आतंकवाद नियंत्रण में मीडिया की भूमिका

By: Jun 2nd, 2020 12:05 am

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी

पत्रकारिता के क्षेत्र में भी बहुत से ऐसे योद्धा हैं जिन्होंने अपना नाम हमेशा के लिए ऊंचा किया है तथा बाकी पत्रकारों को भी उनके नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित किया है। उदाहरण के तौर पर पंजाब केसरी के संपादक आदरणीय अमर शहीद लाला जगतनारायण व उनके सुपुत्र रमेश चंद्र जी ने अपनी लेखनी को झुकने नहीं दिया, भले ही उनको अपने जीवन की आहुति देनी पड़ी। समाज को ऐसे देशभक्त पत्रकारों पर नाज है तथा उनका नाम सदा ही सुनहरी अक्षरों में लिखा जाता रहेगा…

आतंकवाद से जूझ रही दुनिया के सामने आज जिस तरह की उदासीनता व लाचारगी दिखाई दे रही है, वैसी शायद कभी भी नहीं देखी गई होगी। मीडिया के सामने यह बहुत बड़ा प्रश्न है कि आतंकवाद की घटनाआें की किस तरह से प्रस्तुति की जाए क्योंकि कई ऐसी प्रस्तुतियों को मीडिया के सिर थोप दिया जाता है जिसके लिए वह वास्तव में जिम्मेदार नहीं होता। आज भारत में आतंकवाद कई रूपों में अपना फन  फैलाने की कोशिश कर रहा है। एक तरफ  पाक प्रायोजित आतंकवाद है तो वहीं दूसरी तरफ वैश्विक इस्लामी आतंकवाद है जिसे अलकायदा, हिजबुल मुजाहिदीन व तालीबान जैसे संगठन पोषित कर रहे हैं। इसी तरह पूर्वोत्तर व छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में चल रहा नक्सल आतंक है जिसने बाहरी खाल कुछ भी पहन रखी हो, मगर वे भारतीय लोकतंत्र के विरोधी ही हैं। जब आतंकवाद का खतरा इतने रूपों में हो तो मीडिया की उलझनें इसलिए बढ़ जाती हैं कि वह इसे किस रूप में प्रस्तुत करे। एक तरफ  आतंकवाद के समाधान की दिशा में सामाजिक दबाव बनाने की चुनौती सामने होती है, दूसरी ओर इस बात का ध्यान भी रखना पड़ता है कि कहीं उसके प्रयासों के थोडे़ से भी विचलन से उसे भारतीय लोकतंत्र का विरोधी न मान लिया जाए। यह बात भी सही है कि कई बार मीडिया ने आतंकवाद की फूहड़ प्रस्तुतियां दी हैं जिससे किसी विशेष समुदाय को प्रसन्न करने की कोशिश की गई तथा आरोप-प्रत्यारोप द्वारा अनावश्यक कीचड़ उछाल कर पत्रकारिता की गरिमा को ठेस पहुंचाई गई। परंतु स्वाभाविक है कि समाज के नैतिक पतन के इस दौर में मीडिया भी यहां इतना शिवम्-सुंदरम् कहां रह गया है तथा मानवीय मूल्यों के हनन में सृजन और संतुलन करने वाला पत्रकार-समुदाय भी अंदर से खोखला, कुटिल, भीरू, कायर, लालची और भ्रष्ट महसूस होने लगता है। परंतु यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हर संकट के समय में भारतीय मीडिया ने अपने देश का गौरव ऊंचा किया है तथा आतंकवाद के विरुद्ध अपनी प्रतिबद्धता प्रकट की है।

यह भी ठीक है कि जब कोई आतंकवादी घटना घटती है तो मीडिया के विभिन्न चैनलों में खबरों को प्रस्तुत करते की होड़ सी लग जाती है तथा कई बार घटनाओं को सनसनीखेज बना दिया जाता है व कई बार देश में दंगे भी फैलने शुरू हो जाते हैं। आतंकवादी तो अपना प्रचार चाहते हैं तथा इसके लिए मीडिया उनका एक माध्यम बन जाता है। कई बार तो मीडिया को वे अपनी मर्जी से प्रसारण के लिए मजबूर भी करते रहते हैं तथा यदि कोई मीडिया तटस्थ होकर उनकी नंगी तस्वीर का प्रसारण करता है तो उन्हें मारने की धमकियां आनी शुरू हो जाती हैं। वे एक भय की स्थिति पैदा करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हत्याएं चाहे कम हों, मगर उनका प्रभाव अधिक हो। जब मीडिया उनकी घटनाआें को उनके मनमाने ढंग से प्रकाशित करना आरंभ कर देता है तो आतंकवाद अधिक फैलता है।

