हिमाचल में सब्जी की 13 नई किस्में

By: Mar 9th, 2020 12:05 am

कृषि विश्वविद्यालय ने आठ नई तकनीक भी की अनुमोदित

सब ठीक रहा, तो हिमाचल में लाखों किसान भाइयों को सब्जियों की आठ नई किस्में मिल जाएंगी। प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित सब्जियों की 13 नई किस्मों का अनुमोदन किया है। यही नहीं, आठ नई उत्पादन तकनीकों को भी हिमाचल में खेती के लिए अनुमोदित किया गया है। हिमाचल को ऑफ-सीजन सब्जी की खेती के लिए जाना जाता है और विश्वविद्यालय द्वारा नई विकसित किस्मों से सब्जियों का उत्पादन बढ़ेगा और किसानों की आय बढ़ेगी और फसल विविधीकरण में भी मदद मिलेगी। सब्जी उत्पादन के लिए आठ तकनीकें भी पैकेज ऑफ  प्रैक्टिस पुस्तिका में डालने तथा प्रदेश में काश्त हेतु स्वीकृत की गई हैं। इनमें प्लग-ट्रे में स्वस्थ सब्जी नर्सरी उत्पादन के लिए मृदा रहित मीडिया, संरक्षित वातावरण में टमाटर और पार्थेनोकार्पिक ककड़ी में पौधे का फैलाव, मानकीकृत पोटिंग सामग्री में अपशिष्ट डिस्पोजेबल मिट्टी के कप में अंकुरित पौधे उगाना, खरीफ  प्याज बल्बों की शेल्फ  लाइफ  को बढ़ाना आदि शामिल हैं। प्रदेश कृषि विवि के कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश बेमौसमी सब्जी की खेती के लिए जाना जाता है और विश्वविद्यालय द्वारा नई विकसित किस्मों से सब्जियों का उत्पादन बढ़ेगा। इससे किसानों की आय बढ़ेगी और फसल विविधीकरण में भी मदद मिलेगी। उन्होंने वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रमुख और पुष्प विज्ञान डा. अखिलेश शर्मा और उनकी टीम को उनकी उपलब्धियों के लिए बधाई दी।

इन किस्मों को मंजूरी, किसान भाई दें ध्यान

मटर की दो किस्में हिम पालम मटर-1 व हिम पालम मटर-2, मीठी फलियों की दो किस्में हिम पालम मीठी फली-1 तथा हिम पालम मीठी फली-2, मिर्ची की दो किस्में हिम पालम मिर्च-1 व हिम पालम मिर्च-2, बीज रहित खीरे की दो किस्में हिम पालम खीरा-1 व हिम पालम खीरा-2, हिम पालम टोमैटो हाईब्रिड-2 की एक किस्म तथा चैरी टोमैटो हिम पालम चैरी टोमैटो-1 की एक किस्म, बंद गोभी की हिम पालम कैबेज हाईब्रिड-1, प्याज की हिम पालम स्वेता तथा मूली की हिम पालम मूली-1 शामिल हैं।

