सूखे फूलों से जीवन में हरियाली का मौका

By: Mar 1st, 2020 12:08 am

नौणी यूनिवर्सिटी में दी जा रही स्पेशल ट्रेनिंग, भारत से एक्सपोर्ट होने वाले फ्लावर्ज में 70 फीसदी सूखे फूल…

किसान भाइयो, क्या आपको पता है  कि देश से एक्सपोर्ट होने वाले फूलों में 70 फीसदी ड्राई फ्लावर्ज होते हैं। यानी विदेशों में ड्राई फ्लावर्ज की काफी मांग है। इसी  को आधार मानते हुए अब प्रदेश में सूखे फूलों की खेती के प्रति बागबानों को प्रेरित किया जा रहा है। हिमाचल में भूमिहीन, बेरोजगार महिलाओं के लिए शुष्क फूलों (ड्राई फ्लावर) का व्यवसाय उनकी आर्थिकी को मजबूती प्रदान कर सकता है। यहां कृषि बागबानी के साथ लोग फूलों की व्यवसायिक खेती करते हैं। यहां के जंगलों में भी अनेक प्रकार के फूल पाए जाते हैं, जिन्हें हम सुखाकर आसानी से बाजार में बेचकर अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। सूखे फूलों की सजावट कर इन्हें बाजार में आसानी से बेच सकते हैं। यहां स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से भी ड्राई फ्लावर के कारोबार कर सकते हैं। डा. यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी नौणी के पुष्प एवं भूदृश्य प्रारूपीकरण विभाग महिलाओं, बेरोजगार युवाओं को ड्राई फ्लावर के व्यवसायीकरण का व्यवाहारिक प्रशिक्षण देते हैं, ताकि बेरोजगारों को स्वरोजगार से जोड़ा जा सके। प्रशिक्षण के दौरान यूनिवर्सिटी की फ्लोरीकल्चर विभाग के वैज्ञानिक प्रशिक्षणार्थियों को सुखाए गए फूलों की साज-सज्जा के टिप्स देते हैं।  मौजूदा समय में सूखे फूलों से बने ग्रीटिंग्स कार्ड, पॉट-पारी, वॉल पिक्चर, फाइल कवर, फ्लावर अरेंजमेंट और फ्लावर स्टिक्स की मांग निरंतर बढ़ रही है। जंगलों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रेती, पाइन कॉन, बांस कटे पौधों की टहनियों को रंग-रोगन करके उसमें ड्राई फ्लावर सजा सकते हैं। साथ ही इसकी छोटी- छोटी टोकरियों में सजा सकते हैं। इन टोकरियों को गाड़ी में रखने से गाड़ी फूलों की खुशबू से महकती रहती है। साथ ही ड्राई फ्लावर को लोग गिफ्ट भी करते हैं। इससे यह लंबे समय तक रहती है। सूखे फूलों में हेलीक्राइसम, एक्रोकाइलम, स्टेटिस लैकुरस ड्राई फ्लावर की मांग बाजार में ज्यादा है।

मोहिनी सूद-नौणी (सोलन)

पांच दिन की वैदर फोरकास्ट किसानों के हाथों में, मोदी सरकार ने लांच की मेघदूत ऐप

डा. मोहन जांगड़ा

वैज्ञानिक पर्यावरण विभाग, नौणी विश्वविद्यालय

पांच दिन की वैदर फोरकास्ट किसानों के हाथ में, मोदी सरकार ने लांच की मेघदूत ऐप   किसान व बागबान को अब मौसम की जानकारी लेना और आसान हो गया है। केंद्र की मोदी सरकार ने मेघदूत नाम एक ऐप लांच की है। मेघदूत  ऐप को भारत मौसम विज्ञान विभाग तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने संयुक्त रूप से बनाया है। इस ऐप से किसानों को अगले पांच दिनों के मौसम का पूर्वानुमान, पिछले पांच दिनों के मौसम की जानकारी एवं कृषि कार्य के लिए वैज्ञानिकों की सुझाई गई सलाह आसानी से मिल जाएगी। किसान भाई गूगल प्ले स्टोर से 33 एमबी की इस ऐप को डाउनलोड कर सकते है। ऐप को लेकर नौणी यूनिवर्सिटी के सीनियर साइंटिस्ट डाक्टर मोहन झांगड़ा ने कहा कि यह किसानों के लिए फायदेमंद है, तो किसान भाइयों देर न करें और तुरंत डाउनलोड करें यह ऐप। 

रिपोर्ट: मोहिनी सूद, नौणी (सोलन)

