कार्य की व्यवस्था

By: Apr 25th, 2020 12:05 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

शादी और संतान पैदा करना मानव का परम कर्त्तव्य है, ऐसा वह कभी नहीं मानते थे। खासतौर पर जिन्होंने कोई ऊंचा काम करने का संकल्प लिया हो,उनके लिए तो विवाह सिर्फ आवश्यक चीज है, ऐसा ही वह सोचते थे। उनका कहना था कि मनुष्य को गृहस्थ व संन्यास दोनों की ही आवश्यकता है। मोक्ष पर सिर्फ संन्यासियों का ही अधिकार नहीं होता, लेकिन जो लोग विदेह राजर्षि जनक का उदाहरण देकर वैसा बनने की कोशिश करते है, वे कुछ संतानों के जनक बनकर ही रह जाते हैं। विवाह जैसे इनके ऊपर केवल पितृ ऋण ही है जिससे ये मुक्त हो जाना चाहते हैं। सभी आश्रम गृहस्थ आश्रम पर आधारित हैं, लेकिन फिर भी इस समय उनकी इतनी जरूरत नहीं है। वह बंधन बन गया है। वह युवकों को पशु बनाए दे रहा है। मुझे ऐसे युवक चाहिए जो इंद्रियोें की शुद्र मांग से उठ गए हैं। जिनकी पेशियां लोहे की और स्नायु इस्पात तो हों और उनके शरीर के अंदर वज्र जैसा बल पौरुष मौजूद हो। एक साथ ब्रह्मतेज और क्षात्रबल धारण करने वाले हों, तभी कुछ हो सकता है, वरना कुछ नहीं हो सकता। बीवी-बच्चों की फिक्र में ये लोग क्या कर सकते हैं? विवाह की बलिदेवी पर कितने ही तरुणों की हत्या हो रही है। स्वामी जी का लंदन लौटने का विचार जानकर श्री डॉयसन भी कुछ दिन और उनका सत्संग लाभ करने के ख्याल से उनके साथ लंदन तक चलने को तैयार हो गए। जून के महीने के आखिर में विवेकानंद जी ने सारदानंद को अमरीका भेज दिया। लंदन का काम देखने के लिए भारत से अभेदानंद जी आकर सहायता करने लगे। वे अभेदानंद जी को सारा कार्य समझाने की शिक्षा समझाने लगे थे। अक्तूबर-नवंबर के महीने में स्वामी जी ने अद्वैतवाद के सिद्वांतों के ऊपर कुछ प्रचार किया। अमरीका और इंग्लैंड में प्रचार कार्य की समुचित व्यवस्था देखकर स्वामी जी भारत लौटने की तैयारी करने लगे। इसकी खबर जब श्रीमती ओलीबुल को मिली, तो उन्होंने पत्र के जरिए स्वामी जी से निवेदन किया कि वह भारतीय कार्यों के लिए धन देने को तैयार हैं। उन्होंने रामकृष्ण मठ में रहने वाले संन्यासियों के लिए एक स्थायी मठ के निर्माण की योजना में विशेष रूप से सहयोग देने की इच्छा व्यक्त की। इस पत्र को पढ़कर स्वामी जी संतुष्ट हुए। स्वामी जी ने मद्रास,कलकत्ता और हिमालय केंद्रों की स्थापना करके ही कार्य की शुरुआत करना उचित समझा। श्रीमती बुल के उत्तर में उन्होंने लिख दिया कि भारत जाकर विस्तारपूर्वक लिखूंगा।  इस समय मुझे काम के लिए धन की आवश्यकता नहीं है। इंग्लैंड में रह रहे शिष्यों व स्वामी जी के दोस्तों ने जब जाना कि स्वामी जी दिसंबर में स्वदेश लौट रहे हैं, तो विदाई समारोह करने का आयोजन किया।          


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