मन का विचार

By: May 2nd, 2020 12:20 am

श्रीराम शर्मा

सद्व्यवहार उस पुष्प के समान होता है, जो धवल एवं दृढ़ चरित्ररूपी वृक्ष पर खिलता है। चिंतन के सुरम्य वातावरण में सुगंध बिखेरता है तथा सजल भावनाओं से पोषित होता है। इसीलिए तो दिव्य जीवन के प्रणेता एवं महान योगी अरविंद के मन का विचार निस्सृत हो कह उठा,जीवन के समस्त बाहरी क्रिया व्यापार अंदर से नियंत्रित एवं संचालित होते हैं। निस्संदेह बाह्य व्यवहार आंतरिक चिंतन एवं भावनाओं के गर्भ से ही जन्म लेता है,पल्लवित एवं विकसित होता है। व्यवहार विज्ञान इसी सत्य को घोषित करता है। व्यवहार शिष्टता, शालीनता, विनम्रता आदि अनेक गुणों का समुच्चय है। जिसमें भी यह अनमोल संपदा होगी, उसका लोक व्यवहार अवश्य ही उत्कृष्ट होगा। ऐसे व्यवहार कुशल व्यक्ति की सफलता असंदिग्ध होती है। सफलता उसके चरण चूमती है और उसके लिए तो असफलता भी एक सीख होती है क्योंकि इसी से वह अपनी व्यावहारिक कमियों एवं खामियों के प्रति सजग, सतर्क  होता है। व्यवहार ही तो है, जो अपने को पराया और पराए को अपना कर दिखाने का चमत्कार करता है। मधुर व्यवहार से पशु-पक्षी तक प्रभावित हो जाते हैं, तो फिर इनसान का दिल क्यों नहीं जीता जा सकता। अंदर की भावना जब प्रस्फुटित होती है, तो हृदय मखन सा कोमल हो जाता है और वाणी एवं व्यवहार में अमृत झरने लगता है। ऐसी संवेदनशीलता भला कैसे किसी के प्रति कठोर होगी, वह तो औरों से हृदय में उतर जाती है और अपना बनाकर ही छोड़ती है। ऐसा शालीन व्यवहार मृदु मंद पवन के झोंके के समान सभी को प्रिय होता है और अब यह ठंडी बयार चलती है तो नदी-नद, झील-सरोवर, खेत-खलिहान झूम उठते हैं। कोपल एवं कलियां चटखने लगती हैं। फूलों की मादकता इठलाने लगती है। पक्षी चहचहाने लगते हैं और सभी ओर हरियाली और खुशहाली का दिव्य संगीत झरने लगता है, परंतु अभद्र और अशिष्ट व्यवहार उस भीषण अंधड़ की तरह होता है, जिससे लोग कतराते एवं घबराते हैं। वह तिरस्कृत होता है और अपमान सहता है। अशिष्टता, अनगढ़ता एवं रुखेपन का परिचायक है। इस तरह का व्यक्ति चाहे कितना ही प्रतिभा संपन्न क्यों न हो, वह लोक सम्मान अर्जित नहीं कर सकता। लोग उसकी अव्यावहारिकता के कारण उसके पास आने में कतराते हैं उसके अपने परिजन भी उससे पराये जैसा बर्ताव करते हैं। व्यवहार की शालीनता न केवल औरों को प्रसन्न करती है, उसके अधरों में मुस्कान की स्मित रेखा खींचती है, बल्कि स्वयं को भी आनंदित करती है। पारसमणि के अस्तित्व को स्वीकार करें या न करें, परंतु अपने पास उपलब्ध व्यवहार रूपी पारसमणि से आसपास के सभी लोगों को स्वर्णमंडित किया जा सकता है अर्थात अपना बनाया जा सकता है। लौकिक लोक व्यवहार का यह गुप्त रहस्य है,  जिसे हृदयंगम का सफलता एवं महानता अर्जित की जा सकती है। ज्यों-ज्यों अंतर परिष्कृत होता जाता है, उसी के अनुरूप व्यवहार भी उत्कृष्ट होता रहता है। यह तो सीप के मोती के सदृश है, जो सागर की गहराई में अवस्थित होता है।


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