पुरानी स्थिति में लौटना-3

By: May 28th, 2020 12:05 am

कोविड-19 का चेहरा-चरित्र हमसे दूर रह कर भी डरा रहा है, तो जिसके पास यह आया होगा उसे हम किस तरह देखेंगे। यह समाज का नया कबूलनामा है जो कोरोना काल में हमारी प्रवृत्ति बदल रहा है या व्यावहारिक पैमानों पर आपसी भेदभाव की मिट्टी चढ़ गई। जो भी हो यहां जिक्र उस अंतिम यात्रा का जिसे रोकने को समाज ही आमादा हो गया। हिमाचल में पांचवीं मौत को भी कोरोना के खातों ने इस कद्र अछूत बना दिया और प्रशासन की मौजूदगी में विद्रोह के लम्हे उस चिता के आगे खड़े हो गए जो मौजूदा दौर का सबसे कठिन साक्ष्य है। क्या हम कोरोना के साक्ष्य मिटाने के लिए ऐसा रास्ता अख्तियार करेंगे कि किसी की मौत को अपने विरोध का हिस्सा बना देंगे। नेरचौक के रत्ती वार्ड की कोरोना पीडि़त महिला के अंतिम संस्कार  पर श्मशानघाट सियासी हो गया और लोग भी उन आंसुओं को नहीं समझ सके, जो सगे-संबंधियों के लिए महज अंतिम विदाई के प्रतीक नहीं थे, बल्कि महामारी में अस्तित्व खोने के दंश साबित हुए। कौन जानता है इस युद्ध में जान खोने का खतरा कल कितना भयावह होगा। हर दिन जिलावार विश्लेषण में हिमाचल कई तरह के प्रश्नों से रू-ब-रू होता है और तब यह बहाना ढूंढा जाता है कि कोरोना पॉजिटिव मरीज का ताल्लुक किस तरह उसकी ट्रैवल हिस्ट्री से है। यही ऐसी स्थिति है जो पुरानी स्थिति में लौटने की अग्नि परीक्षा है। यहां पुरानी स्थिति में लौटने की उत्सुकता ने सरकार को भी असमंजस की स्थिति में ला खड़ा किया है। प्रश्न कर्फ्यू की मीयाद को लेकर भी रहेगा, क्योंकि 31 मई के बाद क्या स्थिति होगी, इस पर अभी कोई सीधा उत्तर नहीं मिल रहा। इस दौरान हजारों बसें और टैक्सियां आज भी अगर लावारिस हालात में हैं, तो इन्हें फिर से चलाने की इच्छा शक्ति सरकार को दिखानी है साथ ही साथ निजी आपरेटरों को भी अपने व्यापार का मॉडल बदलना पड़ेगा। पुरानी स्थिति का परिवहन अब जरूर बदलेगा और यात्री जरूरतों को भी नई परिपाटी से जोड़ेगा। महत्त्वपूर्ण तथ्य यही है कि किसी भी बदलाव के बिना कोरोना काल से निकलना आसान नहीं, अतः हर क्षेत्र को नई आशाओं व प्रयोगों से आत्मबल विकसित करना होगा। हम यह कह सकते हैं कि बदलते दौर में कुछ क्षेत्र आसानी से खोई हुई जमीन हासिल कर लेंगे, लेकिन कोरोना काल से वापस निकलने की जद्दोजहद अपना एक अलग इतिहास लिखेगी। प्रदेश सरकार को भी अपनी आर्थिकी के पार्टनर बढ़ाने पड़ेंगे और यह निजी क्षेत्र की सहमति के बिना असंभव है। बाजार की मुस्कान अभी तालों में बंद है, फिर भी अगर शराब की बिक्री से सरकार को 1180 करोड़ आ रहे हैं, तो कहीं पुरानी स्थिति तक पहुंचने की क्षमता तो दिखाई दे रही। बेहतर होगा जयराम सरकार हिमाचल में निजी क्षेत्र की क्षमता का आकलन करते हुए,इसे हर संभव सहायता देते हुए यथार्थवादी फैसले ले। बस, टैक्सी,स्कूल-कालेज या निजी विश्वविद्यालयों को फिर से आर्थिक धुरी प्रदान करने की सबसे बड़ी भूमिका में प्रदेश सरकार  को ही फैसला लेना है। कम से कम बजटीय प्रावधानों के दिशा-निर्देश और अब तक सक्षम माने गए कायदे-कानूनों से हटकर  ही मौजूदा परिस्थितियों से बाहर निकलने का रास्ता मिलेगा। सचिवालय से सड़क का रिश्ता पूरी तरह बदलना पड़ेगा, वरना कोरोना काल में पसरा सन्नाटा तथा विराम की मुद्राएं समाप्त नहीं होंगी। एक अच्छी सूचना या यूं कहें कोरोना की जंग से बाहर निकलने का रास्ता हम परौर क्वारंटीन सेंटर में देख सकते हैं। प्रदेश के सबसे बड़े क्वारंटीन केंद्र में व्यवस्थागत इंतजाम से भी कहीं अधिक उस जज्बे को सलाम जो एक तरह से अलग संस्कृति विकसित कर रहा है। मंगलवार के दिन केंद्र ने वहां रह रहे पांच लोगों का जन्म दिन मना कर यह साबित कर दिया कि बहारें आएंगी नहीं,पैदा की जाएंगी। जब सरकार,व्यवस्था और समुदाय एक दिशा में चलेंगे, तो ही पुरानी स्थिति में लौटने का सबब मिलेगा, अन्यथा अंतिम संस्कार की रिवायत में भी हम सब बंट सकते हैं।


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