क्यों जारी रहे लॉकडाउन?

By: Apr 10th, 2020 12:02 am

फिलहाल लॉकडाउन खुलना संभव नहीं लगता। प्रधानमंत्री और मंत्री-समूह की बैठकों के संकेत स्पष्ट हैं। सर्वदलीय बैठक में लगभग सभी दलों की सहमति रही है कि लॉकडाउन की अवधि बढ़ाई जाए। प्रख्यात चिकित्सक और विशेषज्ञ भी अभी लॉकडाउन को जारी रखने के पक्षधर हैं। भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय लगातार तुलना कर रहा है कि यदि लॉकडाउन नहीं रहा, तो एक कोरोना मरीज 30 दिनों में औसतन 406 लोगों को संक्रमित कर सकता है। यदि यह जारी रहता है, तो संक्रमण औसतन 2.5 लोगों तक ही सिमटा रहता है। लॉकडाउन इसलिए भी जरूरी बताया जा रहा है, क्योंकि कोरोना संक्रमण के फैलाव पर काबू नहीं पाया जा सका है, लिहाजा दिल्ली, उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों ने हॉट स्पॉट चिह्नित कर उन जगहों को सील भी कर दिया है। यानी सुपर कर्फ्यू के हालात हैं और उन जगहों के नागरिक अपने-अपने घरों में ही बिलकुल बंद रहेंगे। आसपास की दुकानें, बैंक, एटीएम आदि सभी पर तालाबंदी की गई है। कोरोना महामारी के दौर में लॉकडाउन कोई नई व्यवस्था नहीं है। चीन ने वुहान में 11 सप्ताह के बाद अब लॉकडाउन खोला है। रेल सेवाएं शुरू की गई हैं, सड़कों पर यातायात बढ़ गया है, बाजार खुल रहे हैं। यह स्थिति 11 सप्ताह के बाद की है। इटली, स्पेन, फ्रांस में तालाबंदी का एक महीना या तो पूरा हो चुका है अथवा होने को है। ब्रिटेन में भी करीब तीन सप्ताह से तालाबंदी है। जापान ने आपातकाल घोषित कर रखा है। दरअसल लॉकडाउन के निहितार्थ ये हैं कि सामान्य जीवन में लोगों का जमावड़ा थमे, भीड़-भाड़ न हो और सामाजिक दूरी की स्वाभाविक स्थितियां पैदा हो सकें, ताकि कोरोना संक्रमण का फैलाव रोका जा सके। जिस भयावह और हत्यारी महामारी की कोई दवा, टीका अथवा इलाज न हो, उसे परहेज या बचाव से ही नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन देश की अनपढ़, अज्ञानी और गरीब जमात को अब भी लॉकडाउन, यानी सामाजिक-आर्थिक तालाबंदी के मायने नहीं पता, लिहाजा बैंकों के बाहर लाइनों में भीड़ ही मौजूद है। कुछ शहरों की सब्जी मंडियों के चित्र सार्वजनिक हुए हैं। लोग आपस में चिपके से सब्जी खरीद रहे हैं। शायद उन्हें कोरोना संक्रमण और उसके नतीजों की परवाह नहीं है! ऐसे माहौल में लॉकडाउन हटाना अधिक जानलेवा साबित हो सकता है। प्रख्यात चिकित्सकों का मानना है कि कोरोना के इलाज पर कुछ ट्रायल जारी हैं। आने वाले दिनों में उनके सकारात्मक परिणाम भी मिल सकते हैं। इसके अलावा यह भी तय होना चाहिए कि जब किसी इलाके में दो सप्ताह तक कोरोना संक्रमण का कोई नया केस सामने नहीं आता, तब तक लॉकडाउन जारी रखना चाहिए। चिकित्सा विशेषज्ञ अब भी एक सप्ताह बेहद संवेदनशील मान रहे हैं। बेशक यह लड़ाई आम भारतीय की जिंदगी और देश को बचाने की है, लेकिन यह आशंका भी सहज है कि कहीं लॉकडाउन ही औसत जिंदगी के लिए सवालिया न बन जाए? ऐसा न हो कि जिंदगी तो बच जाए, लेकिन उसके स्रोत ही सूख जाएं! कोरोना के असर से भारतीय  अर्थव्यवस्था को करीब 8 लाख करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ सकता है। सवाल सामाजिक-आर्थिक संकट को लेकर भी हैं। अभी तक 2 करोड़ से ज्यादा श्रम-शक्ति कम हो चुकी है। देश में बेरोजगारी की दर बढ़ कर करीब 23 फीसदी हो चुकी है। कारण कुछ भी रहे हों। हम अभी तक इन सवालों से बचते रहे हैं, क्योंकि यह त्रासद दौर बेहद भयावह और खौफनाक है। बेशक सरकारें और सामाजिक संगठन औसत नागरिक को भोजन और राशन मुहैया कराने के दावे करते रहे हैं, बेशक हजारों राहत-शिविरों में यह जन-सेवा देखी भी गई है, लेकिन यह बहुत बड़ा अर्द्धसत्य है। अनगिनत लोगों को कुछ भी नहीं मिल पा रहा है। पेट खाली है, घर खाली है, जेब भी खाली है। ऐसा न हो कि सरकारें और उनके नौकरशाह तब जागें, जब भुखमरी से भी मौतों की खबरें आने लगें! बेशक यह सामाजिक-आर्थिक आपातकाल का भी समय है। सरकारी नुमाइंदे हर बस्ती में जाकर घर-घर की चौखट पर दस्तक दें और भूखे, गरीब परिवारों को कमोबेश अन्न तो मुहैया कराएं। लॉकडाउन की समय-सीमा बेशक बढ़ाई जाए, लेकिन देश के नागरिक कोरोना के साथ-साथ भूख और गरीबी से नहीं मरने चाहिए।


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