उलझनों की तासीर

By: Apr 1st, 2020 12:05 am

लॉकडाउन का पहला हफ्ता एक शैतान वायरस के खिलाफ उद्घोषणा करता दिखाई दिया। यह चिंता किसी कस्बे की भी है, लेकिन कोरोना से जुड़े घटनाक्रम से वैश्विक समुदाय जिस तरह प्रभावित है उसे देखते हुए हिमाचल भी एक सरहद की तरह पेश आ रहा है। बाहरी प्रदेशों से प्रदेश की तरफ निकले लोग अगर सीमा पर क्वारनटाइन की जद में आ रहे हैं, तो घर वापसी की इस पीड़ा का इम्तिहान लाजिमी है। ऊना को हिमाचलियों की सरहद में समझें तो ज्ञात होगा कि घर लौटते हिमाचली कर्फ्यू की आंख में धूल नहीं झोंक पाए उन्हें या आइसोलेशन मिल गया। प्रदेश भर की संवेदना में बाहरी राज्यों में फंसे हिमाचलियों के प्रति विशेष अनुराग रहा है और इसीलिए सरकार ने चंडीगढ़ और दिल्ली स्थित हिमाचल भवनों को आवभगत के केंद्रों में बदल दिया। यही तासीर बनकर अगर इंतजामों में उलझ गई, तो हमें यह भी समझना होगा कि हम जनता को किस दायरे से रोक रहे हैं। दिव्य हिमाचल टीवी के मार्फत जो शिकायतें सामने आई हैं, उनका उल्लेख इसलिए कि क्वारनटाइन का अर्थ फर्ज अदायगी बनकर न रह जाए। विवाद भी यही है कि हिमाचली सीमा में बाहर से आए प्रदेशवासियों को स्वास्थ्य के हिसाब से कितना हर्जाना भरना पडे़गा। यह ऐसी जिद नहीं हो सकती कि बाहर से आ रहे लोगों को आइसोलेशन न मिले, लेकिन पैमाने न टूटें। ऐसी जानकारी हमारे पास है कि आवश्यक आइसोलेशन के आदर्श किसी न किसी दबाव में खंडित हो रहे हैं। लोगों ने अपना रोष प्रकट करते हुए सरकार से यह अनुरोध किया है कि उन्हें उत्तम स्थित्ति में रखा जाए, वरना किसी अनहोनी के डर में कहीं वह अदृश्य खतरे की चपेट में न आ जाएं। यह विडंबना है कि तात्कालिक दबाव और मांग के आधार पर बनाए गए आइसोलेशन केंद्र केवल भीड़ को ठिकाने लगाने का जरिया बन रहे हैं, जबकि औचित्यपूर्ण ढंग से इनका प्रबंधन अनिवार्यता से विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से करना होगा। ऐसी किसी भी चूक को स्वीकार नहीं किया जा सकता, जबकि दूसरी ओर लॉकडाउन के पालन में आम जनता की जिम्मेदारी बरकरार है। न बाहर से सीमा प्रवेश को खुला छोड़ा जा सकता और न ही कर्फ्यू ढील को मनोरंजन या तफरीह का रास्ता माना जाएगा। दुर्भाग्यवश स्थिति कर्फ्यू ढील को बेपरदा करते हुए यह बता रही है कि इस अवधि का दुरुपयोग हो रहा है। साथ ही दुकानदारी का जुनून सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंड की अनदेखी कर रहा है। खास तौर पर कुछ परचून खरीद फरोख्त के अलावा सब्जी मंडियों में भी सोशल डिस्टेंसिंग को कुर्बान करके लोग स्वास्थ्य निगरानी की मूलभूत शर्तों को नजरअंदाज कर रहे हैं। बहरहाल सभी मर्ज का इलाज केवल सरकार नहीं हो सकती और न ही हिमाचल के लोग इतने अपनढ़ हैं कि दीवारों पर लिखे खतरे की इबारत को पढ़ न सकें। अतः कर्फ्यू की प्रासंगिकता में नागरिक, प्रशासन व सरकार को एक साथ साबित करते हुए यह गारंटी देनी है कि अगले चरण की चुनौतियों में चिकित्सा व्यवस्था पर दबाव न आए। सरकार अपनी ओर से विभिन्न राज्यों में फंसे हिमाचलियों के प्रति संवेदनशील है, लेकिन उन्हें भी इस दौर को कड़वे घूंट की तरह पीना होगा। बेशक टांडा व आईजीएमसी से आ रही टेस्ट रिपोर्ट्स हमारी आशाओं और जीवन की पुष्टि कर रही हैं, फिर भी अभी खुशी मनाने का अवसर नहीं आया है। इम्तिहान की अनेक लडि़यां जारी हैं। किसी को हिमाचल की सीमा पर, तो किसी को दुकान की कतार में खड़ा होते परीक्षा देनी है। कोई एक छोटा सा उल्लंघन भी पूरे समाज के संयम को खतरे में डाल सकता है, अतः हर भूमिका में आदर्शों का पालन अनिवार्य है। 


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