संन्यासियों की हत्या निंदनीय है

By: Apr 25th, 2020 12:06 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

अब संन्यासियों की इस नृशंस हत्या पर सोनिया गांधी की चुप्पी शायद अखरने लगी थी। कांग्रेस के अनेक लोग सोशल मीडिया में सक्रिय हो गए कि अर्नब गोस्वामी को सबक सिखाया जाए। यही कारण था कि जब मुंबई में उसके तुरंत बाद अर्नब गोस्वामी पर दो युवकों ने हमला किया तो हड़कंप मच गया। अर्नब गोस्वामी जिस प्रकार संन्यासियों की हत्या को प्रमुख घटना बता कर महाराष्ट्र में सत्ताधीशों को प्रश्नित कर रहे थे और जिस प्रकार सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया आ रही थी, उसी से सरकार को अंदाजा लगा लेना चाहिए था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है। जिस वक्त गणचिंचले में बच्चा चोर की अफवाह फैली थी, उसी समय वहीं व्यवस्था करनी चाहिए थी कि कोई अनहोनी घटना न हो जाए…

महाराष्ट्र में पालघर जिला के गणचिंचले गांव में रात्रि के समय भीड़ ने दो संन्यासियों कल्पवृक्ष गिरि महाराज और सुशील गिरि जी महाराज की सोलह अप्रैल को बेरहमी से पीट-पीट कर हत्या कर दी। उनके साथ उनका ड्राइवर भी मार डाला गया। कल्पवृक्ष गिरि जी महाराज की आयु 70 साल की थी। दोनों संन्यासी किसी अन्य संन्यासी की अंत्येष्टि में भाग लेने के लिए मुंबई से सूरत जा रहे थे। जब वे गणचिंचले गांव में पहुंचे तो वहां लोगों ने इन्हें गाड़ी से खींच कर मारना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि गांव में कुछ दिनों से अफवाह फैली हुई थी कि कुछ लोग इलाके में बच्चे चोरी कर रहे हैं। इस घटना की सूचना मिलते ही निकट के थाने से पुलिस वहां पहुंची, लेकिन भीड़ में कुछ लोग पुलिस की हाजिरी में भी निर्भयता से संन्यासियों को मारते रहे। अलबत्ता पुलिस ने संन्यासियों की रक्षा करने से बेहतर अपनी जान बचाने को प्राथमिकता दी और संन्यासियों को पिटते देखते रहे। लोगों ने पुलिस की गाड़ी में भी तोड़-फोड़ की। कहा जाता है कि इस घटना से एक दिन पहले भी गांव वालों ने कुछ कर्मचारियों को बच्चा चोर मान कर घेर लिया था, लेकिन मौके पर पहुंची पुलिस ने उनकी रक्षा तो कर दी लेकिन हमला करने वालों पर केस दर्ज नहीं किया। यदि उस समय केस दर्ज कर लिया जाता तो संन्यासियों की शायद हत्या न होती।  संन्यासियों की यह घटना क्योंकि जंगल के क्षेत्र में हुई थी, इसलिए मीडिया ने इसका इतना नोटिस नहीं लिया। प्रसिद्ध संवाद समिति पीटीआई ने तो समाचार चला दिया कि पालघर जिला में भीड़ ने तीन चोरों की हत्या कर दी। समाचार पीटीआई की ओर से चला था, इसलिए कुछ अंग्रेजी अखबारों ने इसे एक कालम की खबर बना कर छाप भी दिया। पुलिस ने एक सौ दस लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर सौ लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया। लेकिन तब तक इस हत्याकांड की सूचना फैल गई थी और एक-दो चैनलों ने खोजबीन करना शुरू कर दी। जाहिर था इससे महाराष्ट्र सरकार घबराती।