बल्ह में टमाटर के हाल जान लें

कैश क्रॉप के रूप में स्थापित टमाटर की फ सल बल्ह क्षेत्र की आर्थिकी की रीढ़ मानी जाती है। बल्ह उपमंडल की सैकड़ों एकड़ जमीन में टमाटर की लहलहाती बंपर फसल पाने के लिए यहां के मेहनतकश किसान आजकल खेतों की तैयारी में पसीना बहा रहे हैं। खेतों में ट्रैक्टर से जमीन की जुताई कर के उसमें बांस की बल्लियां गाड़ी जा रही हैं, जो टमाटर के पौधे के बढ़ने पर उसे सहारा प्रदान करती है। टमाटर के पौधे बड़े होने पर रस्सियों का सहारा लेकर खड़े रहते हैं जिससे इनमें लगे हुए टमाटर जमीन पर पानी और मिट्टी के संपर्क के कारण खराब होने से बचा रहता है। बल्ह क्षेत्र के सैकड़ों एकड़ जमीन में गर्मियों में टमाटर की फसल तैयार की जाती है। मंडी शहर की तरफ  से शुरू करें, तो गुटकर, बैहना, भड़याल, टिक्कर, मलवाना, चंदयाल, सिहंन, स्याहल, नागचला, गागल, सकरोहा, खांदला, राजगढ़, भियुरा, कुम्मी, टावां, स्टोह, छातडु, कठ्याहल, नलसर, बग्गी, खिउरी, ढाबन, कनैड, डीनक तथा अन्य बहुत से गावों में टमाटर की बंपर फ सल ली जाती है। इस फ सल को मंडी जिला में ही नहीं अपितु हिमाचल के अन्य जिलों के साथ पंजाब, दिल्ली और राज्यस्थान की मंडियों में भी प्रचुर मात्रा में भेजा जाता है।

रिपोर्ट: गागल

किसानों को घर-घर जाकर मोदी का प्लान बताएंगे नए अध्यक्ष

किसान मोर्चा चीफ डा. राके श शर्मा

केंद्र की नरेंद्र मोदी और प्रदेश की जयराम सरकारें किसानों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही हैं। कई किसान इन योजनाओं से अनजान हैं। इसलिए हिमाचल में भाजपा किसान मोर्चा किसानों को घर-घर जाकर इन योजनाओं से अवगत करवाएगा। यह कहना है हिमाचल भाजपा किसान मोर्चा ने नए अध्यक्ष राके श शर्मा बबली का। राकेश शर्मा को भाजपा ने किसान मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है। हमीरपुर में बिझड़ी तहसील के तहत आने वाले बुढ़ान गांव के रहने वाले डा. राकेश कहते हैं कि किसानों को सम्मान निधि, क्रेडिट कार्ड, सस्ते लोन, अच्छे बीज-खाद आदि मिलने चाहिएं। साथ ही उन्हें टेक्नोलॉजी से भी जोड़ना होगा। फिलहाल प्रदेश के किसानों को नए प्रदेशाध्यक्ष से बड़ी उम्मीदें हैं। इस पर वह कितना खरा उतर पाते हैं, यह भविष्य के गर्भ में हैं।                                 

रिपोर्टः अपनी माटी डेस्क

देश में हिमाचली पहाड़ी गाय का जलवा

परिस्थितियां और कम खाने पर भी अच्छी तरह सर्वाइव करने वाली हिमाचली पहाड़ी गाय को अब राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल गई है। हिमाचल प्रदेश की इस नस्ल को नेशनल ब्यूरो ऑफ एनीमल जैनेटिक रिसोर्सिज ने देश की मान्यता प्राप्त गाय की नस्लों की सूची में शामिल कर लिया है। हिमाचली पहाड़ी गाय का पंजीकरण हिमाचली पहाड़ी नाम से एक अधिकारिक नस्ल के रूप में किया है, जिससे कि अब यह नस्ल देशी नस्ल की अन्य गायों जैसे थारपारकर, साहिवाल, रेड सिंधी, गिर जैसी नस्लों की श्रेणी में शामिल हुई है। राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलने के बाद विलुप्ती की, कगार पर पहुंच चुकी इस नस्ल के सरंक्षण के साथ नस्ल सुधार के कार्यों को बल मिलेगा। गौर रहे कि पिछले तीन दशकों में हिमाचल प्रचलित ब्रिडिंग पॉलिसी में हिमाचली पहाड़ी नस्ल की गायों को अधिक दूध के लिए जर्सी नस्ल से क्रास ब्रीड किया जा रहा है, जिससे पहाड़ी नस्ल की गायों की संख्या में कमी आ रही है, लेकिन अब राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने से अब इस नस्ल की गाय के जर्म प्लाज्म कंजर्वेसन के लिए प्रोजेक्ट मिल सकेंगे। बिते वर्ष पहाड़ी नस्ल की गाय को संरक्षित करने के लिए हिमाचल सरकार ने केंद्र सरकार को 9.13 करोड़ का प्रोजेक्ट भेजा था, लेकिन पंजीकरण न होने के चलते इसे मंजूरी नहीं मिल पाई थी, लेकिन अब पंजीकरण होने के साथ ही केंद्र सरकार से इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के साथ ही पशुपालन विभाग ने  जिला सिरमौर के बागथन में पहाड़ी गाय के संरक्षण संस्थान के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। इससे पहाड़ी नस्ल की गाय के संरक्षण को काफी हद तक बल मिलेगा। पहाड़ी गाय के पंजीकरण के बाद नस्ल सुधार के लिए केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाले बजट का सीधा लाभ हिमाचल के किसानों और दूध का काम करने वाले लोगों को होगा। क्योंकि जब कम देखरेख और कम चारे में गुजारा करने वाली ये गायें, अधिक दूध देंगी, तो गायों को कम दूध देने की वजह से खुला छोड़ देने वाले पशुपालकों की संख्या में कमी आएगी।

