिंह और डा. विजय मोहन सिंह के आलोचनात्मक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर डा. कौशिक आलोचना विद्या की ओर अग्रसर हुए। इससे पूर्व उनके हिंदी सृजन की शुरुआत कविता से हुई। डा. कौशिक  की अब तक पंद्रह कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। अमृत लाल नागर के उपन्यास नए मूलों की तलाश शीर्षक उनका शोध प्रबंध वर्ष 1984 में ही प्रकाशित हुआ। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग का यह कदाचित प्रथम शोध प्रबंध था, जो प्रकाशित हो सका था।

एक से बढ़कर एक सम्मान

एक शिक्षक के रूप में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही, जिसके चलते वर्ष 1992 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से अलंकृत किया। साहित्य के प्रति उनके अनन्य योगदान के लिए अनेक संस्थाओं ने सम्मानित किया। उन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग में राष्ट्र भाषा हिंदी की सत्त उत्कृष्ट एवं समर्पित सेवा के लिए सरस्वती सम्मान से वर्ष 1998 में अलंकृत किया। ऑथर्ज गिल्ड ऑफ हिमाचल प्रदेश ने उन्हें साहित्य सृजन में योगदान देने के लिए 2011 में सम्मानित किया। इसी भांति भुट्टिको वीबर्ज सोसायटी लिमिटेड कुल्लू ने उन्हें वर्ष 2018 में वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत किया। नवल प्रयास, कला, भाषा, संस्कृति और समाज सेवा के लिए समर्पित संस्था (शिमला) ने वर्ष 2018 में राज्य स्तरीय उत्सव में उन्हें धर्म प्रकाश साहित्य रत्न सम्मान 2018 से प्रख्यात साहित्यकार संपादक नया ज्ञानोदय एवं पूर्व महानिदेशक दूरदर्शन द्वारा सम्मानित किया गया। प्रगतिशील साहित्यिक पत्रिका इरावती के द्वितीय इरावती-2018 के साहित्य सम्मान से अलंकृत किया। मानव कल्याण समिति अर्की, सोलन द्वारा साहित्य के लिए अनन्य योगदान देने के लिए भी इन्हें सम्मानित किया गया।


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