दवा लो, धमकी मत दो

By: Apr 9th, 2020 12:04 am

कोई मंगता भी धमकाता है क्या? वह तो अपने हाथ या झोली फैलाता है और भीख मांगता है। कोई रहम खाकर दान दे देता है, तो कुछ चेहरा घुमा कर निकल जाते हैं, लेकिन दो राष्ट्रों के आपसी संबंध इससे बहुत अलग होते हैं। मौजूदा दौर में भारत और अमरीका ‘मित्र देश’ की परिभाषा से भी ऊपर हैं। वैसे भी राष्ट्रों के राजनयिक, रणनीतिक और साझेदारी वाले संबंध दानवीर और भिखारी वाले नहीं होते। तो कोरोना के इस वैश्विक संकट के दौर में अमरीका ने भारत के लिए धमकी की भाषा क्यों इस्तेमाल की है? अभी बहुत पुरानी बात नहीं है, जब अमरीका के ह्यूस्टन और नई दिल्ली में अमरीकी राष्ट्रपति टं्रप ने भारतीय मूल के जन-समुदाय को ‘प्रसन्न’ करने की कोशिश की थी। उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में अमरीकी भारतीयों के वोट चाहिए, लिहाजा उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की आड़ ली। उनके मंच पर आए, दो दिन का भारत प्रवास किया और कई तरह के आश्वासन भी दिए। सार्वजनिक रूप से कई बार ‘दोस्ताना’ संबंध भी स्वीकार किए गए। अचानक एक दवा के लिए राष्ट्रपति टं्रप ‘दादागीरी’ की भाषा इस्तेमाल करने लगे। कमोबेश भारत सरकार के निर्णय की एक-दो दिन तो प्रतीक्षा कर लेते!  लेकिन टं्रप का बयान था कि प्रधानमंत्री मोदी दवा की आपूर्ति करते हैं, तो अच्छा होगा। वरना अमरीका बदला ले सकता है। धमकी के ऐसे शब्द अमरीकी राष्ट्रपति के कथन के भावार्थ हैं। बेशक दुनिया में कोरोना वायरस का कहर और जहर अब भी जारी है। विभिन्न देशों में 81,000 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। अमरीका भी त्रस्त और पस्त है, क्योंकि वहां भी मौत का आंकड़ा 12,000 को पार कर चुका है। अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत से मलेरिया की विख्यात दवा हाईड्रोक्सी क्लोरोक्विन की मांग की थी। भारत 1962 से इस दवा का उत्पादन कर रहा है और इस संदर्भ में उसका एकाधिकार-सा है। भारत की आधा दर्जन दवा कंपनियां हर महीने औसतन 20 करोड़ गोलियों का उत्पादन करती हैं। कोरोना के फैलाव के साथ ही भारत सरकार ने इस दवा के निर्यात पर पाबंदी थोप दी थी। अमरीका इस दवा का करीब 47 फीसदी आयात भारत से ही करता रहा है। चीन और यूरोप में कोरोना मरीजों के उपचार में पाया गया है कि हाईड्रोक्सी क्लोरोक्विन से संक्रमण का प्रभाव कम हुआ है, लिहाजा अचानक इस औषधि की वैश्विक मांग बढ़ना स्वाभाविक था। राष्ट्रपति टं्रप ने सार्वजनिक रूप से मलेरिया की इस दवाई के इस्तेमाल की घोषणा की थी, लिहाजा उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से फोन पर आग्रह किया कि वह इस दवा की आपूर्ति करेंगे, तो अमरीका के लिए बहुत अच्छा होगा। प्रधानमंत्री और भारत सरकार का इतना ही जवाब था कि पहले वे अपने देश के लोगों का हित देखेंगे, फिर पड़ोसी देशों की मदद करेंगे और उसके बाद की स्थिति पर विचार किया जाएगा। शायद टं्रप यह भाषा नहीं समझ पाए और कोरोना के बढ़ते लाखों मामलों ने उनकी बौखलाहट बढ़ा दी। नतीजतन धमकी का कथन सामने आया। शायद टं्रप की फितरत यही है! दरअसल भारत का रिकॉर्ड रहा है कि वह बाढ़, सुनामी, चक्रवात, भूकंप या किसी अन्य वायरस के फैलाव के दौर में मानवीय आधार पर देशों की मदद करता रहा है। इस दौर में ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसोनारो ने प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिख कर सहयोग का हाथ बढ़ाया है और भगवान बजरंगबली का जिक्र भी किया है। लिहाजा हालात के मद्देनजर भारत सरकार ने इस दवा पर से पाबंदी हटाई है और विदेश मंत्रालय ने अमरीका को दवा की आपूर्ति को सुनिश्चित किया है। अब राष्ट्रपति टं्रप की जुबान में अचानक ‘चाशनी’ घुल गई है। उन्होंने बयान दिया है-प्रधानमंत्री मोदी महान हैं और बहुत अच्छे नेता हैं। बहरहाल इस आपातकाल में मदद करना भी मानवीय कर्म है, लेकिन सरकार के स्तर पर अमरीका के साथ संबंधों पर विमर्श हो, तो इस पहलू को नजरअंदाज न किया जाए कि अमरीका ने हमारी संप्रभुता, करीब 138 करोड़ आबादी और हमारी स्वतंत्रता का अपमान करने की कोशिश की थी, लिहाजा ऐसी ‘दोस्ती’ पर पुनर्विचार जरूरी है।


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