यहां हर सांस में जंग

By: Apr 8th, 2020 12:05 am

मातमी सन्नाटे की गोदी में पुनः हिमाचल के दो जांबाज सैनिकों ने बलिदान का इतिहास पुख्ता कर दिया। आतंक के खिलाफ राष्ट्रीय फलक पर जब पांच सैनिक केरन सेक्टर में शहीद होते हैं, तो हिमाचल अपने हिस्से की चालीस फीसदी शहादत का क्रम चुन लेता है। बिलासपुर व कुल्लू के सूबेदार संजीव और बाल कृष्ण की शहादत उसी रास्ते पर हुई, जहां देश का तिरंगा चश्मदीद बना और मुस्काराया भी होगा कि देशभक्ति का जज्बा पुनः सीना तान कर दुश्मन के निशान मिटाने को आतुर रहा। शहीदों के संस्कार देश की मिट्टी का तिलक लगा कर लौटे हैं, तो माताओं के अांचल भीगे और सन्नाटे के बीच घुमारवीं के गांव का संजीव सबकी आंखे नम कर गया। मां-बाप की इकलौती संतान जब देश के लिए प्राणों की आहुति दे रही थी, तो कहीं पत्नी का सिंदूर भी सलामी दे रहा होगा और बेटे का रिश्ता ‘भारत माता की जय’ का उद्घोष कर रहा होगा। दूसरी ओर कुल्लू के शहीद बाल कृष्ण आसमान में बाल चंद्र का रूप धारण करके परिवार के आगोश में स्मृतियों के जख्म भर रहा होगा। दादा-दादी, मां-बाप, भाई-बहन ने जिन यादों के झरोखे से बाल कृष्ण की शादी के सपने देखे थे, वे आज उदास अंधेरों में आतंक का सियापा पीट रहे थे। शहादत आखिर कितनी बार दुल्हन बनकर ऐसे ही किसी परिवार के बेटे को ले लाएगी, लेकिन हिमाचल फिर भी तत्पर रहता है और गिनता है कि कहीं देश के नाम कुर्बानियों का उसका आंकड़ा कम तो नहीं रह गया। बाल कृष्ण की शहादत को हिमाचल की रिवायत में देखें या उसके छोटे भाई के कंधे पर भी सजी सैनिक वर्दी की अकड़ महसूस करें, जो दिलेरी से सीना तान कर दुश्मन की साजिशों के खिलाफ हर सांस में जंग महसूस करती है। देश के नाम कुर्बान हुए पांचों जवान अति खतरे से भरे मिशन पर थे और इससे पूर्व ऐसे जोखिम को जान हथेली पर रखकर पूरा करते रहे थे, लेकिन गुर्जर ढोक में घात लगाकर बैठा दुश्मन मात खाकर भी अपूर्र्णीय क्षति दे गए। शहादत का जाम पीने से पहले पैराशूट रेजिमेंट के वीर सैनिकों ने आतंकवादियों को ठिकाने लगाया, लेकिन भौगोलिक व मौसम की प्रतिकूलता ने साहस से भरे कदमों की मंजिल सदा-सदा के लिए रोक दी। यहां पैराशूट रेजिमेंट के पराक्रम का जिक्र भी आवश्यक है, जिसने आज तक बांग्लादेश की उत्पत्ति में अहम सुर्खियां बटोरीं या गोवा के विजय (1961) से श्रीलंका के पवन मिशन (1987-89) तक अपनी बहादुरी के परचम को सदैव उड़ान दी। हालिया दिनों में नियंत्रण रेखा पर इस रेजिमेंट की टुकडि़यों की मौजूदगी से पुलवामा जैसे मिशन के ताप से पाकिस्तान सुन्न रहता है। अपने अपराजेय उद्घोष वाक्य ‘शत्रुजीत’ को हर सूरत साबित करते ये बहादुर अंततः तिरंगे में लिपट कर एक अनंत कथा लिख गए। नमन श्रद्धांजलि तो कभी भी इस कर्ज को कम नहीं करेगी, फिर भी शहीद सैनिक की अर्थी को राष्ट्र का कंधा एक शपथ सरीखा है। हिमाचल जैसे राज्यों का जिक्र शहादत के पैगाम की तरह है, जहां हर शहीद अपनी परंपरा की वसीहत में आने वाली पीढ़ी को सरहद पर खड़ा कर देता है। बिलासपुर और कुल्लू के आंसू शहादत के साहस को नहीं तोल पाएंगे, लेकिन जो प्रदेश हर ऐसी स्थिति में औसतन तीस से चालीस प्रतिशत कुर्बानियां देता हो, उसकी माटी का तिलक राष्ट्र को ग्रहण करना होगा। बालकृष्ण और संजीव कुमार की शहादत पुनः केंद्र सरकार से सिर्फ एक अदद रेजिमेंट हिमाचल या हिमालय के नाम से मांग रही है ताकि जब इसका यहां मुख्यालय बने तो दीवारों पर ईंटों के बजाय कुर्बानियों का यही इतिहास अमर होकर डटा रहे। 


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