पुरानी स्थिति में लौटना-2

By: May 27th, 2020 12:05 am

अंततः कांगड़ा एयरपोर्ट ने अपना विराम तोड़ते हुए हवाई यात्रा को फिर से चिन्हित किया। एक नया दस्तूर और समय को फिर से लिखने की कोशिश शुरू हुई। यह दीगर है कि पुरानी परिस्थिति में पूरी तरह लौटना इतना आसान नहीं, फिर भी कोशिश यही है कि पहिए घूमते रहें। कुछ इसी अंदाज में अब केंद्र से राज्यों तक लॉकडाउन से बाहर निकलने का पैगाम मिल रहा है। हिमाचल में टैक्सी सेवा तो गंतव्य के लिए स्टार्ट हो रही है जबकि बसों से जुड़ी परिवहन सेवाएं स्थगित हैं। सार्वजनिक परिवहन के बिना बाजार का व्यवहार शायद ही बदलेगा और इसीलिए एक बड़ी कसौटी सामने खड़ी है। जाहिर है परिवहन सेवाओं में निजी क्षेत्र का सहयोग व सहमति आवश्यक है, लेकिन साठ फीसदी सवारियों के दम पर बस आपरेटर इसे घाटे का सौदा मानते हैं। ऐसे में पुरानी स्थिति के बजाय नई परिवहन पद्धति को अपनाना व संवारना पड़ेगा। यहां निजी बसों की शुमारी को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और यह भी कि उनके घाटे की वजह जाने बिना तस्वीर सुधर जाएगी। दरअसल हिमाचल में आज तक परिवहन केवल सरकारी बनाम निजी क्षेत्र की दीवारों के भीतर समझा गया और इसी हिसाब से एचआरटीसी  की परवरिश हुई। ऐसे में निजी बस मालिकों के तर्क समझने की जरूरत है। उनके व एचआरटीसी के बीच सरकार ने सैद्धांतिक तौर पर पहले अंतर रखा और अब सार्वजनिक परिवहन के लिए यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि निजी बसें भी यथावत दौड़ पड़ेंगी। सोशल डिस्टेंसिंग व नियमित सेनेटाइजेशन के दबाव में निजी बस मालिकों को अतिरिक्त घाटा उठाना पड़ सकता है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि परिवहन सेवाओं के अतिरिक्त खर्च को वहन करते हुए खाली चालीस प्रतिशत सीटों की कीमत अदा करे। कोरोना काल से बाहर निकालने के लिए जिस परिवहन की अनिवार्यता रहेगी, वहां सरकार को एक ओर सारे दिशा  निर्देश अमल में लाने हैं तो दूसरी ओर यह व्यवस्था भी करनी होगी कि निजी क्षेत्र भी इस दौर का पार्टनर साबित हो। कोरोना काल से वापसी अंगारों पर चलने की ऐसी शर्त है जहां सरकार को ही मरहम भी लगाना है। प्रदेश में कुछ बड़े सैलून तथा ब्यूटी पार्लर के ताले खुलने लगे हैं। सिरमौर के डीसी ने इस दिशा में कार्य पद्धति के जो मानक बनाए हैं, उन्हीं के तहत सारा प्रदेश चल रहा है। बेशक इससे उपभोक्ताओं के एक खास वर्ग को राहत मिलेगी, लेकिन गांव व छोटे कस्बों में शायद ही इसे अपनाया जाए। अभी न तो पेड़ के नीचे या छोटी दुकान के भीतर यह संभव है कि बाल काटने की सरल विधि अख्तियार की जाए। ऐसे में कोरोना काल ने हमें न केवल भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाया, बल्कि जिंदगी के सामान्य तरीके भी लूट लिए। जाहिर है सुरक्षा की तमाम औपचारिकताएं अब हर सेवा की कीमत बढ़ाएंगी, तो पुनः सारा दबाव मध्यम वर्गीय परिवारों पर ही आएगा। पहले ही सारी कटौतियां इस वर्ग से कई तरह के लाभ छीन चुकी हैं और अब तो आयकर अदा करने वालों को ऐसा वर्ग बना दिया गया कि उसे कोई सबसिडी न दी जाए। इस तरह कोरोना काल से लौट कर मध्यम वर्ग अपने खर्च को बढ़ाकर कष्ट में रहेगा। कोरोना संघर्ष में सबसे अधिक अनिश्चितता शिक्षा और शिक्षार्थी को लेकर रही है। कोई गारंटी के साथ यह नहीं बता सकता कि कब शिक्षा के प्रांगण में सूर्योदय होगा। इस दौरान ऑनलाइन शिक्षा की जरूरत दिखाई दी, लिहाजा भविष्य में इस पर नवाचार आएगा। कुछ इसी तरह नौकरी के तरीके भी ऑनलाइन होकर वर्क फ्रॉम होम की पद्धति को पुष्ट कर सकते हैं। कुल मिलाकर जीवन के चौराहे बढ़ रहे हैं, अतः सरकारें फिर से गंतव्य की दिशा ढूंढ रही हैं। कोरोना काल से वापसी का संघर्ष कठोर, अप्रत्याशित तथा खर्चीला होने जा रहा है। भले ही दुकानें खुल रही हैं। मिठाई फिर से दुकान में सजने लगी है, लेकिन बंदिशों के कारण न समारोहों की रौनक बाजार पर अभी हावी होगी और न ही त्योहार हमारी आर्थिकी को पूरी तरह चलाने में सक्षम होंगे। अभी आर्थिकी भी मास्क पहन कर डिस्टेंसिंग के सहारे ही प्राण-वायु हासिल करेगी।


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