हिमाचल की अधिकतर जनता क्षत्रिय है
हिमाचली संस्कृति भाग-12
हिमाचल की अधिकतर जनता क्षत्रिय है। क्षत्रियों के अंतर्गत राजपूत, राणा, मियां, ठाकुर, राठी, खश, गद्दी, कनैत तथा राहू आते हैं। इनमें नागों , किन्नरों, आर्यों, खशों, शकों और गुर्जरों का बड़ी मात्रा में समाहार हुआ है। राजा, राणा और मियां क्षत्रियों की पंक्ति में प्रथम स्थान पर हैं। ठाकुर, राठी, गद्दी, खश और खासिया क्षत्रिय व्यवस्था में दूसरे स्थान पर हैं…
गतांक से आगे
समूचे प्रदेश में नाग पुंडीरक या पुंडरी नाग के नाम से ब्राह्मण वर्ग हैं। ये ब्राह्मण नाग देवताओं के पुजारी हैं और नाग ही इनका इष्ट देवता है। ये प्राचीन नाग सामंतों की संतान हैं। ब्राह्मणों में पारस्पारिक उच्चता और नीचता को जानने की एक कसौटी है, उनका कृषि के प्रति दृष्टिकोण। हल चलाने वाला ब्राह्मण एक दो सीढ़ी नीचे गिर जाता है, इन्हें हलवाहु कहा जाता है। ती से दूर रहने वाला ब्राह्मण उच्च वर्ग में आता है। कुछ ब्राह्मण भूमि के स्वामी हैं और कुछ नहीं। परंपरागत व्यवसाय के अतिरिक्त अब ब्राह्मण प्रायः सभी क्षेत्रों जैसे, सेना, उद्योग, कृषि व्यापार और प्रशासन में समाज के अन्य वर्गों की तरह समान साझीदार बन गए हैं।
राजपूत-क्षत्रिय : हिमाचल की अधिकतर जनता क्षत्रिय है। क्षत्रियों के अंतर्गत राजपूत, राणा, मियां, ठाकुर, राठी, खश, गद्दी, कनैत तथा राहू आते हैं। इनमें नागों , किन्नरों, आर्यों, खशों, शकों और गुर्जरों का बड़ी मात्रा में समाहार हुआ है। राजा, राणा और मियां क्षत्रियों की पंक्ति में प्रथम स्थान पर हैं। ठाकुर, राठी, गद्दी, खश और खासिया क्षत्रिय व्यवस्था में दूसरे स्थान पर हैं। इन का मुख्य व्यवसाय कृषि है। सबसे निचला स्थान कनैत और राहू को प्राप्त हुआ है। कुछ एक इतिहासकार राहू और कनैत को एक ही मानते हैं। जबकि कुछ एक विद्वान इसके विपरीत इन्हें अलग-अलग मानते हैं। उनके मतानुसार कनैत कुनिंदों की संतान है और राहू गुर्जरों की संतान हैं। एक अलग मत के अनुसार कनैत और राहू गुर्जर संतान हैं। ऐसा जान पड़ता है कि कनैत और राहू आदिम जातियों और ऐतिहासिक जातियों का मिश्रण हैं। जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि कनैत संभवतः कुलिंदों के वंशज, नाग-खश, आर्य-खश, खश-कोली और गुर्जर-खश-शकों की संतान हैं।
वैश्य : वैश्य मुख्यतः वणिक और शिल्पी थे। हिमाचल प्रदेश में शिल्प कार्य साधारधतः कनैतों में से ही कर लेते थे। वाणिज्य के लिए यहां अवसर नहीं था। व्यापारिक अर्थव्यवस्था अदल-बदल प्रणाली पर आधारित थी। यही कारण था कि यहां एक बड़ा व्यापारिक वर्ग नहीं बन पाया। यहां वैश्यों की श्रेणी में महाजन, सूद, बनिए, कराड़ और खत्री रखे जा सकते हैं।
-क्रमशः
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