मृत्यु से मुक्त होना

By: Apr 25th, 2020 12:05 am

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव

जब एक बार आप नाटक को मंच की पार्श्वभूमि से देखने लगते हैं, तब कुछ समय बाद आप को इसमें रस नहीं आता। आप सब कुछ जानते हैं। आप इसके प्रस्तुतिकरण के बारे में उत्साहित हो सकते हैं पर उसकी कहानी से अब आप रोमांचित नहीं होते, क्योंकि आप जानते हैं कि ये सब कैसे किया गया है? सिर्फ  वो ही, जिनकी स्मृति अल्पकालिक है…

शरीर जीवन और मृत्यु है, आध्यात्मिक प्रक्रिया आप के बारे में है, जो न तो जीवन है, न ही मृत्यु। आध्यात्मिक प्रक्रिया मृत्यु के बारे में नहीं है। आप कुछ ऐसा जानने का प्रयत्न कर रहे हैं, जो मृत्यु से भी गहरा है। मृत्यु एक सामान्य चीज है, उसके बारे में कुछ भी गहन या रहस्यमय नहीं है। ये वो बात है जो लोगों के लिए बार-बार घटित होती रहती है। सिर्फ  ‘अल्पकालिक स्मृति के खो जाने’ के कारण मृत्यु अत्यंत गहन एवं रहस्यमय लगती है। अगर आप की स्मृति कुछ ऐसी होती कि हर दिन, जब आप सुबह नींद से जागते तो आप को ये याद न रहता कि कोई पिछला दिन भी था, आप को ये याद न आता कि आप वाकई सो गए थे, आप बस इतना जानते कि आप जाग गए हैं, तो हर दिन आप को लगता कि आप किसी जादुई संसार में हैं, तब ये सब बहुत ही रहस्यमय होता। कुछ घंटों की नींद का समय आप के जीवन का सबसे ज्यादा रहस्यमय और गहन पहलू होता। केवल इसलिए कि आप को याद ही नहीं होता कि आप वास्तव में केवल सो कर जागे हैं। मृत्यु की गहनता और उसका रहस्य भी बस कुछ ऐसे ही हैं। जब हम कहते हैं कि शिव संहारक हैं, तो हम ये नहीं कहते कि वे मृत्युदाता हैं। उनको मृत्यु में कोई रुचि नहीं है। उनके लिए जन्म लेना और मरना एकदम सामान्य बातें हैं, जीवन का बस एक ऊपरी पहलू। वे श्मशान की भस्म अपने शरीर पर क्यों धारण किए रहते हैं? इसका एक कारण ये है कि वे मृत्यु की पूरी तरह उपेक्षा करते हैं, उसे कोई महत्त्व नहीं देते। वे इसे कोई रहस्यमयी या गहन पहलू भी नहीं मानते। आध्यात्मिक प्रक्रिया मृत्यु के बारे में नहीं है, बल्कि उससे मुक्त होने के बारे में है, जो मृत्यु का मूल है, जो वास्तव में है जन्म। जन्म से मुक्त होना ही वास्तव में मृत्यु से मुक्त होना है।जन्म तथा मृत्यु, कुछ और नहीं, मिट्टी के बरतन बनाने का काम है। मिट्टी का एक टुकड़ा उठाना, उसे मनुष्य रूप देना और हां बोलना-चालना भी, ये बरतन बनाने की कला कुछ समय बाद कठपुतली नचाने की कला बन जाती है और ये एक सरल कारीगरी ही है। दर्शकों की दृष्टि से नाटक को जानना एक बात होती है, नाटक को मंच के पीछे से जानना बिलकुल अलग बात है। जब एक बार आप नाटक को मंच की पार्श्वभूमि से देखने लगते हैं, तब कुछ समय बाद आप को इसमें रस नहीं आता। आप सब कुछ जानते हैं। आप इसके प्रस्तुतिकरण के बारे में उत्साहित हो सकते हैं पर उसकी कहानी से अब आप रोमांचित नहीं होते क्योंकि आप जानते हैं कि ये सब कैसे किया गया है? सिर्फ  वो ही, जिनकी स्मृति अल्पकालिक है। जो रोज आते हैं और वही नाटक देखने के लिए बैठते हैं,क्योंकि उन्हें पिछले दिन का कुछ भी याद नहीं है। उनके लिए यह सब बहुत ही रोमांच और चुनौती से भरा है। अतः आध्यात्मिक प्रक्रिया जीवन या मृत्यु के बारे में नहीं है। शरीर जीवन और मृत्यु है। आध्यात्मिक प्रक्रिया तो आप के बारे में है,जो न तो जीवन है और न मृत्यु।


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