हिमाचली बाल साहित्य में लोक-चेतना

By: Mar 29th, 2020 12:05 am

डा. आर. वासुदेव प्रशांत

मो.-9459987125

बाल साहित्य पर हमारी विवेचनात्मक सीरीज की छठी किस्त का शेष भाग लोक-चेतना से अभिप्राय लोक-चिंतन अथवा जन-सामान्य की किसी विषय पर सोच से है। कोई भी समाज हमेशा से अपने कल्याण के प्रति चिंतन करता हुआ ही अपने ध्येय में अग्रसर रहता है। जन-कल्याण हमारे सामाजिक जीवन का एक अत्यावश्यक तत्त्व है। अतएव मनुष्य अपने इस तत्त्व पर चिंतन करता हुआ अपने हित के प्रति हमेशा सजग रहता है। सामान्य साहित्य उद्देश्य परक हो, चाहे न भी हो, किंतु बाल-साहित्य को तो किसी न किसी उद्देश्य को लेकर ही लिखा जाना चाहिए। बाल साहित्य को तो अपनी कथाओं, कविताओं, एकांकी-लेखन आदि से बालक के व्यक्तित्व का समुचित विकास करने में अपना योगदान देना होता है। इस दृष्टि से यहां पर कुछ चुनिंदा बाल साहित्यकारों की रचनाओं में लोक-चेतना के स्वरूप का उल्लेख अपेक्षित है। हिमाचल में बाल साहित्य के पुरोधा पंडित संतराम वत्स्य और डा. मस्तराम कपूर रहे हैं जिन्होंने बाल-लेखन की नींव रखी। संतराम वत्स्य ने रामायण, महाभारत आदि पौराणिक ग्रंथों और सत-पुरुषों की जीवनियों को आधार बना कर सौ से अधिक पुस्तकों का लेखन किया। डा. मस्तराम कपूर ने बाल कथा, बाल-नाटक एवं ‘भूतनाथ’ व ‘सपेरे की लड़की’ आदि बाल उपन्यास लिख कर बच्चों के मन में बाल-साहित्य के प्रति रुचि उत्पन्न करने का प्रयास किया। इनके अलावा बाल-उपन्यास, बाल एकांकी आदि के लेखन में डा. सुशील कुमार फुल्ल और डा. ओपी. सारस्वत के नाम उल्लेखनीय हैं। डा. फुल्ल ने अपने पांच बाल उपन्यासों, विशेषकर ‘टकराती लहरें’, ‘लाल मिट्टी की करामात’ एवं ‘ललकार’ से राष्ट्रभक्ति और देश-भक्ति की लोक-चेतना को भरपूर अभिव्यक्त किया है। डा. सारस्वत के बाल-एकांकी ‘पानी की तलाश’ में जहां सार्वजनिक जीवन में पानी की महत्ता को रेखांकित किया गया है, वहीं ‘लक्ष्मी की डिबिया’ में लोभ-लालच पर प्रहार किया गया है। उनके बाल-गीत तो लोक-जीवन से खूब जुड़े हैं। छाता ताने खडे़ हुए हैं, लाखों-लाख सुहाने पेड़ आदि गीत बच्चों का अच्छा मनोरंजन करते हैं और दैनिक जीवन में वृक्षों के महत्त्व को प्रतिपादित करते हैं। डा. गौतम व्यथित, सैन्नी अशेष, सुदर्शन वशिष्ठ और डा. आर. वासुदेव प्रशांत ने अपने-अपने क्षेत्र में लोक-चेतना का एक विशाल फलक पाठकों के सामने रखा है। व्यथित के बाल कथा संग्रह ‘काठ का घोड़ा’, ‘तीन ठग’ आदि में बच्चों के लिए अत्यंत रोचक और शिक्षाप्रद कहानियां मिलती हैं।

