प्रेम और घृणा

By: Apr 25th, 2020 12:05 am

ओशो

प्रेम और घृणा के बीच वही नाता है, जो जन्म और मृत्यु के बीच में है, जो धूप-छाया के बीच में है। जो दिन और रात के बीच में, अमृत और जहर, ठंडक और गर्मी के बीच में है, लेकिन मेरी बात को गलत मत समझना। जब मैं कह रहा हूं अमृत और जहर, तो मैं दो विपरीत तत्त्वों की बात नहीं कर रहा हूं। एक ही सिक्के के दो पहलुओं की बात कर रहा हूं। जन्म एक पहलू है, मृत्यु उसी का दूसरा पहलू। जिसे तुम प्रेम का नाता कहते हो सामान्य भाषा में, वह घृणा का ही एक रूप है। कम घृणा को हम प्रेम कहते हैं। थोड़े कम प्रेम को हम घृणा कहते हैं। उनमें कुछ खास भेद नहीं है। ‘प्रेम घृणा’अच्छा हो हम एक नया शब्द बना लें, इकट्ठा। वास्तविकता यही है। हम जिसे सामान्यतः प्रेम का नाता कहते हैं, वह घृणा का थोड़ा विरल रूप है। थोड़ी कम घृणा हम जिसको करते हैं, उससे हम कहते हैं तुमसे बड़ा प्रेम है। जब घृणा की मात्रा थोड़ी सघन हो जाती है, तब प्रेम की मात्रा कुछ कम हो जाती है। जीवन में सभी चीजों को परिमाण की भाषा में सोचो, डिग्रीज की, प्रतिशत की, मात्रा की। इसलिए जिसे हम प्रेम करते हैं उस से ही साथ-साथ घृणा भी करते हैं। हां, कभी प्रेम पर हमारा जोर होता है, कभी हमारा जोर घृणा पर होता है और वे दोनों आपस में परिवर्तनशील हैं, बदलते रहते हैं। जब मैं कहता हूं आपस का संबंध अमृत और जहर जैसा है, तो यह नहीं सोचना कि मैं कह रहा हूं कि दोनों आपस में एक-दूसरे के विपरीत हैं। अगर अमृत भी कोई बहुत मात्रा में पी ले, तो वह जहर साबित हो जाएगा और जहर भी ठीक खुराक में, ठीक स्थिति में लिया लाए, तो अमृत का काम करता है। इतनी औषधियां हैं, ये दवाइयां कहां से आती हैं? ये सब बड़ी जहरीली चीजें हैं, लेकिन ठीक परिस्थिति में, उचित बीमारी में, सम्यक्डोज में लेने पर, वही जहर औषधि का कार्य करता है, अमृत स्वरूप हो जाता है। अतः अमृत एवं विष में कोई गुणात्मक भेद नहीं है। गुण उनके एक से ही हैं। केवल परिमाण की वजह से उत्पन्न परिणाम का भेद है, मात्रा का अंतर अलग-अलग प्रभाव पैदा करता है। जो एक-एक गोली दिन में तीन बार खानी है, यदि उसकी पचास-पचास गोली दिन भर में दस बार खा ली जाए, तो बीमारी दूर करने के बजाय वह नई बीमारी अथवा मृत्यु का भी कारण बन सकती है। तुम कहोगे दवाई तो अमृत होती है, मगर इसे खाने से तो रोग की जगह रोगी खत्म हो जाता है। जीवन में हम चीजों को द्वंद्व में तोड़कर देखते हैं और चीजें टूटी हुई नहीं हैं। थोड़े से भेद में बहुत बड़ा भेद पड़ जाता है। क्योंकि गुणात्मक भेद, मात्रात्मक भेद से जाना जाता है। तो सामान्यतः जिसे हम प्रेम कहते हैं और जिसे घृणा कहते हैं, वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों में कोई खास फर्क नहीं है। यह तो आपके सोचने की दृष्टि पर निर्भर करता है। बड़ी कठिन लगती है यह बात, लेकिन जिंदगी ऐसी ही रहस्यपूर्ण है। एक अबूझ पहेली है। यहां असंभव घटित होता है। जीवन में सब चीजें बहुत मिश्रित हैं। यहां कहना मुश्किल है कि कौन सी चीज पोषक निकलेगी और कौन सी चीज शोषक साबित होगी? विष और अमृत में भेद विपरीत का नहीं है, भेद मात्रा का है। इस मिश्रण वाली बात को समझो। अपने जीवन को सहज और सुखद बनाओ। जीवन में हर परिस्थिति का सामना करने को तैयार रहो।


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