गुरु अमर दास जी

By: Apr 4th, 2020 12:06 am

गुरु अमर दास जी सिख पंथ के एक महान प्रचारक थे, जिन्होंने गुरु नानक जी महाराज के जीवन दर्शन को व उनके द्वारा स्थापित धार्मिक विचाराधारा को आगे बढ़ाया। तृतीय गुरु अमर दास जी का जन्म 5 अप्रैल 1479 को अमृतसर के बसरका गांव में हुआ था। उनके पिता तेज भान भल्ला जी एवं माता बख्त कौर जी एक सनातनी हिंदू थे और हर वर्ष गंगा जी के दर्शन के लिए हरिद्वार जाया करते थे। गुरु अमर दास जी का विवाह माता मंसा देवी जी से हुआ था। अमरदास की चार संतानें थीं, जिनमें दो पुत्रियां बीबी दानी जी एवं बीबी भानी जी थी। बीबी भानी जी का विवाह गुरु रामदास साहिब जी से हुआ था। उनके दो पुत्र मोहन जी एवं मोहरी जी थे।

समाज सुधार-  गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का प्रबल विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह को बढ़ावा दिया और महिलाओं को पर्दा प्रथा त्यागने के लिए कहा। उन्होंने जन्म-मृत्यु एवं विवाह उत्सवों के लिए सामाजिक रूप से प्रासांगिक जीवन दर्शन को समाज के समक्ष रखा। उन्होंने सामाजिक धरातल पर एक राष्ट्रवादी व आध्यात्मिक आंदोलन की छाप छोड़ी। उन्होंने हिंदू सती प्रथा का घोर विरोध किया और अपने अनुयायियों के लिए इस प्रथा को मानना निषिद्ध कर दिया।

लंगर परंपरा की नींव- गुरु अमरदास ने समाज में फैले अंधविश्वास और कर्मकांडों में फंसे समाज को सही दिशा दिखाने का प्रयास किया। उन्होंने लोगों को बेहद ही सरल भाषा में समझाया कि सभी इंसान एक दूसरे के भाई हैं। सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं, फिर ईश्वर अपनी संतानों में भेद कैसे कर सकता है। उन्होंने इन उपदेशों को अपने जीवन में अमल में लाकर स्वयं एक आदर्श बनकर सामाजिक सद्भाव की मिसाल कायम की। छुआछूत जैसी बुराइयों को दूर करने के लिए लंगर परंपरा चलाई। लंगर में बिना किसी भेदभाव के संगत सेवा करती है। गुरु जी ने जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए एक परंपरा शुरू की, जहां सभी जाति के लोग मिलकर प्रभु आराधना करते थे। तत्कालीन सामाजिक परिवेश में गुरु जी ने अपने क्रांतिकारी कदमों से एक ऐसे भाईचारे की नींव रखी, जिसके लिए धर्म तथा जाति का भेदभाव बेमानी था। गुरु अंगद ने 1552 में अपने अंतिम समय में इन्हें गुरुपद प्रदान किया। उस समय अमरदास की उम्र 73 वर्ष की थी।


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