पत्रकारिता के क्षेत्र में भी बहुत से ऐसे योद्धा हैं जिन्होंने अपना नाम हमेशा के लिए ऊंचा किया है तथा बाकी पत्रकारों को भी उनके नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित किया है। उदाहरण के तौर पर पंजाब केसरी के संपादक आदरणीय अमर शहीद लाला जगतनारायण व उनके सुपुत्र रमेश चंद्र जी ने अपनी लेखनी को झुकने नहीं दिया, भले ही उनको अपने जीवन की आहुति देनी पड़ी। समाज को ऐसे देशभक्त पत्रकारों पर नाज है तथा उनका नाम सदा ही सुनहरी अक्षरों में लिखा जाता रहेगा। इसी तरह हाल ही में जीटीवी के मुख्य संपादक श्री सुधीर चौधरी को भी आतंकवादी संगठनों से धमकियां इसलिए मिलनी शुरू हुई हैं, क्योंकि उन्होंने कश्मीर व पीओके की वस्तुस्थिति के बारे में उचित रूप से प्रसारण किया। यही नहीं, हमारे ही देश के कुछ नागरिकों ने उनके विरुद्ध केरल राज्य में 295 आईपीसी के अंतर्गत मामला भी दर्ज करवा दिया। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि देश का हर सभ्य नागरिक ऐसे ‘कलम के वीर योद्धाओं’ के समर्थन में आगे आए तथा देश में पनप रहे आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए अपना सहयोग प्रदान करे। मीडिया के लोगों को भी स्वयं अपनी आचार संहिता तैयार करनी चाहिए जिससे उनके प्रसारण द्वारा आतंकवादियों के हितों या लक्ष्यों की प्राप्ति न हो सके।

जिस तरह से सैनिक (सर्जिकल स्ट्राइक द्वारा) दुश्मनों के अड्डों को तबाह करते हैं, वैसे ही कलम के वीर सिपाही आतंकियों का काला चेहरा समाज के सामने प्रस्तुत करते रहते हैं। वर्ष 1999 में हवाई जहाज के अपहरण के समय मीडिया ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाकर सभी अपहृत किए गए यात्रियों को छुड़वाया था। इसी तरह देश में जब भी कहीं आतंकी घटना घटती है, मीडिया के लोग अपनी जान हथेली पर रखकर घटनास्थल पर पहुंच कर वहां के मंजर का पूरा विवरण हम तक पहुंचाते हैं तथा हमें ऐसी आसुरी शक्तियों के बारे में अवगत कराते रहते हैं। यह भी देखा गया है कि जब मीडिया में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ने लगता है, तब मीडिया के लोग किसी राजनीतिक दल विशेष का भोंपू बन कर अपनी विश्वसनीयता खो बैठते हैं। आतंकवाद पूरे राष्ट्र की समस्या है जिससे निपटने के लिए सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होने की आवश्यकता होती है, मगर देखा गया है कि राजनीतिज्ञ इस पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने से बाज नहीं आते। ऐसे में यदि कोई मीडिया अपना सही दायित्व न निभाए तो उस समय उत्तम आदर्श व उज्ज्वल राह दिखाने वाले पत्रकारों पर भी चंद्रमा की तरह कलंक लग जाता है। समाज की रगों में नवचेतना का संचार करने वाले मीडिया समुदाय का विशेष कर्त्तव्य बनता है कि ज्ञान के आलोक में अपने हाथों में सधी हुई लेखनी लेकर तथा भावों और विचारों का अविरल सत्य प्रवाह कर, अनुभूतिपूर्ण एवं अनुभवगम्य सामान्य प्रकाशन ही न करे, अपितु चिरंतन मनीषी बन समाज कल्याण की पवित्र अभिलाषा के प्रति कटिबद्ध होकर एक दक्ष संगठन के रूप में हर संकट का धैर्य से मुकाबला करने में प्रेरित होकर सक्रिय, निष्पक्ष, पुलकित, लिप्साहीन, स्वस्थ आदर्श वाले लौह-संकल्प देकर समाज की अमोघ रक्षापंक्ति बनाने में उल्लेखनीय योगदान दे, ताकि ‘सर्वेभवंतु सुखिनः’ वाली वैदिक उक्ति अक्षरशः चरितार्थ हो सके।


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