रिपोर्ट : जयदीप रिहान,पालमपुर

नौणी यूनिवर्सिटी ने 3424 बागबानों को बांटे बूटे हिमाचल ने उत्तराखंड को भी दी पौध

नौणी यूनिवर्सिटी ने इस बार प्रदेश के कुल 3424 बागबानों को फलदार पौधे बांटे हैं। यह खुलासा विधानसभा के बजट सत्र में हुआ है। किन्नौर के विधायक जगत सिंह नेगी ने सरकार से इस मसले पर सवाल पूछा था। जवाब में बागबानी मंत्री महेंद्र सिंह ने कहा कि कुल 89061 पौधे वितरित किए गए हैं। उन्होंने कहा कि सेब के प्रमुख प्रजातियों में जीरोमाइन, सुपर चीफ , स्कारलेट स्पर, गेल गाला, रॉयल आदि की सेब पौध दी गई है। इसके अलावा प्लम, नाशपाती, खुमानी , अनार के बूटे भी दिए गए हैं। मंत्री ने यह भी बताया कि उत्तराखंड की सरकारी संस्था को भी 1130 ही पौधे दिए गए हैं। सत्र में विधायक में रामलाल ठाकुर के सवाल पर बताया गया कि जुखाला सब्जी मंडी का काम दो जुलाई तक पूरा हो जाएगा। एक अन्य महत्त्वपूर्ण सवाल पर सरकार की ओर से बताया गया कि पिछले दो साल में हिमाचल में 14603 लाख लीटर दूध का उत्पादन हुआ है। इसमें अकेले मिल्क फेड ने 255 लाख लीटर दूध खरीदा है, तो किसान भाइयों यह थी सरकार की ओर से आपके लिए जरूरी जानकारियां। उम्मीद है आपको ये जरूर अच्छी लगी होंगी।

एक बक्से से मिलेगा 40 किलो शहद वजन 7 किलो, मधुमक्खी भी सेफ

हिमाचल समेत देश भर के हजारों मौनपालकों के लिए राहत भरी खबर है। पालमपुर में आईएचबीटी के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत के बाद सात किलो वजनी आधुनिका बॉक्स तैयार कर लिया है। लकड़ी से बने लाइट वेट इस बॉक्स में सात फ्रेम हैं। यह पोर्टेबल है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इससे एक समय में 30 किलो तक शहद निकाला जा सकता है। दावे की वजह यह है कि इसमें एक भी मधुमक्खी नहीं मरती है और इससे शहद निकालना बेहद आसान है, वहीं बेहतर क्वालिटी का होने के साथ यह हाइजेनिक भी है। इससे टाइम और लेबर भी बचती है गौर रहे कि भारत दुनिया में आठवां सबसे बड़ा शहद उत्पादक देश है। यहां सालाना 1.05 लाख मीट्रिक टन शहद की पैदावार है। जहां तक हिमाचल की बात है,तो इसका देश में छठा स्थान है। इंडियन हनी को इंटरनेशनल मार्केट में अच्छे दाम इसलिए नहीं मिल पाते, क्योंकि यह हाइजेनिक नहीं होता। ऐसे में आईएचबीटी के वैज्ञानियों को यह प्रयोग देश भर के शहद की इमेज भी सुधार देगा। इस बारे में आईएचबीटी के निदेशक डा. संजय कुमार कहते हैं कि

 भारत करता है निर्यात

भारत कई देशों को शहद एक्सपोर्ट करता है। इनमें संयुक्त राज्य अमरीका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बांग्लादेश, कनाडा आदि को 0.63 लाख मीट्रिक टन निर्यात होता है, जिसकी कीमत 732.16 करोड़ है।

रिपोर्ट : जयदीप रिहान, पालमपुर

एक नलकूप, दो एकड़ जमीन और 6 गाय, जवाली के विवेक ने कामयाब बनाई जीरो बजट खेती

एक नलकूप, दो एकड़ जमीन और छह गाय। इस आंक ड़े को गणित का सवाल न समझें, बल्कि यह तो जीरो बजट खेती का गणित है, जिसे कांगड़ा जिला में जवाली के होनहार किसान विवेक ठाकुर ने अपनी मेहनत के दम पर तैयार किया है। घाड़जरोट के रहने वाले विवेक सफलतापूर्वक शून्य बजट खेती को आगे बढ़ा रहे हैं।  विवेक का मानना है कि इस खेती से उनके खेतों को मृदा प्रदूषण से मुक्ति मिल चुकी है और अच्छी आमदनी भी हो रही है। अभी उनके खेतों में आलू-मूली, साग सरसों, प्याज, गोभी, बंदगोभी, पालक के साथ गेहूं व मक्की की खेती हो रही है। खेतों में अंग्रेजी खाद की जगह गोबर के अलावा गोमूत्र का इस्तेमाल होता है। उन्होंने एक ड्रम में  गोमूत्र, धतूरा, नीम आदि से देशी छिड़काव भी बनाया है,जिससे उन्हें खूब लाभ मिल रहा है। विवेक चाहते हैं कि प्रदेश सरकार जीरो बजट से तैयार सब्जियों को बेहतर मार्केट मुहैया करवाए।

