पापों से छुटकारा दिलाने वाला व्रत : कामदा एकादशी 

By: Apr 4th, 2020 12:06 am

प्राचीन काल में भोगीपुर नगर में पुंडरीक नामक एक राजा राज्य करता था। उनका दरबार किन्नरों व गंधर्वों से भरा रहता था जो गायन और वादन में निपुण और योग्य थे। वहां किन्नर व गंधर्वों का गायन होता रहता था। एक दिन गंधर्व ललित दरबार में गान कर रहा था कि अचानक उसे अपनी पत्नी की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी। राजा को ललित पर बड़ा क्रोध आया। राजा ने ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया…

कामदा एकादशी चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान वासुदेव का पूजन किया जाता है। व्रत के एक दिन पूर्व (दशमी की दोपहर) जौ, गेहूं और मूंग आदि का एक बार भोजन करके भगवान का स्मरण करें और दूसरे दिन अर्थात एकादशी को प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करके भगवान की पूजा-अर्चना करें। दिनभर भजन-कीर्तन कर, रात्रि में भगवान की मूर्ति के समीप जागरण करना चाहिए। दूसरे दिन व्रत का पारण करना चाहिए। जो भक्त भक्तिपूर्वक इस व्रत को करता है, उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सभी पापों से छुटकारा मिलता है। इस व्रत में नमक नहीं खाया जाता है।

कथा-  प्राचीन काल में भोगीपुर नगर में पुंडरीक नामक एक राजा राज्य करता था। उनका दरबार किन्नरों व गंधर्वों से भरा रहता था जो गायन और वादन में निपुण और योग्य थे। वहां किन्नर व गंधर्वों का गायन होता रहता था। एक दिन गंधर्व ललित दरबार में गान कर रहा था कि अचानक उसे अपनी पत्नी की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी। राजा को ललित पर बड़ा क्रोध आया। राजा ने ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। ललित सहस्त्रों वर्ष तक राक्षस योनि में घूमता रहा। उसकी पत्नी भी उसी का अनुकरण करती रही। अपने पति को इस हालत में देखकर वह बड़ी दुःखी होती थी। एक दिन घूमते-घूमते ललित की पत्नी ललिता विंध्य पर्वत पर रहने वाले ऋष्यमूक ऋषि के पास गई और अपने श्रापित पति के उद्धार का उपाय पूछने लगी। ऋषि को उन पर दया आ गई। उन्होंने चैत्र शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी को व्रत करने का आदेश दिया। उनका आशीर्वाद लेकर गंधर्व पत्नी अपने स्थान पर लौट आई और उसने श्रद्धापूर्वक कामदा एकादशी का व्रत किया। एकादशी व्रत के प्रभाव से इनका श्राप मिट गया और दोनों अपने गंधर्व स्वरूप को प्राप्त हो गए।


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