हाय। मेरा सामान-सम्मान

By: Mar 25th, 2020 12:05 am

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com

….और वही हुआ। टांग फड़कन विज्ञान के ज्ञानी की वाणी सत्य हुई। ‘बंधु कौन? प्रकाशक?’ ‘नहीं, हम साहित्यकारों को सम्मान बांटने वाले प्रोफेशनल!’ ‘तो?’ ‘हम आपको सम्मानित कर कृतार्थ होना चाहते हैं, ‘सुन लगाए अब जब मैं भी सम्मान वाली शाल लपेटे देह त्यागूंगा तो लोग कहेंगे कि वो देखो! मरा सम्मानित जा रहा है। अब मैं भी कविगोष्ठियों में सम्मान वाली टोपी लगाए, शाल ओड़े शान से अंट-शंट बका करूंगा। ‘कितने लगेंगे?’ मैं सीधा प्वाइंट पर आया। आजकल बाजार में हरा धनिया तक सब्जी के साथ फ्री में नहीं आता फिर ये तो सम्मान की बात थी। ‘आपसे और पैसे? पैसे तो हम गधों को सम्मानित करने के लेते हैं। फिर आप तो मां हिंदी की जिस चौर्य भाव से दिन-रात सेवा कर रहे हैं, बस, उसी के प्रसाद के रूप में….’ ‘देखो बंधु! पहले ही साफ-साफ  कर दो। साहित्य में सम्मान दो तरह से मिलते हैं। या तो चंदागिरी से या फिर चमचागिरी से। और मैं बहुत कुछ दोनों की ही फेवर में नहीं।’ ‘क्षमा करें ! आपने ये कैसे मान लिया कि हम आपसे आपको सम्मानित करने को चंदा लेंगे? हम तो आपको आपकी असाहित्य साधना को लेकर…’ ‘तो कब है आपका आयोजन, सॉरी! मुझे सम्मानित करने का प्रोग्राम?’ ‘आज ही! दो बजे…’ मीट माके्रट में के हाल में!‘ ‘देखो बंधु! मजाक हो तो अच्छा। पर जो आप यह सच बोल रहे हों तो…’ सवा एक तो हो गए…. तो कोई बात नहीं सर! हमें तो आपको सम्मानित कर मां भारती की सेवा करनी  है बस! सो…‘ बाद में हमारे आफिस आकर कभी भी अपना सामान सम्मान ले लीजिएगा। हम कोरोना से सुरक्षित रहें या नए पर आपका सम्मान औए सामान हमारे पास सुरक्षित रहेगा, आपके जाने के बाद भी।’ समारोह खत्म तो उनकी ओर से बात खत्म। पर मुझे तो सम्मान चाहिए था, सो उस रोज बेशर्म बन कोरोना के खतरों के बीच से गुजरता उनकी संस्था का पता करते करते सम्मान लेने जा पहुंचा लेखकीय ड्रेस में। आप लेखक हों या न, पर जो आप सही लेखक की ड्रेस भर भी पहन लें तो लेखक न होने के बाद भी लेखक से तो लग ही जाते हैं पहली नजर में। अब ये आप पर डिपेंड करता है कि आप अपने को दूसरी नजर से कैसे बचाते हैं। उस वक्त वे वहां ताश खेलने बैठे थे। ‘नमस्कार!’ ‘कौन’? एक ने मुझे घूरते हुए पूछा। ‘जी वही, जिसे आपने सम्मान देने को फोन करा था।’ ‘अच्छा तो आप है वे सरस्वती के सौतेले पुत्र?’ जी नहीं। मैं सरस्वती नहीं, निर्मला का पुत्र हूं।’  ‘बैठिए-बैठिए!’ कह वे एक तीसरे की बगलें झांकने लगे। कुछ देर बाद दूसरे ने पूछा, ‘अपना आई कार्ड तो लाएं होंगे आप? क्या है न कि आजकल साहित्य में सम्मानों के लिए बहुत चोर बाजारी चल रही है। दर्जे से दर्जे का साहित्यकार भी हर किसी का सम्मान मार भागा जा रहा है। बाद में सम्मान पर से दूसरे का नाम हटवा अपना चिपकवा देता है हद की शालीनता से।’ ‘जी हां! ये रहा मेरा आईडी प्रूफ मैंने उन्हें अपना आईडी प्रूफ दिखाया तो तीसरा बोला, ‘तो बंधु! ये रहा आपका सम्मान!’ कह वे मुझे ऐसे चौड़े हो कोरा सम्मान पत्र देने लगे जैसे ज्ञानपीठ दे रहे हों ‘पर वह शाल, श्रीफल, टोपी वैगरह?’ ‘माफ कीजिएगा। आप देरी से आए हैं। कब तक आपकी शाल, टोपी बचाते फिरते? शॉल तो मैंने इनकी बीवी को दे दी।’ तो टोपी?’ ’वह हमारा चौकीदार ले गया। उसे ठंड लग रही थी।’  ‘और…. ‘जो आप तनिक और देर कर देते तो?’ ‘तो?’ ‘तो इस सम्मानपत्र से आपका नाम हटवा हम इनका नाम लिखवा देते।’ उन्होंने कहा और सम्मानपत्र मुझे देने के बदले कोने में फेंक दिया।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App