भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई कब होगी

By: May 28th, 2020 12:05 am

सुखदेव सिंह

लेखक नूरपुर से हैं

हर सरकारी बाबू की अपनी-अपनी कमीशन तय है। यही नहीं, उसका हिस्सा नेताओं की झोली में भी जाता है, इस बात को कुछेक नेता भी मान चुके हैं। सरकारी कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे न होने की वजह से भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है। भ्रष्टाचार का शिकार अब हर इंसान हो रहा है, मगर कोई भी इसका खुलकर विरोध नहीं करना चाहता है। बेनामी संपत्ति बनाने वालों का पैसा बिना जांच-पड़ताल के बैंकों में जमा किए जाने पर प्रतिबंध लगना चाहिए। प्रत्येक सरकारी व गैर सरकारी कर्मचारी की सैलरी सीधे बैंक खाते में श्रम विभाग के माध्यम से जमा हो, जिसका कंट्रोल सरकार के हाथों में होना चाहिए…

वैश्विक कोरोना महामारी पर चिकित्सक विजय पाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। इस संक्रमण रूपी दानव से चल रही जंग में स्वास्थ्य विभाग के निदेशक के घूसखोरी मामले में संलिप्त पाए जाने की वजह से हिमाचल प्रदेश के लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। कोरोना वायरस से बचाव के लिए उपयोग किए जाने वाले मास्क, ग्लव्ज (पीपीई किट) में भी जो अधिकारी अपनी कमीशन खाना नहीं भूलता, सरकार को उसे सीधे सेवामुक्त किए जाने की पहल अब करनी होगी। आखिर कब तक ऐसे घूसखोरों को सतर्कता विभाग पकड़ कर लाता रहेगा और हमारी सरकारें उन्हें पुनः लूट-खसूट किए जाने के लिए अधिकृत करती रहेंगी। स्वास्थ्य विभाग के निदेशक के 25 बैंकों में खाते होने और बेतहाशा बेनामी संपत्ति अर्जित किए जाने की पुष्टि सीबीआई अपनी जांच में कर चुकी है। स्वास्थ्य विभाग के निदेशक के दो दर्जन बैंकों में बचत खाते होने की वजह से भारतीय रिजर्व बैंक की कार्यप्रणाली पर भी अब कई सवाल उठते हैं? क्या किसी आला अधिकारी को इस तरह अत्यधिक बैंक अकाउंट खोलने की प्रदेश सरकारें अनुमति देती हैं?

अगर ऐसे बैंक खातों में बेनामी धनराशि जमा की जा रही थी तो भारतीय रिजर्व बैंक ने क्यों उसकी जांच करना मुनासिब नहीं समझा? डिजिटल इंडिया अभियान के अनुसार अब किसी भी चीज की खरीद-फरोख्त के लिए उसका भुगतान ऑनलाइन प्रक्रिया से ही संभव है। स्वास्थ्य विभाग निदेशक के बैंक खातों में सीधे तौर पर बेनामी धनराशि जमा करना भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिए जाने के बराबर है। बैंक प्रबंधक बिना आय स्रोत जाने ही ऐसे अधिकारियों के बैंक खातों में धनराशि जमा करके नियमों की धज्जियां उड़ाए जा रहे हैं। सरकार के कुछेक विभागों में छोटे कर्मचारी से लेकर आला अधिकारियों तक के कमीशन रेट बिलकुल फिक्स नजर आते हैं। जनता को बिना जेब ढीली किए सिवाय कार्यालयों के बार-बार  चक्कर काटने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। सरकारें तो पहले भी पहाड़ में रहीं जो चुनावी बेला पर भ्रष्टाचार खत्म किए जाने का राग अलापती रही हैं। मगर जयराम ठाकुर की सरकार ने जिस तरह से लोकायुक्त की नियुक्ति की थी, उसे देखकर लगता था कि रिश्वत का माल खाने वाले सरकारी कर्मचारियों को जल्द ही शनि ग्रहण लगने वाला है। मगर जिस तरह सरकारी मशीनरी को घूसखोरी का रोग लग चुका है, उसका इलाज सख्ती बरते बिना नहीं हो सकता है। प्रदेश की सौ पंचायतों का लेखा विभाग ने ऑडिट किया, जिनमें 35 पंचायतें ऐसी निकली जिनमें करोड़ों रुपए का हेरफेर करके पंचायती राज एक्ट की धज्जियां सीधे तौर पर उड़ाई गई हैं। आखिर सरकार के लाखों रुपए कौन से पंचायत प्रतिनिधि डकार गए? उनके बैंक खाते अभी खंगाले जाने बाकी हैं। सरकारी कानून सबके लिए एक समान होने चाहिए, तभी उसकी साख जनता में सही बनी रहती है। बात जब सरकारी कर्मचारियों की संपत्ति की जांच करने की चल पड़ी थी तो इसमें बहुत सारे अन्य लोग भी शामिल किए जाने चाहिए। अवैध संपत्ति सिर्फ  कर्मचारियों ने ही अर्जित नहीं कर रखी, बल्कि हर माफिया के बैंक खाते बेनामी संपत्ति से भरे पड़े हैं। चुनावों से पूर्व हर प्रत्याशी अपनी संपत्ति का ब्यौरा शपथ पत्र के माध्यम से सार्वजनिक करता है। चुनाव जीतने के बाद आखिर उनके ऐसे कौन से आय के स्रोत अचानक बढ़ जाते हैं कि उनके बैंक खातों में करोड़ों रुपया जमा होने लगता है। चुनाव आयोग अब तक ऐसे कितने धनाढ्य जनप्रतिनिधियों को चुनाव लड़ने से रोकने में कामयाब हो पाया है?