डा. व्यथित के बालगीत-‘चिडि़या कहां खो गई तू’, ‘सूरज को उगता जो बच्चे नहीं देखते’ आदि रोचक होने के अलावा पर्यावरण और देशभक्ति का पाठ भी पढ़ाते हैं। अपनी लगभग 2500 कहानियों में सैन्नी अशेष ने हिमाचल प्रदेश की संस्कृति, भूगोल, लोक-जीवन एवं लोक-कथाओं का विशद चित्रण न केवल प्रदेश के बल्कि पूरे भारत के पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करके बाल साहित्य को समृद्ध किया है। इनकी अनेक कहानियां जहां देश की विभिन्न भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं, वहीं ये हिमाचल के सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन के स्वरूप को दूर-दूर तक पहुंचाने में सफल सिद्ध हुई हैं। सुदर्शन वशिष्ठ ने अपनी बालकथाओं एवं बाल-लोककथाओं, ‘कथा और कथा’, ‘बालक की सीख’ और ‘हिमाचल प्रदेश की लोक कथाएं’ के द्वारा लोक चेतना को खूब अभिव्यक्त किया है। इनसे बच्चों को शिक्षा मिलती है कि बिना श्रम किए जीवन में सफलता नहीं मिलती। हिमाचली बाल साहित्य में लोक-चेतना की दृष्टि से डा. आर. वासुदेव प्रशांत के चार संग्रह – ‘शिला बोली’, ‘हार-जीत’, ‘सरदार की बेटी’ एवं ‘किशोर शिल्पी का बलिदान’ काफी महत्त्वपूर्ण हैं।

इन संग्रहों की कथाएं किसी भी बालक के जीवन को संतुलित आकार देने में बहुत उपयोगी हैं। बाल साहित्य लेखन में बहुत अच्छी पैठ बना चुके पवन चौहान की बाल कथाओं में लोक-चेतना के तत्त्व बखूबी द्रष्टव्य हैं। उनकी कहानी – ‘नए अंदाज में होली’ जहां बुजुर्गों के प्रति आदर एवं सम्मान को संसूचित करती है, वहीं ‘निखिल और पोपट’ कहानी अंधविश्वास और रूढि़यों को नकारती है। पवन चौहान की ऐसी अनेक कहानियां लोक-चेतना की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। स्व. डा. पीयूष, प्रत्यूष एवं अदिति गुलेरी, इन सब ने बाल साहित्य लेखन में अपना कर्म कौशल दिखाया है और अपने परिवेश के प्रति सजगता एवं संवेदनशीलता का परिचय दिया है। पीयूष के संग्रह – ‘हमें बुलाती छुक-छुक रेल’ में देश-भक्ति, प्रकृति के रूप-रंग, पर्यावरण एवं पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं का सजीव चित्रण मिलता है।  डा. प्रत्यूष गुलेरी के बाल कविता संग्रह ‘बाल-गीत’ और ‘मेरी 57 बाल-कविताएं’ ज्यादातर शिशु-गीत ही हैं। उनकी बाल-कथाएं ‘लंगड़ी बकरी’ एवं ‘दादी की दिलेरी’ लोक चेतना को केंद्र में रख कर ही लिखी गई हैं।

अदिति गुलेरी की कविताएं ‘मेरा बचपना’ और ‘तौबा पढ़ाई की’ बाल मनोविज्ञान को दर्शाती हैं। आशा शैली, अमरदेव अंगीरस जैसे बाल साहित्यकारों की रचनाओं में भी लोक-चेतना के अंश भरपूर विद्यमान हैं। रत्न चंद रत्नेश, अनंत आलोक, शेर सिंह और राजीव त्रिगर्ती की बाल-रचनाएं बच्चों को शिक्षा देने वाली और उनका भरपूर मनोरंजन करने वाली हैं। हिमाचली बाल साहित्य-लेखन काफी समृद्ध हो चुका है। अनेक बाल साहित्यकारों ने बहुत अच्छा रचना कर्म किया है, किंतु स्थानाभाव के कारण यहां पर सभी बाल-साहित्यकारों की रचनाओं को संकेतित नहीं किया जा सकता।


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