प्रदेश के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने यह कह कर सभी को चौंका दिया कि इस हत्याकांड को सांप्रदायिक रंग न दिया जाए। चौंकाया इसलिए क्योंकि इस हत्याकांड को सांप्रदायिक कोई नहीं कह रहा था। हल्ला और बेचैनी दो संन्यासियों की हत्या को लेकर थी और उसी को लेकर सवाल पूछे जा रहे थे। क्या उद्धव ठाकरे संन्यासियों की हत्या को लेकर सरकार से प्रश्न पूछने को भी सांप्रदायिक ही मान रहे थे? ठाकरे की अतिरिक्त घबराहट का कारण शायद शिव सेना के कारण हो। आखिर जिस प्रदेश में शिव सेना का मुख्यमंत्री हो, वहां संन्यासियों की हत्या हो जाए, तो वे अपने प्रतिबद्धित मतदाताओं को क्या जवाब देंगे? अभी यह तो कोई नहीं कह रहा कि संन्यासियों को किसने मारा। चित्रों में मारने वाली भीड़ है। इसलिए प्रश्न तो यह था कि मारा किसने? लेकिन मुख्यमंत्री बिना उसकी जांच-पड़ताल किए इस प्रश्न को ही सांप्रदायिक बताने लगे। आखिर यह तो मुख्यमंत्री भी जानते होंगे कि एफ आईआर के एक सौ दस लोगों ने तो नहीं मारा होगा। उनमें से कुछ गिने-चुने लोग ही होंगे जो इस प्रकार प्रहार कर रहे थे कि कहीं संन्यासी बच न पाएं। कई बार एफआईआर में लोगों की भरमार इसलिए भी डाली जाती है ताकि असली अपराधी बच जाएं। आखिर अपराधी संन्यासियों को छिप कर तो नहीं मार रहे थे। वे तो सभी के सामने ही मार रहे थे। इसमें सांप्रदायिकता की बात कहां से आती है। मरने वाले  संन्यासी थे और मारने वाले हत्यारे थे। लेकिन उद्धव ठाकरे उनके संप्रदाय की बात उठा कर पूरे हत्याकांड की दिशा ही बदलना चाहते थे। यह सुखद है कि कोई भी उनके जाल में नहीं फंसा और अपराधियों को सजा और यदि इसके पीछे कोई षड्यंत्र हो तो उसको बेनकाब करने पर ही मामला बना रहा। लेकिन यह भी सभी को पता है कि महाराष्ट्र की सरकार में उद्धव ठाकरे तो एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री हैं।

प्रदेश सरकार की असली बागडोर तो सोनिया कांग्रेस और शरद पवार के हाथ में है। इसलिए इस हत्याकांड को लेकर सोनिया गांधी  से भी प्रश्न पूछे जाने लगे। जाहिर है जब हत्या का संबंध संन्यासियों से हो तो भारत में इस प्रकार के प्रश्नों की तपिश बढ़ जाती है। एक मीडिया चैनल ने संन्यासियों के हत्याकांड को मुख्य मुद्दा बनाया। इस चैनल पर जाने-माने पत्रकार अर्नब गोस्वामी ने सोनिया गांधी से यही प्रश्न पूछे। यह मामला शायद इसलिए भी तूल पकड़ गया क्योंकि जब दिल्ली में बाटला हाउस एनकाउंटर में आतंकवादी मारे गए थे तो सोनिया गांधी ने कहा था कि मैं इस घटना से सो नहीं पाई। अब संन्यासियों की इस नृशंस हत्या पर सोनिया गांधी की चुप्पी शायद अखरने लगी थी। कांग्रेस के अनेक लोग सोशल मीडिया में सक्रिय हो गए कि अर्नब गोस्वामी को सबक सिखाया जाए। यही कारण था कि जब मुंबई में उसके तुरंत बाद अर्नब गोस्वामी पर दो युवकों ने हमला किया तो हड़कंप मच गया। अर्नब गोस्वामी जिस प्रकार संन्यासियों की हत्या को प्रमुख घटना बता कर महाराष्ट्र में सत्ताधीशों को प्रश्नित कर रहे थे और जिस प्रकार सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया आ रही थी, उसी से सरकार को अंदाजा लगा लेना चाहिए था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है। जिस वक्त गणचिंचले में बच्चा चोर की अफवाह फैली थी, उसी समय वहीं व्यवस्था करनी चाहिए थी कि कोई अनहोनी घटना न हो जाए। आखिर पुलिस दो संन्यासियों को बचा क्यों नहीं पाई, इसका उत्तर शिव सेना के ही एक सांसद ने दिया। उनका कहना था कि महाराष्ट्र की पुलिस बिहार-यूपी की तरह नहीं है। उसके पास केवल डंडा होता है। शायद यही कारण था कि पुलिस वाला सत्तर साल के संन्यासी को भीड़ की ओर धकेल रहा था। संन्यासी को मारने वालों के हाथ में भी डंडा ही था। उनका डंडा चलता रहा, लेकिन पुलिस का डंडा नहीं चला। अर्नब गोस्वामी इसी प्रश्न का जवाब मांग रहे थे। उद्धव ठाकरे इसी प्रश्न को शायद सांप्रदायिक मान रहे हैं और सोनिया कांग्रेस के पहलवान गोस्वामी को घेर रहे हैं।

ईमेलःkuldeepagnihotri@gmail.com


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