भ्रष्टाचार को परिभाषित करना अब आसान काम नहीं होगा। आम जनमानस ही कर्मचारियों को भ्रष्टाचार करने के लिए मजबूर कर देते हैं। बदलते दौर में आज कौन भ्रष्टाचार में संलिप्त नहीं, सभी इस दलदल में बराबर के हिस्सेदार हैं। सरकारी कार्यालयों में स्टाफ  की कमी भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिए जाने का सबसे बड़ा कारण माना जा सकता है। अनुबंध-पीटीए आधार पर की जा रही नियुक्तियों वाले स्टाफ  को नाममात्र की पगार ही मिल रही है। एक तो मानदेय बहुत कम, ऊपर से काम का बोझ इतना अत्यधिक कि जनता को बार-बार कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ते हैं। सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों की जेब जो गर्म कर देता है, उसका काम मिनटों में हो जाता है। स्टाफ  इस कदर लालची बनता जा रहा है कि लोगों को बार-बार के चक्कर से छुटकारा पाने के लिए रिश्वत देने के लिए मजबूर होना पड़ता है। सरकारी विभागों का जब से निजीकरण हुआ, तभी से भ्रष्टाचार ने सारी सीमाएं लांघकर रख दी हैं।

हर सरकारी बाबू की अपनी-अपनी कमीशन तय है। यही नहीं, उसका हिस्सा नेताओं की झोली में भी जाता है, इस बात को कुछेक नेता भी मान चुके हैं। सरकारी कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे न होने की वजह से भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है। भ्रष्टाचार का शिकार अब हर इनसान हो रहा है, मगर कोई भी इसका खुलकर विरोध नहीं करना चाहता है। बेनामी संपत्ति बनाने वालों का पैसा बिना जांच-पड़ताल के बैंकों में जमा किए जाने पर प्रतिबंध लगना चाहिए। प्रत्येक सरकारी व गैर सरकारी कर्मचारी की सैलरी सीधे बैंक खाते में श्रम विभाग के माध्यम से जमा हो, जिसका कंट्रोल सरकार के हाथों में होना चाहिए। भ्रष्टाचार में संलिप्त पाए जाने वाले सरकारी कर्मचारियों को सेवामुक्ति का दरवाजा दिखाना चाहिए। विजिलेंस भ्रष्ट कर्मचारियों को पकड़कर सलाखों में डाल देती है, मगर ऐसे धनी लोग पैसे के बल पर सिस्टम को खरीदकर फिर जनता को लूटने का कारोबार शुरू कर देते हैं। अगर सरकार अब बैंकों में बेनामी जमा होने वाली संपत्ति पर फोकस करे तो काफी हद तक भ्रष्टाचार खत्म किया जा सकता है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App