रिपोर्ट:  रोहित पराशर, शिमला

जाच्छ में अगेती सब्जियों की बेल तैयार किसान भाई तुरंत करें संपर्क

नौणी यूनिवर्सिटी के क्षेत्रीय बागबानी अनुसंधान केंद्र जाच्छ में बेल वाली सब्जियों की अगेती पौध तैयार हो गई है। किसान भाई यहां आकर इस पौध को ले सकते हैं। केंद्र के सह निदेशक डा. अतुल गुप्ता ने बताया कि घीया, लोकी, खीरा, करेला व तोरी की ट्यूब में तैयार पौध किसानों को 10 रुपए प्रति पौधे के हिसाब से बेची जाएगी। इसके अलावा दूसरी सब्जियों जैसे टमाटर, शिमला मिर्च, बैंगन तथा गेंदे की पौध भी  तैयार है। यहां सब्जी विभाग के वैज्ञानिक डा. धर्मिंदर कुमार ने बताया कि जनवरी के महीने में इन सब्जियों की नर्सरी तैयार करने के लिए बीजों को पॉलीथीन की थैलियों में बोया जाता है। बेल वाली सब्जियों के बीजों की थैलियों में बुआई करने से पूर्व इनका अंकुरण कराना आवश्यक है। अगर आप भी अगेती सब्जियां लगाना चाहते हैं, तो देर न करें। अभी पहुंचे जाच्छ केंद्र।

रिपोर्ट: बलजीत चंबियाल, जाच्छ (नूरपुर)

मंडी के मसोली में महिलाएं बनी प्राकृतिक खेती की ब्रांड एंबेसेडर

द्रंग ब्लॉक के मसोली गांव की महिलाओं ने क्षेत्र के लोगों को रसायनमुक्त खेती की ओर मोड़ने की पहल शुरू की है। कृषि समूह मसोली की 20 महिला सदस्यों ने अपने खेतों में रसायनिक खरपतवारों, कीटनाशकों और खादों को पूरी तरह बंद करके सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को अपनाया है। प्रदेश सरकार की ओर से शुरू की गई प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के कृषि समूह मसोली की प्रधान इंदिरा राणा और सोनी देवी ने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती विधि के जनक पदमश्री सुभाष पालेकर से छह दिन का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। समूह की सदस्यों का कहना है कि जब से उन्होंने इस खेती विधि को अपनाया है, तब से रसायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग पूरी तरह बंद कर दिया है। महिलाओं का कहना है कि उनके परिवार में हर साल लगभग 8 से 10 हजार रुपए तक के रसायनिक खादें और कीटनाशक आते थे, लेकिन अब इनकी खरीद को बंद कर देशी गाय के गोबर और गोमूत्र को इस्तेमाल कर रही हैं

इन्होंने पति से लिए थे अलग खेत

समूह की सदस्य सोनी देवी ने कहा कि जब वह प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण पाने के बाद घर आई, तो घर वालों ने इसे अपनाने से मना कर दिया, लेकिन जब यह नहीं मानी तो पति ने मुझे इस खेती विधि को प्रयोग के तौर पर शुरू करने के लिए अलग से खेत दिए थे। उन्होंने बताया कि इन खेतों में सफल प्रयोग को देखते हुए अब परिवार वाले भी संतुष्ट हो गए हैं। कृषि समूह मसोली की प्रधान इंदिरा राणा ने बताया कि अभी वह तीन बीघा क्षेत्र में प्राकृतिक खेती कर रही हैं और अगली फसल के लिए पांच बीघा में इसे करेंगी।          

  रिपोर्ट: नवीन निश्चल शर्मा

किसान क्रेडिट कार्ड में किसानों को राहत

मोदी सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए बड़ा कदम उठाया है।   सिर्फ  चार फीसदी ब्याज दर पर पैसा देने के लिए जो किसान क्रेडिट कार्ड बनता है, उसे बनवाने के लिए लगने वाली सारी प्रोसेसिंग फीस मसलन इंस्पेक्शन और लेजर फोलियो चार्ज को खत्म कर दिया गया है। अगर कोई बैंक अब भी किसी किसान से ये चार्ज वसूलता है, तो उस पर कार्रवाई हो सकती है। इसमें तीन लाख रुपए तक का लोन मिलता है। पहले बिना गारंटी के एक लाख का लोन मिलता था, जिसे बढ़ाकर 1.60 लाख रुपए कर दिया गया है। अगर आपके पास खेती करने के लिए जमीन है, तो अपनी जमीन को बिना गिरवी रखे बिना लोन ले सकते हैं। इसकी सीमा एक लाख रुपए थी, लेकिन अब आरबीआई ने बिना गारंटी वाले कृषि लोन की सीमा 1.60 लाख रुपए कर दी है।

सीधे खेत से

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