कोरोना के खौफ ने निगल लिया ‘कांगड़ा भूकंप’

By: Apr 5th, 2020 12:20 am

कांगड़ा-कोरोना के भय से लोगों ने खुद को घरों में कैद कर लिया है, लेकिन भूकंप  से होने वाली  हानियों  से लोग आज भी  बेखबर हैं। भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील जोन पांच में शामिल कांगड़ा घाटी में अगर भूकंप आया, तो तबाही का मंजर भयावह होगा। यह जरूरी नहीं कि इतिहास फिर से खुद को दोहराए, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो धौलाधार पर्वत भी इसके विनाशकारी प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा। भू-गर्भ वैज्ञानिकों का  मानना है कि निकट भविष्य में कांगड़ा को विनाशकारी भूकंप का सामना करना पड़ सकता है। दीगर  है कि भूकंप को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इससे होने वाले नुकसान को तो कम किया जा सकता है। बहुमंजिला भवनों के निर्माण में भूकंपरोधी रोधी तकनीक न अपनाने का खामियाजा भी भूकंप से भुगतना पड़ सकता है। भूकंप में जीवन हानि भवनों के गिरने से उनके मलबे में दबने से होती है, जहां तक भूकंपरोधी तकनीक का सवाल है, तो यह तकनीक यहां  कारगर साबित हो सकती है, लेकिन निजी भवनों में यह तकनीक अपनाना तो दूर सरकारी भवनों में भी यह तकनीक इस्तेमाल न हो पा रही है। इस पर तगड़ी कसरत की जरूरत है। सरकारी तंत्र मॉक ड्रिल  के जरिए पूर्वाभ्यास में जुटा रहा है, लेकिन भूकंपरोधी रोधी तकनीक अपनाने को लेकर लोगों में जागरूकता लाने के साथ साथ सख्ती बरतने की जरूरत है। गौरतलब है कि आज से 115 साल पहले चार अप्रैल,1905 को कांगड़ा में आए भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर आठ मापी गई थी। तब लगभग 19000 लोग मौत का शिकार हुए थे तथा 38 हजार पशु भी इस भूकंप की भेंट चढ़ गए थे। अकेले कांगड़ा नगर में मरने वाले लोगों की संख्या 10257 थी। आज जिस कद्र पिछले 115 सालों में भवनों का निर्माण हुआ है तथा आबादी बढ़ी है, उस हिसाब  से अगर भूकंप आया तो  मृतकों की संख्या लाखों तक पहुंच सकती है । वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर भूकंप की तीव्रता नौ से अधिक रहती है, तो उसमें जान माल की भारी क्षति होती है। रेल पटरियां मुड़ जाती हैं, सड़कें टूट जाती हैं। पृथ्वी पर अनेक सेंटीमीटर चौड़ी दरारें पड़ जाती हैं। भूमिगत पाइपें टूट जाती हैं। पानी में विशाल लहरें पैदा होती हैं और यदि तीव्रता नौ से अधिक  हो तो नदियों का मार्ग बदल जाता है। लिहाजा भूकंप से बचाव के उपाय पहले से अपनाने जरूरी है। सरकार ने 115 साल पूर्व आई त्रासदी के मद्देनजर प्रदेश भर के शिक्षण संस्थानों में मॉक ड्रिल का आयोजन करती रही  है । मॉक ड्रिल कर इलाज और बचाव को लेकर पूर्वाभ्यास हुए हैं। बचाव के मसले पर कई खामियां मॉक ड्रिल के दौरान उभरकर सामने आई हैं। ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर बड़ी कसरत की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि भूकंप में जीवन हानि भवनों के गिरने से मलबे के नीचे दबकर होती है। भू-वैज्ञानिक कहते हैं कि भूकंप से होने वाले नुकसान को कम करने के प्रयास की जरूरत है। इसके लिए भूकंपरोधी निर्माण को तरजीह देने की बात की जा रही है। लिहाजा मॉकड्रिल  के साथ.साथ भूकंपरोधी तकनीक अपनाने पर भी बल देना होगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App