रिपोर्ट सुनील दत्त,जवाली

फतेहपुर के लंबरदार की कहानी पर यकीन करे सरकार

पानी न मिलने से कई किसान खेती छोड़ रहे हैं। जिला कांगड़ा के ब्लाक फतेहपुर की पंचायत हटली के लंबरदार सुदर्शन सिंह की कहानी भी ठीक कुछ ऐसी ही है। सुदर्शन अपनी जमीन में खेती के लिए कुआं खुदवाना चाहता था। इस पर उन्होंने  हटली पंचायत से ग्राम सभा का प्रस्ताव दो साल पहले जिला राजस्व अधिकारी धर्मशाला, और विकास खंड अधिकारी फतेहपुर को भेजा। फतेहपुर बीडीओ की ओर से जब सचिव से इस बाबत जवाब मांगा गया, तो बताया गया कि लंबरदार को पहले से ही एक टैंक बनाकर दिया गया है। अब इन टैंकों में कितना पानी है,यह सभी जानते हैं। फिलहाल सुदर्शन को अभी भी उम्मीद है कि प्रदेश सरकार उनका नलकूप और कुआं खुदवाकर उन्हें देगी, ताकि वह अच्छे से खेती कर सके ।

सुखदेव सिंह, नूरपुर

बारिश के बाद रखें फसलों का ख्याल

कृषि हेल्पलाइन

  डा. मोहन जांगड़ा वैज्ञानिक पर्यावरण विभाग  नौणी विश्वविद्यालय

वर्षा  के पानी को गेहूं आदि फसल में लंबे समय तक न खड़ा होने दें तथा इसके निकास का उचित प्रबध करें। वर्षा का पानी एक खेत से दूसर में न जाने दें ताकि किसी भी प्र्रकार की बिमारी का स्थनातरण को रोेका जा सके। प्याज और लहुसन की फसल में निराई-गुड़ाई करें और नत्रजन में दूसरी मात्रा 8 किलोग्राम प्रति बीघा की दर से डालें। फसलों पर कोई छिड़काव न करें।

पुष्प उत्पादन संबंधित कार्य : किसानों को सलाह दी जाती है कि मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेडियोलस व गेंदे की फसल के उत्पादन के लिए क्यारियों को तैयार करें। क्यारियों में लगभग 5 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से गोबर की खाद मिलाएं।

बागबानी संबंधित कार्य : जो बागवान किसी कारण से पौधे न लगा पाए हो उनको सलाह दी जाती है कि वे पौधे लगाने का काम जल्दी खत्म कर लें। जमीन में अच्छी नमी बनी हुई है इसलिए बागबान अपने बागीचों में फल पौधें के तौलिए बनाने का कार्य करते रहें तथा रसायानिक खाद जैसे कि पोटाश आदि व गोबर की खाद डालने व अन्य उर्वरक अनुमोदित मात्रा में डालें।

पशुधन संबंधित कार्य : दुधारू पशुओं को प्रतिदिन उच्च गुणवत्ता का दाना 1 किलोग्राम प्रति 2 किलोग्राम दूध मिश्रण प्रतिदिन डालें। गर्भावस्था की अंतिम तिमाही के  दौरान पशुओं को तीन किलोग्राम दाना तथा 50 ग्राम खनिज मिश्रण प्रतिदिन दें। यह पशुओं में अगले ब्यांत के लिए शारीरिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

