पुरानी स्थिति में लौटना-1

By: May 26th, 2020 12:04 am

कोरोना काल से बाहर निकलने की जद्दोजहद मेें हिमाचल के पास भी एक अवसर खड़ा हो रहा है। न अब पहले जैसी परिस्थितियों में जीवन का निर्वाह होगा और न ही सरकारी संसाधनों की आपूर्ति का माहौल यथावत उपलब्ध होगा। राजनीतिक अंकगणित में विकास की गाथाएं और योजनाओं का अभिनय बदलेगा। जनता के वोट और भागीदारी का अंतर और स्पष्ट हो सकता है, क्योंकि कोरोना काल से बाहर निकलने के लिए इसकी जरूरत रहेगी। अंततः अब तक के फैसलों का मुख्य किरदार भी तो जनता रही जिसने घर के भीतर  रह कर एक अनूठा मुकाबला किया और यह अनंत काल की चुनौती रहेगी। बदलते फैसलों की तीव्रता में जनता की स्थिरता अब तक कारगर रही, लेकिन अब आगे क्या होगा यह सरकार की सोच तथा नवाचार पर निर्भर करेगा। जाहिर है हिमाचल जैसे राज्य को भी अपनी प्रमुख आर्थिकी को फिर से सक्रिय करना है तो संभावित क्षेत्रों की तरफ नए कदम उठाने पड़ेंगे। इसी परिप्रेक्ष्य में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के एक साक्षात्कार पर विपक्ष का हो हल्ला समझना होगा। मुख्यमंत्री ने कोरोना काल के बाद बंद पड़े होटल व्यवसाय के संदर्भ में क्वारंटीन के पर्यटन हिस्से को छुआ है, तो विपक्ष ने इसे लपक लिया। हिमाचल में काफी पहले से हैल्थ पर्यटन की अवधारणा में वातावरण की अनुकूलता को अधिमान मिला है। प्रदेश में ब्रिटिश काल और आजादी के बाद टीबी सेनेटोरियम का हवाला दिया जा सकता है। सोलन के धर्मपुर व कांगड़ा के टांडा में टीबी सेनेटोरियम इस लिहाज से अतीत में सबसे अहम संस्थान साबित हुए और इसी परिधि में एक आश्वासन उगता रहा। अब अगर कोरोना पुनः समाज के भीतर  विभाजक रेखाएं देख रहा है, तो कुछ साहसिक कदमोें से ही निजात का सफर शुरू होगा। क्वारंटीन पर्यटन उसी तरह की परिभाषा की पगडंडियां खड़ी कर रहा है या ऐसे किसी  विचार को ही सियासी सरहद पर पीटा जाए। कहना न होगा कि आर्थिकी के बंद ताले खोलने के लिए प्रदेश की प्रस्तुति और बेहतर  तथा नए आइडिया से ओतप्रोत होनी चाहिए। कल फार्म हब बने बीबीएन की भूमिका और सार्थक तथा प्रगतिशील हो सकती है बशर्ते ऐसी क्षमता को मजबूत किया जाए। विडंबना यह रही कि दवाइयों के उत्पादन की ओर बढ़ते बीबीएन में हिमाचल ने न तो कोई अनुसंधान संस्थान खड़ा किया और न ही पूरे उद्योग की संभावनाएं आगे बढ़ाइर्ं। मसलन चिकित्सकीय उपकरणों पर केंद्रित उद्योगों को भी अगर आगे बढ़ाया जाता, तो प्रदेश के सामने भविष्य चित्रित होता। बहरहाल हिमाचल को अगर फिर से पुरानी स्थिति में लौटना है तो जनप्रतिनिधियों को अपने सोच का नया धरातल विकसित करते हुए यह सुनिश्चित करना है कि जनता ही शक्तिशाली है। हिमाचल में ट्रैवल-टूरिज्म इसलिए आगे बढ़ा क्योंकि निजी तौर पर भागीदारी रही। ऐसे में सरकार  के लिए सार्वजनिक उपक्रमों के घाटे में डूबना आसान होगा, लेकिन निजी क्षेत्र को घाटे से उबारने का संकल्प पैदा नहीं हुआ तो कुछ भी आसान न होगा। लिहाजा अब नए आदर्शों का जनप्रतिनिधित्व चाहिए। इसकी एक कोशिश विधायक निधि का हस्तांतरण है तो सुखविंद्र सुक्खू की तरह कुछ विधायक अपने वेतन भत्तों को त्याग कर भी आदर्श कायम कर सकते हैं। सरकार अपने अनावश्यक खर्चों तथा समारोहों पर रोक लगाए तो कोरोड़ों रुपए का हर्जाना बचेगा। तत्काल प्रभाव से बोर्ड-निगमों  के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष व इनके सियासी सदस्यों के पद निरस्त किए जा सकते हैं ताकि अनावश्यक खर्च बचे। कोरोना काल के बाद कई विभागों का युक्तिकरण करते हुए खास उद्देश्य पर केंद्रित कार्य दल बनाया जाए। हिमाचल के वर्तमान ढांचे में  कोरोना जैसी महामारी से निपटने का शंखनाद जरूर हुआ, लेकिन क्या हमीरपुर में बढ़ते पॉजिटिव मामलों के अनुरूप व्यवस्थाएं काबिल रहीं। कोरोना ने सबसे बड़ा सबक यही दिया है कि सुशासन की अहमियत में राजनीति और राजनेता इससे  दूर रहने चाहिएं, लेकिन विडंबना यह कि संक्रमण काल में भी भ्रष्टाचार के एक उदाहरण ने जनता के विश्वास को तार-तार कर दिया।   – क्रमशः


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