रिपोर्ट : मोहिनी सूद, नौणी

लाख टके का सवाल

5 पंचायतों पर एक कोल्ड स्टोर खोलने  में सरकार को क्या तकलीफ

राजीव गांधी पंचायती राज संगठन की हिमाचल इकाई संविधान के 73वें व 74वें संशोधन के तहत पंचायतों की मजबूती को लेकर लोगों के बीच पहुंचेगा। संगठन के  अध्यक्ष दीपक राठौर ने कहा है कि उनका संगठन हिमाचल के बागबानों, किसानों  की समस्याओं को लेकर सरकार को एक खास  रिपोर्ट सौंपने जा रहा है। उन्होंने कहा कि  किसान और बागबानों को मार्केटिंग आदि की व्यवस्था न होने के चलते अपने उत्पाद सस्ते दामों पर बेचने पड़ रहे हैं। सरकार को चाहिए कि  संबंधित विभागों के कर्मी  पंचायतों में तैनात करे और वहां पांच-छह पंचायतों पर एक कोल्ड स्टोर की व्यवस्था की जाए, ताकि किसान और बागबान अपने उत्पाद को उचित दामों पर बेचने के लिए सफल हो सके। आखिर ऐसा करने में भाजपा की हिमाचल और केंद्र सरकारों को तकलीक  क्या है।                                                         रिपोर्टः अनिल डोगरा, देहरागोपीपुर

   देश में हिमाचली पहाड़ी गाय का जलवा

हिमाचली पहाड़ी गाय के पंजीकरण के लिए पशुपालन विभाग को दो साल तक चली लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। पशुपालन विभाग ने इस गाय को मान्यता प्राप्त नस्लों की श्रेणी में शामिल करवाने हेतु इस नस्ल की विशेषताओं को संकलित करके नेशनल ब्यूरो ऑफ  एनिमल जेनेटिक रिसोर्सिज के समक्ष रखा था, तथा समय-समय पर संस्थान द्वारा मांगे गए विवरणों को उपलब्ध करवाकर अब 2 वर्षों के प्रयास के पश्चात इस नस्ल का पंजीकरण हो सका है तथा यह नस्ल देशी नस्ल की गउओं में शामिल की गई है। हालांकि पशुपालन विभाग द्वारा इस गाय को गौरी नाम से पंजीकृत करवाने का मामला ब्यूरो को भेजा गया था, परंतु प्रदेश की देशी नस्ल पहाड़ी नाम से ज्यादा प्रचलित होने के कारण इस नस्ल का नामकरण हिमाचली पहाड़ी के रूप से किया गया है।  हिमाचल सरकार की ओर से किसानों की आय को दोगुना करने के लिए शुरू की गई प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत देशी नस्ल की गउओं की खरीद पर सरकार की ओर से 25 हजार रुपए अधिकतम और 50 फीसदी अनुदान दिया जा रहा है। ऐसे में अब पहाड़ी नस्ल की इस गाय की खरीद में भी किसानों को अब सरकार की ओर से अनुदान मिल सकेगा, इससे भी पहाड़ी नस्ल की इस गाय के संरक्षण को बल मिलेगा। हालांकि अभी प्राकृतिक खेती कर रहे ज्यादातर किसान बाहरी राज्यों से गउओं की खरीद कर रहे थे और सरकार की ओर से दिए जा रहे इस अनुदान को भी प्राप्त कर रहे थे। हिमाचल में बेसहारा गउओं के संरक्षण के लिए सरकार की ओर से काउ सेंक्चुरी का भी प्रावधान किया गया है और इसके लिए हरेक जिले में इस तरह की सेंक्चुरी बनाने का प्रस्ताव है। इन काउ सेंक्चुरी के रख-रखाव के लिए सरकार की ओर से शराब की बोतल पर सेल लगाकर बजट का प्रावधान किया है। वहीं कई स्थानों में कोटला, बडोग और अन्य स्थानों में काउ सेंक्चुरी का निर्माण कार्य पूरा भी हो चुका है। इससे सड़कों और पुलों में घुम रही बेसहारा गउओं की संख्या में जरूर कमी देखने को मिलेगी।     

रिपोर्ट : रोहित पराशर, शिमला

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